चेहरों की किताब है,
दोस्ती का सैलाब है,
जमघट लगे चेहरों का,
अजीब सा अज़ाब है,
'दोस्ती' की नहीं
'दोस्तों' का हिसाब है,
शुक्र है मैंने इस नदी में
पाँव नहीं डाला
वरना जाने कहाँ बह जाती
हज़ारों दोस्त बनाती
फिर...
इतनों से भला कैसे निभाती ?
अब...
बाक़ी कैनवस ख़ाली है
सिर्फ़ एक शक्ल लगा ली है
तुम और मैं
और हमारी दोस्ती
हमेशा के लिए..!!
सुहानी चांदनी रातें हमें सोने नहीं देतीं।..आवाज़ 'अदा' की