बात थोड़ी पुरानी है, हमारे भूतपूर्व प्रधानमन्त्री स्व. राजीव गांधी ने कहा था 'हमें पेड़ बोने हैं और ढेर सारे पेड़ बोने हैं :), लेकिन उन्होंने ये बात, पर्यायवरण की रक्षा के लिए कहा था । परन्तु उसी पेड़ से हमारी भावी प्रधानमन्त्री कुछ दूसरे तरीके से फायदा उठाने की सलाह दे रहे हैं । वो चाहते हैं कि Gendercide (यहाँ कन्या की बात करते हैं) अर्थात कन्या जेंडर को विलुप्त होने से बचाना है तो पेड़ लगाएं। अगर आपके घर में बेटी जन्म लेती है तो आप उसके लालन-पालन की चिंता ताख पर रख दीजिये, उसको क़ाबिल बनाने के बारे में तो आप कल्पना भी मत कीजिये।बस उसकी शादी की चिंता में आप दुबराना शुरू कर दीजिये । आप इतना मान के चलिए कि वो पढ़े कि न पढ़े, अपने पैरों पर खड़ी हो कि न हो, लेकिन उसकी शादी ज़रूर होनी चाहिए और आपको उसके दहेज़ की चिंता में, उसके पैदा होते साथ आकण्ठ डूब जाना चाहिए।
आपको उसके लिए 'नर्सरी' बनाने से पहले, भाग कर किसी 'नर्सरी' में जाना चाहिए, वहाँ से आप पांच पौधे ख़रीदें, उसे घर लेकर आयें। आप इस बात की बिलकुल भी चिंता न करें कि आप कहाँ रहते हैं, काहे से कि ऊ मान कर चल रहे हैं, हर बेटी के बाप के पास अपना 'फ़ार्म' होगा, सब सैनिक फ़ार्म में रहते हैं, फ़ार्म हाऊस लेकर। ऊ मान कर चल रहे हैं कि हर बेटी के बाप के पास, घर भले न हो दो-चार बीघा खेत ज़रूर होगा, जिसके किनारे आप ई पाँच पौधे लगा सकते हैं । चलिए, जहाँ भी आप रहते हैं, डी डी ए फ़्लैट में, झुग्गी में, एल आई जी, एम् आई जी, जनता फ़्लैट, पहला माला हो या पाँचवाँ माला, जमीन हो या न हो बस आप पांच पौधे तो लगा ही दीजिये.. और कहीं नहीं तो घर में खिड़की तो होयबे करेगी, उसीमें लटका दीजिये । फिर आप इत्मीनान से उनमें रोज़-रोज़ प्रेम से पानी डालिये, उनको सींचिये । अरे पानी का चिंता में मत दुबराईये, रोज दिन आपको दू-चार हज़ार लीटर पानी का ऊ व्यवस्था करवा देंगे, बिना सोचे-समझे ऊ कौनो बात नहीं करते हैं न.… आप भी जल्दीबाज़ी मत कीजियेगा, पूरे १८-२५ साल तक पानी देते रहिये। ई ऐसा-वैसा पौधा नहीं न हैं, ई सब आपके लिए कल्पतरु बनने वाले हैं । आप नहीं जानते ई पौधा सब, जो तब तक शायद पेड़ बन जाएँ, आपकी खिड़की में टंगे-टंगे, आपकी बिटिया के लिए दहेज़ का इंतज़ाम कर देंगे । देखिये तो केतना बढ़ियाँ बात बता दिए। आपको आपकी बिटिया को पढ़ाने-लिखाने की भी कोई ज़रुरत नहीं हुई, उसके उज्जवल भविष्य के बारे में आपको सोचना भी नहीं पड़ा। बस पेड़ लगा दिए और आपकी जिम्मेंदारी ख़तम हो गई। बेटी स्वरुप मुसीबत से पीछा छुड़ाने का महामंत्र हमारे भावी प्रधानमन्त्री आपको दे ही दिए । अरे हाँ ! 'आम' का पेड़ लगाईयेगा तो और अच्छा रहेगा, कम से कम आम आपको याद दिलाएगा कि आप कितने 'आम' हैं, आम भी खाईये और बेटी का बियाह भी रचाईये, यूँकि आम के आम और गुठलियों के दाम :)
