शुमार थे कभी उनके, रानाई-ए-ख़यालों में
अब देखते हैं ख़ुद को हम, तारीख़ के हवालों में
गुज़री बड़ी मुश्किल से, कल रात जो गुज़री है
टीस भी थी इंतहाँ, तेरे दिए हुए छालों में
बातों का सिलसिला था, निकली बहस की नोकें
फिर उलझते गए हम, कुछ बेतुके सवालों में
सागर का क्या क़सूर, वो चुपचाप ही पड़ा था
उसको डुबो दिया मिलके, चंद मौज के उछालो ने
हूँ गूंगी मैं तो क्या 'अदा', इल्ज़ाम गाली का है
परेशान कर दिया है, इस वकील के सवालों ने
कुछ होंठ सूखे हुए थे, और थे कुछ प्यासे हलक
पर गुम गईं कई ज़िंदगियाँ, साक़ी तेरे हालों में
रानाई-ए-ख़यालों=कोमल अहसास
साक़ी=शराब बाँटने वाली
हाला=शराब की प्याली
सच है, भाव गहरा गये।
ReplyDeleteजी हाँ प्रवीण जी, मुझे भी लग रहा है, भाव इतने गहरा गए हैं कि अब पकड़ में नहीं आ रहे हैं :)
Deleteमीनाक्षी लेखीजी अच्छी वकील हैं, उन्हें वकील कर लीजिये सामने वाले के धुर्रे बिखेर देंगी और फ़िर सामनेवाले आपकी गज़ल से चुराकर कहेंगे ’परेशान कर दिया है, इस वकील के सवालों ने।’
ReplyDelete(ओन्ली लोचा ये है कि वो भगवा पार्टी से संबद्ध हैं :)
बहुत अच्छी गज़ल लगी, जैसे पहली बार लगी थी।
योर ऑनर,
Deleteभगवा पार्टी हमरी भी उतनी ही है जितनी आपकी है, ओनली लोचा ई है हम अपना केस खुदै फ़ोकट में लडूँगी :)
बहुत अच्छी ग़ज़ल है. लकिन आपकी गायन की कमी महसूस हुई
ReplyDeletelatest post नेताजी सुनिए !!!
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कालिपद जी,
Deleteबहुत दिनों से मैंने कोई नया गाना रिकोर्ड नहीं किया है, इसलिए कोई गाना नहीं डाल पा रही हूँ, जैसे ही ये काम होगा अवश्य आप सब के साथ साझा करुँगी।
आपका आभार !
ये एक ज़िंदगी तो बच जाय या खुदा :-)
ReplyDeleteडॉ साहेब,
Deleteचिंता की बात नहीं है, फिलहाल ज़िन्दगी की सेहत ठीक है, सुबह से शाम तक भागा-दौड़ी आई मीन जॉगिंग कर रही है :)
खुबसूरत ग़ज़ल सचमुच अदायगी की कमी खली, आशा अगली बार इस कमी को मद्देनज़र रखकर लिखिए, वरना पढेंगे ज़रूर कमेंट नहीं करेंगे, गाइये भी जनाब
ReplyDeleteका भईया आप बहिन को भी धमकी देते हैं :)
Deleteआप पढ़े और बिना प्रोत्साहन दिए चले जाएँ, 'ऐसा हो नहीं सकता' :)
वाह-वाह, क्या बात है।
ReplyDeleteआपको सुनना हमेशा सुकून देता है।
ई तो आपका बड़प्पन है सिद्धार्थ जी, जो आप ऐसा कह रहे हैं.।
Deleteआपका आभार !
शुक्रिया यशवंत।
ReplyDeleteप्रत्येक व्यक्ति के भीतर एक बेतुका वकील होता है शायद ...।
ReplyDeleteसच्ची गहरी बात लिख दी आपने ।
सही कहा आपने, तभी तो हम सभी बेतुके बहसों में उलझे रहते हैं ।
Deleteआभार !
इस खूबसूरत सी ग़जल को स्वर भी तो दीजिये .......
ReplyDeleteसमय नहीं मिल पा रहा है, फिर भी कोशिश ज़रूर करुँगी।
Deleteआप आयीं, बहुत अच्छा लगा :)
आदरणीया आपकी यह प्रस्तुति 'निर्झर टाइम्स' पर लिंक की गई है।
ReplyDeletehttp://nirjhar.times.blogspot.in पर आपका स्वागत् है,कृपया अवलोकन करें।
सादर
वंदना जी,
Deleteमेरी रचना को http://nirjhar.times.blogspot.in के योग्य समझा, ह्रदय से आभारी हूँ.।
एक जवाब के इंतजार में खड़े हैं
ReplyDeleteसवालों के भंवर में सभी फंसे हैं.....
सवालों के भवंर कितने भी गहरे हों, जवाब की गुणवत्ता और विश्वसनीयता के सामने वो कहाँ ठहर पायेंगे भला !
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