Friday, May 25, 2012

अंग्रेजी मईया की किरपा....



इस बात में दो राय नहीं  कि हिंदी की दुर्दशा दिखाई देती है, कारण सिर्फ बाजारवाद नहीं, अंग्रेजी की चमक इतनी तेज़ है कि लोग उससे बच नहीं पाते...और हमारी सरकार भी छीछा-लेदर  करने से बाज़ नहीं आती, हिंदी के उत्थान की आवश्यकता, उतनी नहीं है जितनी उसे दिल से अपनाने की है, हिंदी आज शक़ के घेरे में है, हिंदी पर अब लोगों को विश्वास नहीं है, अपनी बात हिंदी में कहने में लोग कतराते हैं....उन्हें ये लगता है कि सामने वाले पर धौंस ज़माना हो, तो बात हिंदी में नहीं, अंग्रेजी में करो...और सच्चाई भी यही है...जो बात आप हिंदी में कहते हैं, वो कम असर करती, और जैसे ही आपने अंग्रेजी में बात करनी शुरू की, आपका स्तर सामने वाले की नज़र में एकदम से उछाल मारता है ...बेशक आपने अंग्रेजी की टांग ही तोड़ कर रख दी हो....ब्लॉग जगत में भी अंग्रेजी के वड्डे-वड्डे तीर चलते हुए देखा है, और लोगों को चारों खाने चित्त होते हुए भी...हाँ, तो हम बात कर रहे थे, इसी फार्मूले की...ये मेरा आजमाया हुआ फ़ॉर्मूला है...कसम से हम कहते हैं, एकदम सुपट काम करता है..
पेशे ख़िदमत है एक आपबीती  ...

मैं रांची में थी और मुझे इन्टनेट कनेक्शन चाहिए था ...उसके लिए जाने क्या-क्या कार्ड्स चाहिए थे और मेरे पास वो कार्ड्स नहीं हैं, ख़ैर मेरी दोस्त उर्सुला ने मेरा उद्धार करने की सोची ...उसने आवेदन दिया, हमलोगों ने टाटा का फ्लैश ड्राइव खरीदा और कनेक्शन के लिए हमलोगों से ये वादा किया गया कि दूसरे दिन तक हो जाएगा ...मैं अपना लैपटॉप लेकर तैयार बैठी थी...दूसरे दिन दोपहर तक कनेक्शन का नाम-ओ-निशाँ नहीं था...मैंने फ़ोन लगाया उसी जगह जहाँ से इन्टरनेट कनेक्शन लिया था ...उनका कहना था कि आपको कनेक्शन इसलिए नहीं मिला, क्योंकि हम पता का सत्यापन अर्थात एड्रेस वेरिफिकेशन के लिए गए थे लेकिन वहाँ कोई नहीं था...मेरा अगला सवाल था आप कब गए थे वेरिफिकेशन के लिए ...उन्होंने जवाब दिया जी ११ बजे के क़रीब गए थे....मैंने तपाक एक और सवाल दागा..आप इस वक्त कहाँ हैं ...उनका जवाब था जी हम तो ऑफिस में हैं...मैंने कहा अभी कितने बज रहे हैं ...उन्होंने कहा जी १२.३० ...मैंने कहा आप ऑफिस में क्यों हैं...आपको तो घर पर होना चाहिए था...वो बन्दा कुछ उलझा-उलझा सा हो गया...कहने लगा क्यों मैम घर पर क्यों, मैंने कहा कि मुझे लगा आप भी वेले ही बैठे हो.. तो घर में रहो...क्योंकि अगर आप ११ बजे एड्रेस वेरिफिकेशन के लिए किसी के घर जाते हो...और ये उम्मीद करते हो कि वो घर में ही पलंग पर बैठा हो...तो बंदा तो वेल्ला ही होगा न...वर्ना शरीफ लोग जो नौकरी-चाकरी करते हैं, वो तो ९ बजे ही दफ़्तर पहुँच जाते हैं न ! बन्दा समझदार था...समझ गया था कि ग़लत जगह पंगा ले रहा है...कहने लगा मैम आपकी बात सही है...लेकिन मैं तो बस एक मुलाजिम हूँ...आप क्यों नहीं हमारे मैनेजर से बात करती हैं...मैंने कहा, बच्चे, अब मैं मनेजर नहीं मैनेजिंग डाइरेक्टर से बात करुँगी...अब मुझे उनका फ़ोन नम्बर दो...ख़ैर उसने मुझे एम्.डी. का नंबर दिया, मैंने फ़ोन किया और जब तक मैं हिंदी में बात करती रही, एम्. डी. साहेब मुझे टहलाते रहे, उनकी बन्दर गुलाटी देख मैंने भी अपना रंग बदलने की  सोची....और जैसे ही मैंने अपना रंग बदला, वो मुझे सिरिअसली लेने लगे, फिर मैंने वो अंग्रेजी झाड़ी कि उन्हें भी लगने लगा ...I can leave angrej behind  ...मेरा इन्टरनेट कनेक्शन १५ मिनट में लगा ..बिना तथाकथित एड्रेस वेरिफिकेशन के, यही नहीं एम्.डी. साहब ने पूरे समय मेरा इंतज़ार किया फ़ोन पर, जब तक मेरा इंटरनेट कनेक्शन...ऊ का कहते हैं कि कनेक्टेड नहीं हो गया....और तो और दूसरे दिन, फिर तीसरे दिन भी फ़ोन करके पूछा कि सब ठीक-ठाक चल रहा है न...!
तो ई है जी अंग्रेजी मईया की किरपा....
हाँ नहीं तो..!

आगे भी जाने न तू.. आवाज़ हमरी ही है और किसकी होगी हीयाँ ??
     Get this widget |     Track details  |         eSnips Social DNA