Monday, December 7, 2009

कब आओगे ..??


बात तब की है जब मैं मुंबई में थी....एक television production कंपनी में assistant प्रोडूसर के पद पर काम कर रही थी...कम्पनी का नाम S.M.Isa Production था....हमलोग Scandenavian televison के लिए दो documentaries बना रहे थे...एक थी मुंबई के मछुआरों पर और दूसरी मुंबई के फिल्म स्टार्स की अपनी जिंदगी पर...अर्थात स्टूडियो के बाहर उनकी ज़िन्दगी कैसे बीतती है....मैं मुंबई सेंट्रल के करीब ही Salvation Army के girls hostel में रहती थी...मेरा ऑफिस जुहू में था...रोज रोज मैं local trains में सफ़र करती थी.....इन दिनों सिर्फ मुंबई के मछेरों की ही शूटिंग चल रही थी...फिल्म स्टार्स की फिल्म की स्क्रिप्ट कर काम हो रहा था....दिन भर हमलोग मछेरों की बस्ती में ही घुसे रहते....कितने राज और कितनी बातों का खुलासा होता रहा बता नहीं सकती ....

ज्यादातर मछेरे सिर्फ मछेरे नहीं थे.....मछली पकड़ने के साथ साथ तस्करी भी इनके काम में शामिल था.....आपको बता नहीं सकती हर बार हम कितने हैरान हो जाते थे...इन मछेरों की झुग्गियों में आपको दुनिया का हर सामन मिल सकता है....सोना, इलेक्ट्रोनिक्स, कीमती पत्थर, चरस गांजा, यहाँ तक कि विदेशी गाड़ियाँ भी इन्ही झग्गियों के अन्दर देखा है मैंने ....कितना वैभव हैं इन झुग्गियों में इसका अंदाजा भला कोई कैसे लगा सकता है ???.....

खैर...मछुवारों की फिल्म की समाप्ति के बाद हमलोगों ने दूसरी फिल्म 'रियल स्टार' जो कि फिल्म स्टार्स के निजी जीवन पर आधारित थी...पर काम करना शुरू किया.....इसके लिए हम लोग फिल्म studios में ही जाया करते थे...जहां फिल्म स्टार्स शूटिंग किया करते थे....और क्यूंकि यह फिल्म विदेशी टेलीविजन के लिए बन रही थी इस लिए स्टार्स भी हमसे बात करने और हमें समय देने में कोई कोताही या नखरा नहीं करतेथे ...

अँधेरी में कई फिल्म स्टडियो थे और मुझे अक्सर लौटने में काफी रात हो जाया करती थी ....इसलिए मैंने सोचा ...अँधेरी में ही अगर कोई जगह मिल जाए.... रहने के लिए तो बेहतर होगा....मैंने ऐसी जगह कि तलाश शुरू कर दी.....और मुझे एक जगह मिल ही गयी...

जिया लोबो...नाम था उस गोवन महिला का..... वो अँधेरी ईस्ट में एक चाल में अकेली रहती थी...उनके घर में दो कमरे थे....एक किचन.....उसी में एक कोने में नहाने की जगह.....और टोइलेट सामूहिक बाहर था.....उनके पति साउदी में काम करते थे ...मेरे लिए यह arrangment अच्छा था ...जिया आंटी ने मेरी खाने की भी जिम्मेवारी ले ली थी .... जो कि सोने पर सुहागा था.... जेमिनी , नटराज , फिल्मिस्तान इन studios तक पहुंचना अब आसान था ...बस हम स्टार्स से appointment लेते ...वहां उनकी शूटिंग करते उनके घरों में शूटिंग करते....कहने का तात्पर्य मेरी ज़िन्दगी थोड़ी सी आसन हो गयी....जिया आंटी के जीवन में भी मेरे आ जाने से बहुत खुशियाँ आ गयी....उनके कोई बच्चा नहीं था ..इसलिए मुझे ही बेटी बना लिया था .....मुंबई के जीवन में भी धीरे-धीरे रमने लगे हालांकि आसन नहीं था.....'गणपति' जी के त्यौहार भी आया इसी दौरान .... सड़कों पर बड़े बड़े स्क्रीन लग जाते और हमलोग सड़क पर बैठकर फिल्म देखते रात को....और नाम सुनते जाते कि फलाने ने इतना पैसा दिया इस फिल्म को दिखाने के लिए... धीरे-धीरे दूसरे चाल वालों के साथ मेरी बहुत अच्छी पहचान हो गयी....और सभी मुझे बहुत प्यार भी करने लगे....

