ज़िन्दगी कैसे बसर हो, सोचते रहते हैं हम
परेशानी कुछ कमतर हो, सोचते रहते हैं हम
मीलों बिछी तन्हाई, जो करवट लिए हुए है
ख़त्म अब ये सफ़र हो, सोचते रहते हैं हम
गुम गया है वो कहीं या उसने भुला दिया है
बस उसको मेरी खबर हो, सोचते रहते हैं हम
वफ़ा की देगची में, हज़ारों इंतज़ार उबल रहे हैं
अब यहीं मेरा गुज़र हो, सोचते रहते हैं हम
तेरी ऊँचाइयों तक, मेरे हाथ कहाँ पहुंचेंगे
बस तुझपर मेरी नज़र हो, सोचते रहते हैं हम
मत कर शुरू नई कहानी ''अदा', रहने दे वर्क पुराने
तू लौटा अपने घर हो, सोचते रहते हैं हम
परेशानी कुछ कमतर हो, सोचते रहते हैं हम
मीलों बिछी तन्हाई, जो करवट लिए हुए है
ख़त्म अब ये सफ़र हो, सोचते रहते हैं हम
गुम गया है वो कहीं या उसने भुला दिया है
बस उसको मेरी खबर हो, सोचते रहते हैं हम
वफ़ा की देगची में, हज़ारों इंतज़ार उबल रहे हैं
अब यहीं मेरा गुज़र हो, सोचते रहते हैं हम
तेरी ऊँचाइयों तक, मेरे हाथ कहाँ पहुंचेंगे
बस तुझपर मेरी नज़र हो, सोचते रहते हैं हम
मत कर शुरू नई कहानी ''अदा', रहने दे वर्क पुराने
तू लौटा अपने घर हो, सोचते रहते हैं हम
तेरी ऊँचाइयों तक, मेरे हाथ कहाँ पहुंचेंगे
ReplyDeleteबस तुझपर मेरी नज़र हो, सोचते रहते हैं हम
वाह बेहतरीन काव्य पंक्तियाँ
धन्यवाद कुश्वंश जी !
Deleteऊंचाइयों में जो है
ReplyDeleteआपकी नजर से ही है
जो ऊँचें हैं, उनका क़द ही ऊँचा है :)
Deleteवफ़ा की देगची में, हज़ारों इंतज़ार उबल रहे हैं
ReplyDeleteअब यहीं मेरा गुज़र हो, सोचते रहते हैं हम
तेरी ऊँचाइयों तक, मेरे हाथ कहाँ पहुंचेंगे
बस तुझपर मेरी नज़र हो, सोचते रहते हैं हम ....वाह-वाह अत्यन्त खूबसूरत लेखन .....
अजय जी,
Deleteबहुत शुक्रिया आपका !
बहुत अच्छी कविता, जिंदगी की रौ से उलट बहने वाली कविता
ReplyDeleteकभी कभी उलटी रौ में बहना भी अच्छा लगता है !
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज सोमवार (12-08-2013) को गुज़ारिश हरियाली तीज की : चर्चा मंच 1335....में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका हृदय से धनयवाद शास्त्री जी !
Deleteबहुत खूब है गजल...
ReplyDeleteशुक्रिया रश्मि !
Deleteसुन्दर प्रस्तुति… आभार
ReplyDeleteआपका आभार !
Deleteवफ़ा की देगची में, हज़ारों इंतज़ार उबल रहे हैं
ReplyDeleteबड़ी ख़ूबसूरत पंक्ति है...पूरी की पूरी ग़ज़ल ही बढ़िया बन पड़ी है
बहुते दिन गायाब रही तुम, झलक दिखलाने का शुक्रिया कहते हैं :)
Deleteतेरी ऊँचाइयों तक, मेरे हाथ कहाँ पहुंचेंगे
ReplyDeleteबस तुझपर मेरी नज़र हो, सोचते रहते हैं हम
बड़ी कठिन और कड़वी बात कह दी इस तरह नज़रें घुमाना हद हो गई
वोई तो :)
Deleteहद नहीं बेहद्द है, हाँ नहीं तो !
उफ, यह सोचना, उस पर सोचने पर सोचना।
ReplyDeleteअच्छा है। सुन्दर। गाना मिसिंग। होता त और अच्छा लगता। :)
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