Thursday, February 16, 2012

उम्र की चाय....

मैं..!!
अब अंधेरों से नहीं डरती..
क्योंकि 
विश्वास का इक दीया ;
जल रहा है मन में,
यक़ीन का सिन्दूर है मेरी मांग में,
और सिर पे भरोसे का आँचल ।
पाँव में उम्मीद की पायल  ,
हाथों में सजीं हैं कुछ पूजा सी चूड़ियाँ ,
हमारा घर....
शान्ति से बना है,
दीवारें समर्थन की हैं 
और...
तथ्यों की नींव है,
जो वास्तविकता के गारे से जुड़ीं हैं,
गरिमा के परदे लगे हुए हैं....
प्रार्थना मेरी पूँजी है
और मनोबल मेरी जागीर 
येSSSSS सामने प्रीत का आँगन है
यहीं बैठ कर हम,
अब उम्र की चाय संग पी लेंगे,
क्योंकि
तुम्हें खोने का कोई विकल्प मैंने रखा ही नहीं है...

  
एक गीत...