हमारी जिंदगी में भी कई बे-नाम रिश्ते हैं
उन्हें हम इतनी शिद्दत से न जाने क्यूँ निभाते हैं तुम्हारी हर दगाबाज़ी हमें जी भर रुलाती है
सबेरा जब भी होता है तो हम सब भूल जाते हैं
यहाँ ये कैसी दुनिया है जिसे आभासी कहते हैं
अगर पत्थर वो झूठे हैं, क्यूँ सच्चे चोट खाते हैं ?
ये दिल इस दर्द के जज़्बात से जब भी लरजता है
पकड़ कर डाल हम ख़ामोशियों के झूल जाते हैं
बड़ा है कौन यां ग़र तुम, कभी इस बात को सोचो
हरिजन के छुए पर ये बिरहमन क्यूँ नहाते हैं..?
हरिजन के छुए पर ये बिरहमन क्यूँ नहाते हैं..?
सभी देवर से क्यूँ बनकर के भाभी जाँ बुलाते हैं ?
नैनों में बदरा छाये...आवाज़ 'अदा' की...
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