एक दिन मैं ऑफिस से आई तो घर लोगों से भरा था....अजीब सनसनी का वातावरण था ...सब दुखी से बैठे थे....और जिया आंटी....को लोग सम्हाल रहे थे वो रो रही थी....जिया आंटी की माँ भी आ गयी थीं....मुझे कुछ भी समझ में नहीं आया....मैंने एक और आंटी जिनका नाम मुझे इस वक्त याद ही नहीं आ रहा ....एक नाम दे देरही हूँ ....'प्रभा' ...काफी हंसमुख औरत थी....हर वक्त हँसना और हँसाना ही उनका काम था....उनको इशारे से बुला कर पूछा....क्या हुआ है...???
उन्होंने बताया ...जिया का मरद साउदी जेल में है......मैंने पूछा क्यूँ ?? उन्होंने बोला ..अबी नै तेरे कूँ बाद में बोलती मैं....मैंने कहा ठीक है.....

शाम होने लगी अब लोग आपने-अपने घरों को जाने लगे....बस मैं...जिया आंटी, जिया आंटी की माँ और प्रभा आंटी ही रह गए.....जिया आंटी अब भी बेहाल थीं....अपनी माँ से चिपक कर बैठीं थी....कितना सच है...इंसान कितना भी बड़ा हो जाए....सुकून उसे माँ की गोद में ही मिलता है....मेरा मन अभी भी उद्विग्न था असल बात क्या है मुझे अभी तक पता नहीं चला था....और जानने की बहुत ही प्रबल इच्छा थी...मैंने प्रभा आंटी से कहा कि अब तो बताओ...उन्होंने इशारे से मुझे मेरे कमरे में चलने को कहा...और हम दोनों मेरे कमरे में आ गए...बिस्तर पर बैठ कर जो प्रभा आंटी ने मुझे बताया वो कुछ इस तरह था....

जिया आंटी के हसबैंड का नाम फर्नान्डो था...वो साउदी में किसी शेख के यहाँ ड्राईवर की नौकरी करते थे....शेख के महल में और भी भारतीय नौकर थे ..शेख के घर एक रसोईया भी था इकबाल भारत का ही रहने वाला था....वो हैदराबादी मुसलमान था...तकरीबन २५ वर्ष का इकबाल देखने में खूबसूरत और खाना बनाने में माहिर था...हर तरह का खाना बनाने में प्रवीण इकबाल की वजह से ही शेख साहब की पार्टियां कामयाब होती थी....पड़ोस में ही एक और शेख थे उनके घर में नाजनीन नाम की आया घरेलु कामों के लिए थी ....... वो भी भारत के शहर हैदराबाद की ही लड़की थी..... उसकी भी शादी नहीं हुई थी....पास -पड़ोस में होने की वजह से इकबाल और नाजनीन आपपास में कई बार टकराए....और उनके बीच प्रेम हो गया....दोनों को ही इसमें कोई समस्या भी नहीं लगी क्यूँकी ...जात एक...प्रान्त एक....मज़हब एक और दोनों एक दूसरे को पसंद तो करते ही थे....इकबाल ने अपने घर में भी बता दिया अपनी अम्मी से कि .....कोई लड़की देखने कि ज़रुरत नहीं...मैं यहाँ तुम्हारी बहू पसंद करचुका हूँ....