बस तो, अब देर कौन बात का कूद जाईये बेटी के लिए दहेज़-जोगाड़ के महान आंदोलन में । टिप आपको बता दिया गया है और आपकी बिटिया का भविष्य बैठ-बैठे सँवार भी दिया गया है । बस कुछ महीने में ई संसद से पारित होकर कानून भी बन जाएगा कि जिस-जिस घर में बेटी पैदा होगी उसको पाँच पौधा लगाना ही होगा और टिम्बर बेचना होगा, बेटी का शादी के लिए । अगर जगह नहीं है तो का हुआ, १८-२५ साल में कैसा भी पौधा होगा, 'दतुवन' तो दे ही देगा। वही बेच कर बेटी का शादी कर दीजिये और जो ऊ भी न हुआ तो बाराती का खाना बनाने के लिए भाड़ झोंकने का काम में तो आईये जाएगा। अब इससे बेटर इन्वेस्टमेंट के होवे है भला, तुस्सी ही दस्सो जी !!! :):) तो जी, इसी रस्ते चले चलिए, कन्या को 'निपटाईये', कन्यादान कीजिये और लगे हाथों अपना इहलोक-परलोक सुधार लीजिये । ये है रोड टू प्रॉस्पेरिटी का मूल मन्त्र। काहे बेफजूल में कन्या की पढ़ाई लिखाई के खटराग में पड़ना।कन्या तो वैसे भी पराया धन है, कन्या के लालन-पालन, पढ़ाई-लिखाई में खर्च करना वैसे भी लगता है जैसे पडोसी के बाग़ में पानी दे रहे हैं । वैसे भी एक दिन उसको इस घर से डोली में चढ़ कर अपने घर जाना ही है, और उस घर से अर्थी पर ही निकलना है । इतनी ही तो औकात होती है कन्याओं की । अब जब कन्या पैदा हो ही गई है तो शादी करें इसकी और छुट्टी पाएँ बाकी जो इसकी किस्मत और क्या कर सकते हैं भला ????
इसी को कहा जाता है Good Governance Agenda… हाँ नहीं तो !!!
आपको उसके लिए 'नर्सरी' बनाने से पहले, भाग कर किसी 'नर्सरी' में जाना चाहिए, वहाँ से आप पांच पौधे ख़रीदें, उसे घर लेकर आयें। आप इस बात की बिलकुल भी चिंता न करें कि आप कहाँ रहते हैं, काहे से कि ऊ मान कर चल रहे हैं, हर बेटी के बाप के पास अपना 'फ़ार्म' होगा, सब सैनिक फ़ार्म में रहते हैं, फ़ार्म हाऊस लेकर। ऊ मान कर चल रहे हैं कि हर बेटी के बाप के पास, घर भले न हो दो-चार बीघा खेत ज़रूर होगा, जिसके किनारे आप ई पाँच पौधे लगा सकते हैं । चलिए, जहाँ भी आप रहते हैं, डी डी ए फ़्लैट में, झुग्गी में, एल आई जी, एम् आई जी, जनता फ़्लैट, पहला माला हो या पाँचवाँ माला, जमीन हो या न हो बस आप पांच पौधे तो लगा ही दीजिये.. और कहीं नहीं तो घर में खिड़की तो होयबे करेगी, उसीमें लटका दीजिये । फिर आप इत्मीनान से उनमें रोज़-रोज़ प्रेम से पानी डालिये, उनको सींचिये । अरे पानी का चिंता में मत दुबराईये, रोज दिन आपको दू-चार हज़ार लीटर पानी का ऊ व्यवस्था करवा देंगे, बिना सोचे-समझे ऊ कौनो बात नहीं करते हैं न.… आप भी जल्दीबाज़ी मत कीजियेगा, पूरे १८-२५ साल तक पानी देते रहिये। ई ऐसा-वैसा पौधा नहीं न हैं, ई सब आपके लिए कल्पतरु बनने वाले हैं । आप नहीं जानते ई पौधा सब, जो तब तक शायद पेड़ बन जाएँ, आपकी खिड़की में टंगे-टंगे, आपकी बिटिया के लिए दहेज़ का इंतज़ाम कर देंगे । देखिये तो केतना बढ़ियाँ बात बता दिए। आपको आपकी बिटिया को पढ़ाने-लिखाने की भी कोई ज़रुरत नहीं हुई, उसके उज्जवल भविष्य के बारे में आपको सोचना भी नहीं पड़ा। बस पेड़ लगा दिए और आपकी जिम्मेंदारी ख़तम हो गई। बेटी स्वरुप मुसीबत से पीछा छुड़ाने का महामंत्र हमारे भावी प्रधानमन्त्री आपको दे ही दिए । अरे हाँ ! 'आम' का पेड़ लगाईयेगा तो और अच्छा रहेगा, कम से कम आम आपको याद दिलाएगा कि आप कितने 'आम' हैं, आम भी खाईये और बेटी का बियाह भी रचाईये, यूँकि आम के आम और गुठलियों के दाम :)
