यहाँ शक्ति की चिता,
दिन रात जल रही है,
और,
आदत इस दुर्गन्ध की,
हमारे नथुनों को भी हो गयी है,
हम चाहते हैं कि,
कोई और आये,
यहाँ परिवर्तन लाये,
क्योंकि...
हम आलसी, कामचोर, मक्कार हैं,
हम भ्रष्टाचार की संतान हैं ,
या..
शायद नपुंसकता की पैदावार हैं,
अब हमसे कुछ नहीं होता,
बस....सोचते रहते हैं हम,
गर कहीं कुछ हो जाए,
तो ख़ामोशी से तकते हैं हम,
हमारी बला से जहाँ जो होना है,
वो हो जाए...
बस हमपर कोई आँच आये.,
क्योंकि...
अपनी ही राख़ समेटे हुए,
इक श्मशान में रहते हैं हम...!!
और अब मेरी पसंद का तडकता-फडकता गीत...हा हा हा ...
बस हमपर कोई आँच आये.,
क्योंकि...
अपनी ही राख़ समेटे हुए,
इक श्मशान में रहते हैं हम...!!
और अब मेरी पसंद का तडकता-फडकता गीत...हा हा हा ...