इकबाल ने अपने प्रेम की बात फर्नान्डो अंकल को बता दी....फर्नान्डो जी को बहुत ख़ुशी हुई और इस सम्बन्ध के लिए अपनी सहमती भी जताई....अब इकबाल और नाजनीन एक दूसरे से मिलने की जुगत में रहते.....और इसमें फर्नान्डो अंकल ने उनका साथ दिया....उन्होंने कभी-कभी अपना कमरा दोनों को देने में कोई बुराई नहीं समझी.....चोरी छुपे वो मिलने लगे.....लेकिन यह चोरी जग जाहिर हो गयी जब नाजनीन....में माँ बनने के आसार नज़र आ गए....यह साउदी में इतना बड़ा गुनाह था कि बस दोनों मासूमों पर कहर ही टूट पड़ा....
नाज़नीन और इकबाल को कैद कर लिया गया.... साथ ही फर्नान्डो अंकल भी गिरफ्तार हुए ...उनका साथ देने के कारण.....इकबाल और नाजनीन को मौत कि सजा सुना दी गई है .....फिलहाल तीनों जेल में हैं ....और यही खबर आई थी उस दिन....


उस दिन के बाद से घर का माहौल बहुत ही दुखी रहा ....कोई कुछ भी नहीं कर सकता था....सब बस हाथ पर हाथ धरे बैठ गए.....दिन बीतते गए ....हमारी फिल्म पूरी हो गयी....और मुझे वापस आजाना पड़ा....
शुरू-शुरू में मैं लगातार जिया आंटी को ख़त लिखा करती थी और जानना चाहती थी कि क्या हुआ.....लेकिन उनके पास भी बताने को कुछ था नहीं......काफी समय बीत गया...एक बार मुझे मुंबई जाना पड़ा किसी काम से .....तो मैंने सोचा जिया आंटी का हाल-चाल पूछ लूं ....और पहुँच गई....प्रभा आंटी रास्ते में ही मिल गयी और मुझे पहचान भी लिया....उन्होंने रास्ते में ही मुझे बताना शुरू कर दिया....फर्नान्डो आ गया है.....मुझे इतनी ख़ुशी हुई मैं ..चिल्लाने लगी....कहने लगीं वो...लेकिन अब ये वो फर्नान्डो नहीं है...किसी से बात ही नहीं करता है...बहुत चुप रहता है.....मैंने पुछा और इकबाल-नाज़नीन का क्या हुआ.....उन्होंने बताया.....इकबाल को तो तुरंत ही मार डाला गया था....बस हमलोगों को पता नहीं चला.......उसे ज़मीन में गड्ढा खोद कर गाड़ दिया था ....और लोगों ने पत्थर मार मार कर उसको मारा था .....नाजनीन को उसके बच्चे के पैदा होने तक ...जेल में रखा गया था....बच्चे के जन्म के बाद ....उसे भी उसी तरह ज़मीन में गाड़ कर ...पत्थरों से मारा गया ....और उन दोनों का बच्चा अभी भी साउदी सरकार के पास है.....उस बच्चे कि परवरिश कि सारी जिम्मेवारी साउदी सरकार ने ले ली है.....फर्नान्डो को छोड़ दिया गया....फर्नान्डो अपने मुलुक तो वापिस आ गया है....लेकिन जिया के पास वापिस कब आयेंगा मालूम नई.....गणपति बाप्पा जिया का इंतज़ार कब ख़तम होयेंगा.....???

21 comments:

  1. बहुत ही हृदयविदारक घटना का वर्णन किया है,आपने...मैंने भी 'प्रिंसेस ऑफ सउदी अरेबिया' किताब में यह जिक्र पढ़ा था कि बच्चे के जन्म लेने तक सरकार माँ की देखभाल की जिम्मेवारी अपने ऊपर ले लेती है और फिर बच्चे के जन्म के बाद माँ को पत्थरों का निशाना बना मार डालते हैं (की-बोर्ड भी इनकार कर रहा है ऐसे जघन्य कृत्य को लिखने से)...उन पत्थर मारने वालों की भीड़ में एक डॉक्टर भी होता है जो हर थोड़ी देर बाद नब्ज़ देखकर घोषित करता है कि उसे और पत्थर मारने हैं या उसकी ईहलीला समाप्त हो गयी है.इस से आगे कुछ लिखना अब मुमकिन नहीं

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  2. वहाशियत की हद से भी आगे की बात है यह तो.

