मसक जातीं हैं,
अस्मतें,
किसी के फ़िकरों
की चुभन से,
की चुभन से,
बसते हैं मुझमें भी
हया में सिमटे
हया में सिमटे
आदम और हव्वा,
जो झुकी नज़रों से
देखते हैं,
जो झुकी नज़रों से
देखते हैं,
खुल्द के फल का असर |
दिखाती हैं
सही फ़ितरत,
इन्सानों की,
दिखाती हैं
सही फ़ितरत,
इन्सानों की,
उनकी तहज़ीब-ओ-बोलियाँ,
वर्ना पैरहन के नीचे
सबका सच एक ही होता है ,
वर्ना पैरहन के नीचे
सबका सच एक ही होता है ,
मानों...या न मानों
फ़िकरों की भी, ज़ात होती है,
और हर फिकराकस की
एक औक़ात होती है.....
इतना तो याद है मुझे.....'अदा' की आवाज़...