Wednesday, December 2, 2009

अब कौन भला इनको सुलझाएगा ?


वो आईना हूँ मैं, तेरे घर का

उसमें सबका चेहरा, नज़र आयेगा,

कभी ठोकर ना लगाना भूल कर भी

नहीं तो सारा वजूद, बिखर जायेगा,

और अब टहनी पर चाँद खिलाना छोड़ दे

ये भांडा भी ,इक दिन फूट जायेगा

मत खेल अपनी साँसों से, इस तरह

कहीं दम निकल जाये, तो बहुत पछतायेगा,

और छुपे छुपे से हों, जब अक्स सारे

पूरा चेहरा भला कैसे नज़र आयेगा ?

जब गांठों के ढेर बन गए हों रिश्ते

अब कौन भला इनको सुलझाएगा ?

26 comments:

  1. "और छुपे छुपे से हों, जब अक्स सारे
    पूरा चेहरा भला कैसे नज़र आयेगा ?
    जब गांठों के ढेर बन गए हों रिश्ते
    अब कौन भला इनको सुलझाएगा ?"

    हाँ मैं आईना हूँ. झूट नहीं कह सकता हूँ.
    -

    आईना दिखाती एक मर्मस्पर्शी रचना.

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  2. और छुपे छुपे से हों, जब अक्स सारे

    पूरा चेहरा भला कैसे नज़र आयेगा ?

    जब गांठों के ढेर बन गए हों रिश्ते

    अब कौन भला इनको सुलझाएगा ?

    वाह ! लाजबाब !

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  3. छुपे छुपे से हों, जब अक्स सारे

    पूरा चेहरा भला कैसे नज़र आयेगा ?

    और जब गांठों के ढेर बन गए हों रिश्ते

    अब कौन भला इनको सुलझाएगा ?

    बहुत खूब। सुंदर रचना पढ़वाने के लिए आभार।

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  4. श्री अशोक पाण्डेय ने कहा ::
    और छुपे छुपे से हों, जब अक्स सारे

    पूरा चेहरा भला कैसे नज़र आयेगा ?

    और जब गांठों के ढेर बन गए हों रिश्ते

    अब कौन भला इनको सुलझाएगा
    बहुत खूब, सुन्दर रचना पढवाने के लिए आभार..

    @अशोक जी,
    किसी कारणवश आपकी टिपण्णी पोस्ट नहीं हो रही हूँ...क्षमाप्रार्थी हूँ...

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  5. "वो आईना हूँ मैं, तेरे घर का
    उसमें सबका चेहरा, नज़र आयेगा,"

    दर्पन झूठ ना बोले ...

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  6. "वो आईना हूँ मैं, तेरे घर का
    उसमें सबका चेहरा, नज़र आयेगा,"

    दर्पन झूठ ना बोले ...

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  7. "और अब टहनी पर चाँद खिलाना छोड़ दे

    ये भांडा भी ,इक दिन फूट जायेगा"

    गजब-गजब रंग हैं आपकी रचनाओं के । अभी कुछ ही देर पहले पढ़ी गज़ल और अभी पढ़ी यह रचना !

    ’टहनी पर चाँद खिलाना’ मुहावरा बन गया ये ! आभार ।

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  8. और छुपे छुपे से हों, जब अक्स सारे

    पूरा चेहरा भला कैसे नज़र आयेगा ?

    जब गांठों के ढेर बन गए हों रिश्ते

    अब कौन भला इनको सुलझाएगा ?
    waah waah !!
    aapki rachnasheelta ka koi jawab nahi hai Ada ji.
    kuch bhi aap likh detin hai bas sacchai ka hi aaina hota hai.
    main to roj padhta hun bas comment nahi karta hun. lekin har baar hairan ho jaata hun.

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  9. ’टहनी पर चाँद खिलाना’ मुहावरा बन गया|

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  10. अच्छी कविता ...
    जहाँ - तहां अच्छे बिम्ब उकेरे गए
    है , जैसा कि हिमांशु भाई ने कहा --- '' टहनी पर
    चाँद खिलाना '' आदि |

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  11. कोई लाख छुपायेगा...एक दिन सब नजर आएगा ....अपने मन के आईने से टकराएगा ...खुद ही रिश्तों की गांठ भी सुलझाएगा ..

    टहनी पर चाँद कैसे खिलाता है ...कौन खिलाता है ...
    दो दिन तक चिंतन की खुराक मिल गयी है ...!!

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  12. जब गांठों के ढेर बन गए हों रिश्ते
    अब कौन भला इनको सुलझाएगा ?

    रिश्तो मे गाठ न पडे. पड जाये तो सुलझाते सुलझाते उलझते जाते है.
    सुन्दर बहुत सुन्दर रचना

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  13. और अब टहनी पर चाँद खिलाना छोड़ दे

    ये भांडा भी ,इक दिन फूट जायेगा

    बहुत बढिया अभिव्‍यक्‍ति ।

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  14. गांठें -शब्द से ही दहशत होती है -और यहाँ तो कई गांठों का जिक्र है !

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  15. बढिया अभिव्‍यक्‍ति...

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  16. Uljhanonka prateek ye chitr...uff!Zindagee me rishte nibhaneme har koyi kitna ulajh jata hai...ek dar-sa lagta hai!

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  17. रिश्तों की गाँठों को सुलझाना तो कठिन है लेकिन चित्र में जो दिख रहा है उसे टेलीफोन वाला सुलझा सकता है ।

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  18. ada ji,

    koi uljhaa huaa hi suljhaayega.....

    suljhaa hua kab suljha paaya hai koi bhi gaanth....??????


    jaraa sabr ke saath likha kijiye aap.....

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  19. आइना वही रहता है,
    पर चेहरे बदल जाते हैं...

    जय हिंद...

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  20. और जब गांठों के ढेर बन गए हों रिश्ते
    अब कौन भला इनको सुलझाएगा
    सही कहा...इतनी गांठें कोई कहाँ तक और कितनी बार सुलझाएगा....सुन्दर रचना

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  21. जब गांठों के ढेर बन गए हों रिश्ते

    अब कौन भला इनको सुलझाएगा ?

    sari rachna ka nichod in panktiyon mein sama gaya hai.......bahut hi sundar bhav.

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  22. बहुत सुन्दर सच कहती बढ़िया रचना

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  23. और छुपे छुपे से हों, जब अक्स सारे

    पूरा चेहरा भला कैसे नज़र आयेगा ?

    जब गांठों के ढेर बन गए हों रिश्ते

    अब कौन भला इनको सुलझाएगा ?

    aapke baat ko samne rakhne ka andaaj bahut hi niraala hai.
    bahut khoob !!

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  24. वो आईना हूँ मैं, तेरे घर का
    उसमें सबका चेहरा, नज़र आयेगा,

    कभी ठोकर ना लगाना भूल कर भी
    नहीं तो सारा वजूद, बिखर जायेगा,


    गजल का हर एक अशआर एक से बढ़कर एक है!

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  25. hmmm... kaise chod dein tahni par chand khilana.. koi to sahara chahiye jeene ko!!! wo chand nahi to yahi sahi...

    jab rishte gaanth ban jaayein to suljhane ki koshish mein zindgi khapa dene ke siwa aur option bhi kya rah jata hai??

    padhkar ,as usual, accha laga...

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