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  3. किस तरह के नियम-कानून हैं ये ? इतनी दरिंदगी !
    मन अजीब हो गया ।

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  4. .
    .
    .
    और हद तो यह है कि दुनिया में ऐसे भी कुछ सरफिरे हैं जो इन अमानवीय कानूनों को पूरी दुनिया पर लागू करने का मनसूबा लिये निकल पड़े हैं... जेहाद करने... कुछ तो नेट पर भी कर रहे हैं यह जेहाद 'की बोर्ड' से...

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  5. madam ji,
    us desh mein aisaa hi hotaa hai.

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  6. बहुत ही मार्मिक घटना है यह । मन वित्रिष्णा से भर उठा ।

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  7. इस दुनिया में लोग आदिम जिन्दगी से ले कर आधुनिक जीवन तक के सभी ऐतिहासिक जीवन जी रहे हैं। न जाने कब इंसानियत का शासन पूरी दुनिया पर हो सकेगा?

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  8. अदा जी,

    फिर कभी चर्चा करूंगा....
    इस बात पर...

    मनु..;;बेताखाल्लुस''

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  9. दरिंदगी की हद है ...इतने भयानक कानून और उनकी इस कदर पालना ....
    विश्व मानवाधिकार आयोग कहाँ गया ....!!

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  10. "प्रेम ही ईश्वर है! (Love is God!)"

    इस संस्मरण ने साबित कर दिया कि यह संसार का कितना बड़ा झूठ है।

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  11. मार्मिक संस्मरण अदा जी , इसीलिए मेरा मत है कि हमारा देश जरुरत से ज्यादा नरमदिल है कुछ लोगो के लिए, जिसका वे लोग नाजायज फायदा उठाते है! मेरा एक केरल का दोस्त था मैथ्यू, १९८८ के आस पास की बात है, हम दोनों दिल्ली के ग्रीन पार्क स्थित एक च्विंगम बनाने वाली फ्रांस की कंपनी के हेड ऑफिस में काम करते थे ! कुछ समय बाद मैथ्यू सउदी अरबिया चला गया, मार्क्सवाद का समर्थक मैथ्यू जब दो साल बाद वापस लौटा तो फिर उसने उसी पुरानी कंपनी में नौकरी ज्वाइन कर ली थी लेकिन अब वह पुराना वाला मैथ्यू नहीं था, जनसंग का कट्टर समर्थक था ! मैंने कुछ समय पहले एक ऐसे ही कुछ-कुछ सत्य घटना पर आधारित एक कहानी लिखी थी "वो कौन थी" , उसके कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ उम्मीद है आप बुरा नहीं मानेगी ;

    "....होटल मैनेजमेंट का डिप्लोमा करने के तुंरत बाद मुकेश को रियाद में एक होटल में नौकरी मिल गई, और वह साउदी अरब चला गया । इतनी दूर आकर भी उसे अपने देश, गाँव, परिवार और कृष्णा की याद हमेशा सताती। वह वहाँ नौकरी तो कर रहा था, मगर दिल में हर वक्त अपने वतन की ही खुसबू समेटे रहता । वहाँ पहुँच कर उसने केरल के अपने एक साथी के माध्यम से, जो कि उसी होटल में पहले से नौकरी करता था, शहर के एक कोने पर मकान किराये पर लिया था । जब से उस केरल के साथी ने वहाँ के रीति रिवाज और लोगो के व्यवहार के बारे में बताया था तो उसके दिल में उनके प्रति नफरत पैदा हो गई थी, मगर क्या करता, एक तो रोजी-रोटी का सवाल और ऊपर से उस कंपनी के साथ २ साल का अनुबंध । वे दोनों जब मुहल्ले की गलियों से काम पर आते जाते तो अरब शेखो के बच्चे ऊपर घरो से उन पर थूक डालते थे । केरल के मित्र ने सावधान किया कि इनसे उलझना मत, अन्यथा शेख किसी झूठे इल्जाम में फसा देगा और फिर सिर कलम । जिन शेखो की घर में जवान लड़किया होती हैं वे घर के आगे एक झंडा टांग देते हैं। जिसका मतलब होता है कि इस घर में जवान लड़की है अतः आप गर्दन ऊपर उठा कर या यूँ कहे कि नजरे ऊपर करके, उस घर के पास से नही गुजर सकते । रोजे के दिनों में दूसरे धर्मो के लोगो को भी दफ्तर में पानी पीने को नहीं दिया जाता , इत्यादि-इत्यादि । "

