Saturday, May 5, 2012

पथिक, स्वीकार करो प्रणाम...!!


मैं नहीं ! 
अंतिम वृक्ष,
इस प्रीत के मरुस्थल में,
आते हैं अनेक
चिर अजातरिपु,
कर्मयोगी,
इस कुरुक्षेत्र में,
परन्तु...
इस अनंत पथ के
एक किनारे,
मेरी विस्मृत सी छाँव तक
तुम जाने कैसे 
आ पहुँचे हो,
ले लो तनिक विश्राम, 
तत्पश्चात,
संचित कर लो हृदय में
पारिजात सी छवि,
और चन्दन सी स्मृति,
आगे...
नूतन लक्ष्य का,
प्रथम दिवस दे रहा
आह्वान ...
तुम्हें जाना है, पथिक,
स्वीकार करो प्रणाम...!!

वादियाँ मेरा दामन, रास्ते मेरी बाहें....आवाज़ 'अदा' की...