हर इन्सां परदे में है, बिन परदे का कौन भला
रंग-बिरंगे, मोटे-झीने, परदे न जाने कितने हैं
जाना होगा जिनको उनको, कौन कभी रोक पाया है
जाने वालों को दुनिया में, राह न जाने कितने हैं
चुल्लू-चुल्लू पानी हम भी, फेंक रहे हैं कश्ती से
देखने वाले सोच रहे, हम लोग सयाने कितने हैं
डूब गए हम दरिया में, संग खड़े रहे संगी-साथी
ऐसे में हम क्या सोचे के दोस्त पुराने कितने हैं
ईमान की बातें क्या करना, देश के रिश्वतखोरों से
नोट की हर गड्डी में देखो, 'गाँधी' तो न जाने कितने हैं
कभी बसे क़ाबा वो 'अदा', और बसे कभी काशी में
मोह्ताज़ी को कोई छत न सही, पर ख़ुदा के ठिकाने कितने हैं
रंग-बिरंगे, मोटे-झीने, परदे न जाने कितने हैं
जाना होगा जिनको उनको, कौन कभी रोक पाया है
जाने वालों को दुनिया में, राह न जाने कितने हैं
चुल्लू-चुल्लू पानी हम भी, फेंक रहे हैं कश्ती से
देखने वाले सोच रहे, हम लोग सयाने कितने हैं
डूब गए हम दरिया में, संग खड़े रहे संगी-साथी
ऐसे में हम क्या सोचे के दोस्त पुराने कितने हैं
ईमान की बातें क्या करना, देश के रिश्वतखोरों से
नोट की हर गड्डी में देखो, 'गाँधी' तो न जाने कितने हैं
कभी बसे क़ाबा वो 'अदा', और बसे कभी काशी में
मोह्ताज़ी को कोई छत न सही, पर ख़ुदा के ठिकाने कितने हैं
डूब गए हम दरिया में, और संग खड़े रहे संगी-साथी
ReplyDeleteऐसे में हम क्या सोचे के दोस्त पुराने कितने हैं ....................(:
कितनों में कितना डूबे हैं,
ReplyDeleteउनके ही जितना डूबे हैं,
डूब डूब कर डूब मर रहे,
सपनों में इतना डूबे हैं।
हर इन्सां परदे में है, बिन परदे का यहाँ कोई नहीं
ReplyDeleteरंग-बिरंगे, मोटे-झीने, परदे तो न जाने कितने हैं
सच और पर्दा पड़ा रहे वही अच्छा है..
बढ़िया रचना
बहुत ही कमाल की पंक्तियां अदा जी । एक दम सटीक निशाने पर पहुंचती हुईं ।
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} किसी भी प्रकार की चर्चा आमंत्रित है दोनों ही सामूहिक ब्लौग है। कोई भी इनका रचनाकार बन सकता है। इन दोनों ब्लौगों का उदेश्य अच्छी रचनाओं का संग्रहण करना है। कविता मंच पर उजाले उनकी यादों के अंतर्गत पुराने कवियों की रचनआएं भी आमंत्रित हैं। आप kuldeepsingpinku@gmail.com पर मेल भेजकर इसके सदस्य बन सकते हैं। प्रत्येक रचनाकार का हृद्य से स्वागत है।
ReplyDeleteकाबा हो या काशी, हर ठिकाना उसका है।
ReplyDeleteबहुत अच्छी पंक्तियाँ।
बहुत बहुत धन्यवाद ललित जी, बस सिर्फ खेद की बात ये है कि हम आपकी चौपाल तक नहीं पहुँच पाए, समस्या है आपका ब्लॉग खुल ही नहीं रहा है हमसे।
ReplyDeleteहमेशा की तरह जोरदार
ReplyDeleteवाह क्या बात कही आपने। मस्त एकदम।
ReplyDeleteएक अनुरोध : आपको व्यक्तिगत संदेश देने का कोई माध्यम नहीं मिल रहा है। आपसे वर्धा सेमिनार के बारे में जरूरी चर्चा करनी थी। कुछ सूचनाओं का आदान-प्रदान। मेरा ई-मेल है : sstripathi3371@gmail.com
आपके गीत पढ़ने मिल रहे हैं लेकिन आपकी खनकती आवाज की कमी महसूस हो रही है....
ReplyDeleteउम्दा....खूब लिखा है...
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