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  12. ऐसी दरिंदगी ...... | ऐसी दरिंदगी को दूसरों पर भी लादना चाहते हैं .... | उपरवाला उन्हें सद्बुद्धि दे !

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  13. अदा जी,
    आप तो सच में अपनी प्रोड्यूसर बिरादरी की निकलीं...मैं तभी सोचता था मेरे और आपके ख्याल कितने मिलते हैं...बिना मांगे सलाह नहीं देनी चाहिए, फिर भी दे रहा हूं...अगर बॉलीवुड-हॉलीवुड के लिए आप स्टोरी-स्क्रीनप्ले लिखना
    शुरू कर दें तो बड़ों-बड़ों की छुट्टी कर देंगी...हिंदी सिनेमा में तो एक बार फिर सलीम-जावेद वाला दौर आ जाएगा...वैसे मुझे पता नहीं शायद आप पहले से ही अपने इस हुनर को आजमा चुकी हों...

    रही आपके संस्मरण की बात...

    दुआ है कि फर्नांडो जल्द आपकी आंटी के पास मन से भी लौट आएं...

    इकबाल-नाज़नीन को ज़रूर जन्नत नसीब हुई होगी...

    असली सज़ा तो उन दोनों का नन्हा फूल भुगत रहा होगा...बिना मां-बाप का ये बच्चा जहां भी हो, प्रार्थना करता हूं कि बस खुश रहे...

    जय हिंद...

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  14. पूर्णतय निंदनीय। लेकिन हमारी निंदा करने से कुछ फर्क पड़ेगा ?

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  15. दिल काँप उठा ये घटना पढ़ कर....! दरिंदगी की क्या कोई और हद है ..??

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  16. UFF !!! DIL DAHAL GAYA !!!

    VISHWAAS NAHI HOTA KI YAH ADHUNIK YUG KI BAAT HAI.......
    KYA KAHA JAAY...EKDAM NIHSHABD HUN..

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  17. अदा जी ! आपकी ये पोस्ट मैने कल ही पढ़ ली थी पर पढने के बाद मन न जाने कैसा सा हो गया और मैं बिना कुछ लिखे ही चली गई...अब आज भी आई हूँ की कुछ लिखूं पर शायद ..आज भी ऐसे ही चली जाऊँगी...इसे तो हेवानियत कहने में भी शर्म आ रही है.

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  18. दरिंदगी की हद है!घोर निंदनीय कृत्य। और मानवाधिकार वाले ...। उस देश में तो ..
    ताले पड़े हैं सबकी जुबां पे ख़ौफ़ के,
    ख़ामोशी घुटन की हर तरफ छायी हुई।

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  19. अंत पढ़कर उतना कुछ फील नहीं हुआ जैसा कि अन्य टिप्पणियों में जिक्र है, क्योंकि ऐसे कई जघन्य करतूतों ्के बारे में पहले भी विस्तार से सुना है और कुछ को करीब से देखा है। लेकिन ये सोच रहा हूँ कि आप भी अपनी जिंदगी में कितने अनुभवों से गुजर चुकी हैं....बाप रेsss!

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  20. उफ़ !आज इतने दिन बाद लौटा भी तो इस पोस्ट से ही बिस्मिलाह हुआ और मन बहुत संतप्त हो गया ! कैसे कैसे मंजर और दास्तान आपके भी दिल में दफन हैं !

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