बस तो, अब देर कौन बात का कूद जाईये बेटी के लिए दहेज़-जोगाड़ के महान आंदोलन में । टिप आपको बता दिया गया है और आपकी बिटिया का भविष्य बैठ-बैठे सँवार भी दिया गया है । बस कुछ महीने में ई संसद से पारित होकर कानून भी बन जाएगा कि जिस-जिस घर में बेटी पैदा होगी उसको पाँच पौधा लगाना ही होगा और टिम्बर बेचना होगा, बेटी का शादी के लिए । अगर जगह नहीं है तो का हुआ, १८-२५ साल में कैसा भी पौधा होगा, 'दतुवन' तो दे ही देगा। वही बेच कर बेटी का शादी कर दीजिये और जो ऊ भी न हुआ तो बाराती का खाना बनाने के लिए भाड़ झोंकने का काम में तो आईये जाएगा। अब इससे बेटर इन्वेस्टमेंट के होवे है भला, तुस्सी ही दस्सो जी !!! :):) तो जी, इसी रस्ते चले चलिए, कन्या को 'निपटाईये', कन्यादान कीजिये और लगे हाथों अपना इहलोक-परलोक सुधार लीजिये । ये है रोड टू प्रॉस्पेरिटी का मूल मन्त्र। काहे बेफजूल में कन्या की पढ़ाई लिखाई के खटराग में पड़ना।कन्या तो वैसे भी पराया धन है, कन्या के लालन-पालन, पढ़ाई-लिखाई में खर्च करना वैसे भी लगता है जैसे पडोसी के बाग़ में पानी दे रहे हैं । वैसे भी एक दिन उसको इस घर से डोली में चढ़ कर अपने घर जाना ही है, और उस घर से अर्थी पर ही निकलना है । इतनी ही तो औकात होती है कन्याओं की । अब जब कन्या पैदा हो ही गई है तो शादी करें इसकी और छुट्टी पाएँ बाकी जो इसकी किस्मत और क्या कर सकते हैं भला ????
इसी को कहा जाता है Good Governance Agenda… हाँ नहीं तो !!!
(तो जनाब ये पॉलिसीस होने वालीं हैं देश की आधी आबादी के लिए । अब हम पूछते हैं, दहेज़ देने की ज़रुरत ही क्यों होनी चाहिए ? हमारे भावी प्रधानमन्त्री दहेज़ की वकालत ही क्यों कर रहे हैं ? दहेज़ उन्मूलन कानून का क्या होगा ?? और अगर ये लड़की की शादी के खर्चे की बात है तो, बेटे की शादी में भी खर्च होता है, फिर बेटे के जन्म पर क्यों नहीं कहा जा रहा पेड़ लगाओ और यह सजेशन डेफिनेटली पर्यायवरण के संरक्षण के लिए भी नहीं है । फिर ये है क्या कोई बतायेगा ???? )
धन्य हो प्रभु !!!
Bus ek smiley..
ReplyDelete:)
duniyaa bhar se takkar lenge aur maanasikata wahi ki wahi... !!
ReplyDeleteकपड़े, जगह या पद बदलने से मानसिकता नहीं बदलती |
Deleteआपकी लिखी रचना आज बुधवार 29 जनवरी 2014 को लिंक की जाएगी...............
ReplyDeletehttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in
आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
धन्यवाद दिग्विजय जी !
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (29-01-2014) को वोटों की दरकार, गरीबी वोट बैंक है: चर्चा मंच 1507 में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद शास्त्री जी !
Deleteदहेज हो न हो, प्रथा व्यथा बन जाये, पर्यावरण तो सुधर ही जायेगा।
ReplyDeleteकोई चान्स नहीं है प्रवीण जी,
Deleteफिर लोग कन्याओं के बड़े होने के इंतज़ार की जगह पेड़ों के बड़े होने का इंतज़ार करेंगे :)
दहेज?
