Wednesday, February 8, 2012

मैं तो हूँ कुछ भी नहीं...


झकझोर दिया मन ने आज,
और मुझे उठा दिया,
श्वाँस और निश्वांस में
न नाद है, न तान है
न समर्पण गान है ।
शेष स्मृति पास है,
संवेदना का ज्वार अब
उतर गया मन से कहीं ।
वस्त्रहीन भावना,
विचर रही यहीं कहीं।
अस्थियाँ सिहर उठीं, 
थीं दधिची जो कभी ।
चन्द्रमा की चांदनी
गाँठ-गाँठ हो गयी ।
मैं कामिनी, मैं दामिनी,
मैं शालिनी, संजीवनी,
प्रतिबिम्ब लिए हूँ खड़ी,
और दर्पण दरक गया ।
रश्मियाँ मेरे सूर्य की,
श्याम-श्याम हो गयीं । 
करुण हृदय-गात है,
बस 
एक सत्य ज्ञात है,
मैं तो हूँ कहीं नहीं,
मैं तो हूँ कुछ भी नहीं....