मैं कल रात उन दीवानों में थी
मेरी नज़रें गुजरे ज़मानों में थी
ये दिल घबराया ऊँचे मकाँ में बड़ा
फिर सोयी मैं कच्चे मकानों में थी
यूँ तो दिखती हूँ मैं भी शमा की तरहां
पर गिनती मेरी परवानों में थी
उसकी बातों पे मैंने यकीं कर लिया
कितनी सच्चाई उसके बयानों में थी
मेरे अपनों ने कब का किनारा किया
मुझसे ज़्यादा कशिश बेगानों में थी
क्या ढूंढें 'अदा' वो तो सब बिक गया
तेरे सपनों की डब्बी दुकानों में थी
दिल लगा लिया मैंने तुमसे प्यार करके ...आवाज़ संतोष शैल और 'अदा' की...