ReplyDeleteलड़कियों की शादी में कोई और भी खर्च होता है क्या जिसकी चिंता नमो नमो कर रहे हैं ??
Deleteअगर दहेज के अलावा दुसरे ख़र्च होते हैं तो लड़कों की शादी में भी होते ही हैं, फिर तो उसकी भी चिंता होनी चाहिए और पेड़ लगाने चाहिए।
DeleteThis comment has been removed by the author.
Deleteसब सुधीजनों के द्वारा विरोध की हो या मुझ जैसे एकाध के समर्थन की, वजह एक ही है - नरेन्द्र मोदी(मौत का सौदागर)। वरना लिखा तो आपसे भी यही गया है कि ’वो चाहते हैं कि Gendercide (यहाँ कन्या की बात करते हैं) अर्थात कन्या जेंडर को विलुप्त होने से बचाना है तो पेड़ लगाएं’
Delete@ वरना खर्च तो लड़के की शादी में भी होता ही है - बात लड़कों की भ्रूण हत्या की होती तो कहने वाला समाज को लड़के के जन्म लेने पर पांच पेड़ लगाने के लिये प्रेरित कर रहा होता।
मैंने तो नहीं कहा, न ही कहीं लिखा, लेकिन आपने भी लिख ही दिया नरेंद्र मोदी (मौत का सौदागर)....
Deleteबात सिर्फ इतनी है कि जो भावी नेता हैं, उनसे सभी उम्मीद करते हैं, भारत की आधी आबादी भी अपवाद नहीं है, जब ये नेता ऐसी बेतुकी बातें करते हैं तो…………
कन्या gendercide सदियों से होता चला आ रहा है, और इस अपराध से समाज को मुक्त करने की जिम्मेदारी तथा कन्याओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी, जनता द्वारा चुने गए नुमाईंदों पर भी होती है.। अजन्मी लडकियां हों या जीती-जागती लड़कियों को ऐसे हादसों से बचाने का ये तरीका नहीं है । ऐसे नुस्खे देने से लगता है जैसे लड़कियाँ, इंसान नहीं, कोई मुसीबत हैं, माँ -बाप के गले में अटकी हुई हड्डी हैं.। अगर कुछ कहना ही है या करना ही है तो पढ़ाई-लिखाई, नौकरी इत्यादि के सामान अवसर देने की बात होनी चाहिए, कन्या भूणहत्या रोकने के लिए कठोर कदम उठने चाहिए, दजेह को घोर अपराध माना जाना चाहिए, दहेज़ लेने-देने वालों दोनों को कानूनन अपराधी माना जाना चाहिए, न कि उसकी तैयारी के लिए भान्ति-भाँति के तरीके ईजाद किये जाएँ । वो कह सकते थे,अपने ' ' बच्चों 'को अच्छी तालीम या अच्छा जीवन देने के लिए पेड़ लगाईये ।
अगर ऐसे ही लड़की वाले, लड़केवालों की गलत मांगों को पूरा करने के लिए तरह-तरह के गुर अपनाएंगे तो दहेज़ का दानव कब मरेगा ? ऐसे अगर देते रहे फिर तो माँगों की लिस्ट कभी भी ख़तम नहीं होगी।
फिर लडकियां मोम की गुड़िया नहीं हैं कि उनको सजा-संवार कर ससुराल विदा कर दिया जाए, वो क़ाबिलियत का हर मकाम तय कर सकती हैं, उनको मौका मिलना ही चाहिए। स्वस्थ समाज पाने का सिर्फ एक ही तरीका है, लड़का-लड़की एक बराबर हैं, और पेड़ लगेंगे तो दोनों के लिए
मैं दहेज का समर्थन बिल्कुल नहीं कर रहा लेकिन दहेज लेने देने वालों को सच में कानूनन अपराधी माना जाने लगा तो बड़े बड़े परउपदेशक(दोनों जेंडर से) सजा पाते मिलेंगे। पहले भी कभी कह चुका फ़िर से एक बात बताता हूँ, कई साल पहले दूरदर्शन पर एक कार्यक्रम के दौरान एंकर ने युनिवर्सिटी में लड़कियों से दहेज के बारे में पूछा था तो जवाब सुनकर मुझे भी हैरानी हुई थी - एक भी लड़की ने दहेज से मना नहीं किया था बल्कि वो माँ-बाप से अधिकार से ये सब लेने की बात कर रही थीं। किन्हीं एकाध प्रतिशत की बात रहने दें तो दहेज सभी लेते देते हैं, बस अपनी सुविधानुसार उसे दहेज की जगह कुछ और नाम दे देते हैं या बहाने बना देते हैं कि हमने भी तो अपनी लड़की की शादी में दिया था। कुछ ऐसे भी शेखी बघारते मिलेंगे कि हमने लड़के की शादी बिना दहेज लिये की थी लेकिन लड़की अपनी खुशी से और सामर्थ्य से दे रहे हैं।
