Saturday, January 11, 2014

बचना है तो बच ही जाओ, शामत अब तुम्हारी है ......

पथरीले बिस्तर पर सोना, क़िस्मत है, लाचारी है  
पर नरम बिछौनों की भी तो अपनी ही दुश्वारी है 
कौन उतरना चाहेगा, ग़ैर के गँदले आँगन में  
जब हर आँगन की अपनी ही ऊँची चहारदीवारी है 
जीती है आवाम यहाँ, चुल्लू भर पानी पीकर 
वो लूट गए अरबों-खरबों, जैसे रेज़गारी है  

जी लेते हैं 
वो अक्सर, दमड़ी-दमड़ी गिन-गिन कर 
पिन्दार-ए-तमन्ना बचा के रखना, ख़ुदकी जिम्मेदारी है 

बिजली हो या पानी हो, जब भी हमने हक़ माँगा 

वो कहते हैं, अजी बात सुनो, ये मुआमला ज़रा सरकारी है
कुछ लोग अंधेरों में जीते हैं, और वहीँ मर जाते हैं   
ऐसे सिरफिरों के लिए तो रौशनी इक बीमारी है !

तौक़-ए-आईने की इजाज़त, कमशक्लों को नहीं होती है    
तकते रहना आधी सूरत, कहाँ की समझदारी है  ?

ललकार रहे मिलकर सारे, हम जैसे सोज़ निहत्थों को 
फिर कहते हैं तुम चाल चलो, अब अगली चाल तुम्हारी है

अब जान का सदक़ा भी लेना, जब जान पे सबकी बन आये  
इतनी जानों की किस्मों में, उम्दा जान तुम्हारी है

तेरे पैंतरे लूट के ऐसे, कुछ बच जाए तो बड़भागी  
हम नामाक़ूल शिकार के पीछे, वो माक़ूल शिकारी हैं 

हाज़िर तो हो जाते हैं 'अदा', हम उनके ख़ैरमक़्दम को  
पर उनका आना, क्या आना, यूँ लगे ज्यूँ मालगुज़ारी है 

मोड़ के ही रख देना है रुख़, वक्त के बहते धारे का   
बचना है तो बच ही जाओ, शामत अब तुम्हारी है 

(पिन्दार = गुरूर)
(तौक़ = इच्छा)
(सोज़ = आवेशपूर्ण)
(ख़ैरमक़्दम= स्वागत )






22 comments:

  1. बहुत सुन्दर!! हमरो अनदर सायरी का कीड़ा कुलबुलाने लगा दीदी...

    लोकतंत्र की असली सूरत खूब दिखाई है दीदी,
    सबकुछ सहकर जीते रहना जनता की लाचारी है!
    सब के हाथ में ख़ंजर हैं, सब गला काटने वाले हैं,
    फिर भी इक क़ातिल को चुनना अपनी ज़िम्मेवारी है!
    सारे इक जैसे दिखते हैं मनमोहक मुस्कान लिये,
    कौन है साधु, कौन यहाँ पर पक्का भ्रष्टाचारी है!
    दूध धुले हम, चोर है दूजा, यही चल रहा चारो ओर,
    है अरविन्द, नरेन्दर मोदी, राहुल की बीमारी है!
    'सलिल' लेटकर कविता करना, होता है आसान बहुत,
    जागो, खोलो आँखें, चुन लो, आई तुम्हारी बारी है!

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    1. बहुत सुन्दर सलिल जी...। जबरदस्त।

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    2. वाह सलिल भईया का बात कह दिए !!
      लोकतंत्र के चूल्हे में हम कई पकवान बनाएंगे
      अरविन्द तहरी, मोदी लड्डू और राहुल तरकारी है :)
      बहुत बहुत आभार !

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    3. सिद्धार्थ जी,
      सलिल भईया और मेरी तरफ से धन्यवाद कबूलिये !

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  2. दो सेंट अपने भी ...
    उनकी विधवाओं के घर भी हड़प कर जाते हैं,
    इनकी रक्षा के लिए जिन्होने जाँ अपनी निसारी है

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    1. सेंट काहे से कह रहे हैं, ई तो पूरा डॉलर है :)
      धन्यवाद !

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    1. निहार जी,

      ज़बरदस्त ही कहना है अब, ज़बरदस्त ही लिखना है
      हैं ज़बरदस्त हम, ज़बरदस्ती, जबरदस्तों को दिखना है

      धन्यवाद !

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    1. ओंकार जी,
      सटीक की, सटीकता, सटक न जाए कहीं, दुआ कीजिये।
      शुक्रिया !

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  5. आज तो ओज़ गुण से ओत प्रोत !

    लिखते रहिये।

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    1. आज ऐसा ही था कुछ :)
      आभार !

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    2. काहे जनाब !
      अब हम 'ख़ास' की बन्सरी नहीं बजा सकते का ??

      यूँकि …………… अब जब आप पूछ ही रहे हैं तो हम बताय देते हैं, आज सारा 'ख़ास' था :)
      हाँ नहीं तो !

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  6. वाह क्या बात है ,
    बन्दर बैठा शाख पर ,लाल मुंह का
    टोपी ले लो, टोपी ले लो
    तुम न बदले तो अब बारी हमारी है।

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    1. शोभना दीदी,

      आज तक हमने इन्हीं लाल मुंह वाले (अब लाल टोपीवाले) बंदरों से अपने दुश्मनों से अपनी रक्षा की उम्मीद की थी और तलवार थमा दिया था, लेकिन इतने सालों से किया क्या, सिर्फ तलवार भांजते रहे :)

      धन्यवाद दीदी !

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  7. ललकार रहे मिलकर सारे, हम जैसे सोज़ निहत्थों को
    फिर कहते हैं तुम चाल चलो, अब अगली चाल तुम्हारी है

    क्या बात ...बहुत खूब

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    1. हौसलाफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया रश्मि !

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  8. संकेतों का समझा समझदारी है।

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