Monday, January 13, 2014

कोई माने या न माने, कुछ तो अंतर है !



प्रजा-तंत्र और राज-तंत्र में ये फर्क होता है :)

जनता के असली सेवक कुर्सी का लोभ छोड़ जमीन पर उतर आते हैं, जबकि दूसरे……………………… :)

चाँदी के बर्तनों में खाने वाले सूखी रोटी का स्वाद अब कैसे बताएँगे ?

16 comments:

  1. बोलती चित्र के साथ अति उत्तम पोस्ट !
    मकर संक्रांति की शुभकामनाएं !
    नई पोस्ट हम तुम.....,पानी का बूंद !
    नई पोस्ट लघु कथा

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  2. दिल के बहलाने को गालिब, ये ख्याल अच्छा है!!

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    1. हम आह भी भरते हैं तो, हो जाते हैं बदनाम,
      वो क़त्ल भी करते हैं तो, चर्चा नहीं होता !!

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  3. हमें सच ही आदत ही नहीं रही. सच अब झूठ लगता है क्योंकि हमें झूठ से मोह है ..

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    1. सही कहते हैं आप काजल जी,
      कहीं एक कमेंट देखे थे 'आईना झूठ नहीं बोलता' हैम कहे कि आईना हमेशा झूठ बोलता है दायाँ को बायाँ दिखाता है, तो जवाब मिला उससे क्या हुआ दायाँ को बायाँ दिखाता है लेकिन हमेशा बायाँ ही दिखाता है, तातपर्य यह हुआ कि हम ख़ालिस झूठ को न सिर्फ सच मानते हैं, उसकी वकालत भी करते हैं :)

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  4. क्या कहा जाए स्वप्न जी , मगर जनता सब कुछ देखती समझती है और सच कहूं तो समझ भी रही है ...

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    1. पहले भी जनता समझती थी, लेकिन समझ कर भी चुप रहती थी.। अब जनता न सिर्फ समझ रही है, उसको अपनी समझ को व्यक्त करने का भी मौका मिल रहा है.।

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    2. झा जी,
      बहुत दिनों बाद आप दिखे, ख़ुशी हुई आपको देख कर । नव वर्ष की ढेर सारी शुभकामनायें !

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  5. हाँ अंतर तो है ही...और कुछ क्यूँ...बहुत बड़ा अंतर है, अब कहाँ पांच बेडरूम का घर लेने की बात पर हंगामा और १५० करोड़ लागत के बुलेटप्रूफ ऑफिस के निर्माण पर चुप्पी .

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    1. डेढ़ करोड़ का बुलेटप्रूफ़ आवास का ज़रुरत किनको होता है ई भी एक सोचने वाली बात है :)

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  6. दीदी तब तो इसके बगल में एक फोटो उस उल्लूक शिरोमणी की भी लगनी चाहिए जिसमें उनको एक ग़रीब के झोपड़े में सूखी रोटी खाते हुए दिखाया गया था..!!

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    1. लगा तो देते हम सलिल भईया अगर ऊ पोज मार का खिंचाया नहीं होता तो :)

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  7. क्षमतायें और व्यक्तित्व भोजन की थाली से नहीं आँका जाता, सदियों के कृत्य इतिहास लिखेंगे, यह तुलना सतही है।

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  8. अभी तो शुरुआत है, आगे-आगे देखिए होता है क्या..

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