Deleteमैंने अपनी टिप्पणी में नरेन्द्र मोदी को मौत का सौदागर जानबूझकर ही लिखा था, क्योंकि उनकी जिस बात का विरोध करने के लिये पोस्ट लिखी गई है वो बात उतनी गलत नहीं है बल्कि कहने वाला नरेन्द्र मोदी है, इसलिये आपको और पाठकों को गलत दिख रही है।
मोदी के इस तरह कहने से गलत प्रभाव पड़ता है, ऐसे नहीं वैसे कहना चाहिये पर एक उदाहरण देता हूँ - किसी अच्छे समय में पत्नी ने पति को कहा, "तुम्हारी बीवी बनकर मैं धन्य हो गई।’ पति ने पूछा, "तो किसकी बीबी बनकर तुम धन्य नहीं हुई थी?’ बीवी का मुँह सूज गया, फ़िर मियाँ मनाने समझाने लगे कि तुम्हें ऐसे थोड़े ही कहना चाहिये था, ये कहना चाहिये था कि हमारी शादी से हम धन्य हो गये।
मोदी के इस तरह कहने से गलत प्रभाव पड़ता है
Deletenanih i sab baato kaa koi prabhav is liyae nahin padtaa haen kyuki yae sab kehna ek aam baat haen sabkae liyae ladkiyon ki shaadi karkae log hamesha ganga nahatae haen kyun sahii keh rahii hun naa ? ladki ki shadi karkae . kanyaadaan karkae moksh miltaa haen , kyun sahii keh rahii huu naa ? to is sab me kharch to aayegaa lekin kyaa wo kharch beti kae vivah kae nimit haen yaa apni "mukti kae nimit " sochiyae jarur
बल्कि कहने वाला नरेन्द्र मोदी है,
jee haan is liyae ek public platform par khade hokar kyaa kehna haen yae sochna nitant aavshyak haen modi kae liyae par sambhav haen hi nahin kyuki unki maansiktaa me aurat beti ho sakti haen par "barabar { equal } " nahin ek bhi laain unkae bhashan me yae nahin thee ki beti ko barabar maane
एक भी लड़की ने दहेज से मना नहीं किया था बल्कि वो माँ-बाप से अधिकार से ये सब लेने की बात कर रही थीं
is baat sae maeri puri sehmati haen ki dahej ki maang ladkiyaan kartii haen kyuki har wo gehna kapda jo shaadi par hotaa haen unkae liyae wo vastav me dahej hi haen
kyun kartii haen kayii karna haen aur un mae sabse badaa haen ki wo patrik sampati par apna adhikaar chahtii haen aur shaadi kae baad unko kyaa milaegaa kyaa nahin is par hamesha sashankit rehtii haen kyuki
the tree that was planted when she was born would be sold for her marriage so what will she get after marraige ??? :)
@ patrik sampati par apna adhikaar chahtii haen aur shaadi kae baad unko kyaa milaegaa kyaa nahin is par hamesha sashankit rehtii haen kyuki -
Deleteफ़िर तो यही तर्क लड़के भी दे सकते हैं कि बहन की शादी में पिताजी ने इतना खर्च किया था इसलिये पैतृक संपत्ति पर उसका उतना हक नहीं बनता। वैसे इस विषय पर पहले भी शायद इसी ब्लॉग पर एक बार चर्चा हो चुकी है।
देखा जाये तो इस बराबर की हिस्सेदारी से लड़कों को ऐतराज नहीं होना चाहिये - बहन अपना हिस्सा लेगी तो बीबी भी तो अपने मायके से अपना हिस्सा लेगी न? प्रैक्टिकली होगा ये कि संपत्ति की संभाल\रख-रखाव और ज्यादा जटिल होगी। बाहर के लोग ज्यादा लाभान्वित होंगे. हाँ नारियों को ये सुकून जरूर मिल सकता है कि हमने अपना हिस्सा ले लिया।
all are baunae { drawfs}
ReplyDeleteऐसी ही बातों से लोगों का क़द पता चलता है ।
Deleteवैसे भी एक दिन उसको इस घर से डोली में चढ़ कर अपने घर जाना ही है, और उस घर से अर्थी पर ही निकलना है ।
ReplyDeletefor both timber is needed !!
