तजुर्बों के रास्तों से
उम्र का गुज़रना,
फिर
आड़ी-तिरछी पगडंडियों
का चेहरे पे जमना,
चाहत, वफ़ा, उल्फत का
एक-एक कर
उदास होना,
उदास होना,
हकीक़त के जिस्म से
हर लिबास का उतरना ,
डरा तो देता है
लेकिन,
दिल के तन्हा गोशे में,
गौहर-ए-जन्नत
झिलमिलाता है !
जहाँ
मन का फ़रिश्ता
मुस्कुराता है !!और,
एक और ज़िन्दगी जीने को
उकसाता है...!
और अब एक गीत ...हर दिल जो प्यार करेगा...'आवाज़ 'अदा' की...
गौहर-ए-जन्नत=जन्नत का मोती
गोशे=कोना
लिबास=कपड़ा