Tuesday, August 13, 2013

कुछ भी...!

कुछ ठहरे लम्हों ने 
फिर पत्थर उठाये हैं
बे-पैरहन यादों पर
जम कर चलायें हैं 

शब्-ए-खामोशी से 
थोड़ी आवाज़ चुरा  
हौसले की इक नई धुन
नजदीकियों ने गाये हैं

अब कैसी तक़ल्लुफ़  
तराश लिया बुत मैंने 
नज़रों से टूटते तारों ने  
सज़दे में सिर झुकाए हैं 

होंगे कभी उस फ़लक पर 
या फिर गर्दिश के पार
फ़ेर कर मुँह आफ़ताब से 

अब हम चाँद बुझाये हैं 

उम्मीद के सामने 
ख़ामोश है 'अदा'
रोनी सी सूरत लिए 
हाथ हम हिलाए हैं 

(बे-पैरहन : बिना कपडों के)
(गर्दिश : 
दुर्भाग्य)
(
फ़लक : आसमान )

17 comments:

  1. शुभ प्रभात दीदी
    उम्दा रचना प्रसवित की आपने
    आभार
    ........
    क्यों खामोश है अदा
    आती क्यों नहीं कोई सदा
    क्या हुई हमसे कोई ख़ता
    अब जियादा हमें न सता
    होजा अब हमसे तू रिदा
    सादर

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    1. अरे कब हुए खामोश हम ये तो बता
      देते रहते हैं सदा पर कौन यहाँ सुनता
      सच कहूँ तू ही है इक मुकम्मल रिदा
      वर्ना तो सबके चूल्हे हैं यहाँ जुदा-जुदा :):)

      तेरे आने से महफ़िल में रौनक आ जाती है, कसम से :)

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  2. eक बस तू ही नहीं मुझसे ख़फ़ा हो बैठा
    मैंने जो संग तराशा वो ख़ुदा हो बैठा।

    उठ के मंज़िल ही अगर आए तो शायद कुछ हो
    शौक-ए-मंज़िल तो मेरा आबलापा हो बैठा।
    Lyricist: Farhat Shahzad
    Singer: Mehdi Hasan
    शुक्रिया ऐ मेरे क़ातिल ऐ मसीहा मेरे
    ज़हर जो तूने दिया था वो दवा हो बैठा।

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    1. लगता है आपको भी शायरी की लत लग गयी :)

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  3. वाह ...बहुत बहुत बढ़िया .....

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    1. हृदय से आपका धन्यवाद डॉ मोनिका !

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    1. कालिपद जी,
      बहुत बहुत शुक्रिया आपका !

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  5. शुक्रिया, करम, मेहरबानी !
    जियो, जियो खूब जियो यशोदा रानी :)

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  6. बेहतरीन, संक्रमक रचना है, पता नहीं कब हमको लग जायेगी।

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    1. अरे बाप रे ! ख़तरनाक संक्रमण का खतरा मंडरा रहा है :)

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  7. Replies
    1. बात भला का होगी, ब्लॉग देवर्षि :)
      'वाह' के आशीर्वाद के लिए धन्यवाद समर्पित है !

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  8. उम्‍दा रचना.....बहुत दि‍नों बाद देखी आपकी रचना..आपकी याद भी आ गई अदा जी

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    1. रश्मि,
      ऐसे ही याद करती रहना
      ऐसे ही मुस्कुराती रहना
      और ऐसे ही खुश रहना

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