सही कहतीं हैं आप ।
Deleteये भी कह देते कि लड़की पैदा होते साथ किरासन तेल का भी इंतज़ाम करना शुरू कर दो, क्या जाने कब ज़रुरत आन पड़े तो और बेहतर होता ।
लड़कियाँ कितना बड़ा बोझ हैं माँ-बाप पर इसका अहसास, कूट-कूट कर भरा इनके इस कथन में है ।
भगवान जाने ये लोग क्या सोच के क्या बोलते हैं... :-(
ReplyDeleteफिलहाल तो हिन्दुस्तान के भगवान् यही हैं, और भगवान् को सोचने की ज़रुरत ही कहाँ पड़ती है, जो भी बक दिया वो सही ही होता है.।
Deleteपहले तो शीर्षक देख कर ही मुस्कान आ गयी ,वैसे जाने वाले की बात पर नहीं हँसा जाता पर जैसे कानों में सुनायी दे गया.."हमें पेड़ बोने हैं...:)
ReplyDeleteकोई भी नेता हों, पब्लिकली वे क्या बोलते हैं...उन्हें इसका ख्याल रखना चाहिए, ये भी कहा जा सकता था , 'बच्चे बड़े हो जाएंगे तो उनकी शिक्षा-दीक्षा पर खर्च किया जा सकता है.' ..पर लड़की की शादी का खर्च उठाने के लिए पेड़ लगाने की सलाह ' नहीं समझ आती...फिर तो जैसा चला आ रहा है, वैसा ही आगे चलता रहे ,इसके उपाय बताये जा रहे हैं . यानि आपको लड़की के गहने-कपडे-दहेज़ के लिए कर्ज नहीं लेना पड़ेगा...पेड़ लगाइए और गहने-कपडे-दहेज़ -बरात के स्वागत-सत्कार का खर्च उठाने में सक्षम हो जाइए .देश- समाज बदलने की , उनमें परिवर्तन लाने की कोई कोशिश भी नहीं .
वोई तो !
Deleteवही पुराना सामान लेकिन नई पैकिंग के साथ पेश-ए-ख़िदमत है । इसमें देश-समाज, सोच, मानसिकता इत्यादि-इत्यादि बदलने की बात या पहल ही कहाँ की जा रही है ? मतलब ये कि 'बदलाव ' की हुंकार भरने, रोड टू प्रॉस्पेरिटी की बात करने वालों के राज में भी, सबकुछ वही होगा, 'बेटी' का बाप जहाँ का तहाँ रहने वाला है, 'बेचारा' और 'लाचार' :(
खुदा का शुक्र है किसी आदमी की बेचारगी और लाचारी पर नजरें इनायत हुईं, वरना तो ...:)
Deleteआप शौक से ये ग़लतफ़हमी पालिये कि हमें आदमीयों से सहानुभूति नहीं है । लेकिन जब दहेज़ देना पड़ता है तो क्या सिर्फ बाप ही परेशान होता है, माँ परेशान नहीं होती ? जी नहीं, माँ भी उतनी ही हलकान होती है । मेरी बात नहीं मानने की कसम खाई है क्या आपने ??
Deleteकही ये मनमोहनसिंग के इन शब्दो के ऐवज में तो पौधे लगाने कि बात नहीं कही है कि" पैसे क्या पेड़ पर उगते है "?
ReplyDeleteनहीं शोभना दीदी, पेड़ बोने की बात एक बार राजीव गांधी जी ने कही थी :)
Deleteबताईये भला पेड़ भी कहीं बोये जाते हैं ? :)
मनमोहनसिंह के क्या कहने, उनके लिए तो यही कहेंगे बिल्ली के भाग से छींका टूटा है :)