सावधान !!
जिस 'बोन चाईना' के बर्तन को आप बहुत शौक़ से और बड़ी क़ीमत दे कर ख़रीद लाये हैं, क्या वो सचमुच इस लायक़ है कि आप उसका इस्तेमाल भोजन करने के लिए करें ????
ये पढ़िये https://www.facebook.com/pardeepsons/posts/1486165781641945
बोन चाइना-
बचपन मे मैं भी और लोगों की तरह यही समझती थी कि एक तरह की खास क्राकरी जो सफेद, पतली और अच्छी कलाकारी से बनाई जाती है, बोन चाइना कहलाती है।
बाद में मुझे पता चला कि इस पर लिखे शब्द बोन का वास्तव में सम्बंध बोन (हड्डी) से ही है।
बोन चाइना एक खास तरीके का पॉर्सिलेन है जिसे ब्रिटेन में विकसित किया गया और इस उत्पाद को बनाने में गाय-बैल की हड्डीयो का प्रयोग मुख्य तौर पर किया जाता है।
इसके प्रयोग से सफेदी और पारदर्शिता मिलती है।
बोन चाइना इसलिए महंगा होती है क्योंकि इसके उत्पादन के लिए सैकड़ों टन गाय-बैलो की हड्डियों की जरुरत होती है, जिन्हें कसाईखानों मे से जुटाया जाता है।
इसके बाद इन गाय-बैलो की हड्डियों को उबाला जाता है, साफ किया जाता है और जलाकर इसकी राख प्राप्त की जाती है।
बिना गाय-बैलो की हड्डियों की राख के चाइना कभी भी बोन चाइना नहीं कहलाता है।
जानवरों की हड्डी से चिपका हुआ मांस और चिपचिपापन अलग कर दिया जाता है।
इस चरण में प्राप्त चिपचिपे गोंद को अन्य इस्तेमाल के लिए सुरक्षित रख लिया जाता है।
शेष बची हुई गाय-बैल की हड्डीयो को १००० सेल्सियस तापमान पर गर्म किया जाता है, जिससे इसमें उपस्थित सारा कार्बनिक पदार्थ जल जाता है।
इसके बाद इसमें पानी और अन्य आवश्यक पदार्थ मिलाकर गर्म किया जाता है और कप, प्लेट तथा अन्य क्राकरी बना ली जाती है।
इन तरह बोन चाइना अस्तित्व में आता है।
५० प्रतिशत हड्डियों की राख २६ प्रतिशत चीनी मिट्टी और बाकी चाइना स्टोन। खास बात यह है कि बोन चाइना जितना ज्यादा महंगा होगा, उसमें हड्डियों की राख की मात्रा भी उतनी ही अधिक होगी।
अब प्रश्न यह उठता है कि क्या शाकाहारी लोगों को बोन चाइना का इस्तेमाल करना चाहिए?
या फिर सिर्फ शाकाहारी ही क्यों, क्या किसी को भी बोन चाइना का इस्तेमाल करना चाहिये?
कुछ लोग इस मामले में कुछ तर्क देते है की जानवरों को उनकी हड्डियों के लिए नहीं मारा जाता, हड्डियां तो उनको मारने के बाद प्राप्त हुआ एक उप-उत्पाद है।
लेकिन भारत के मामले में यह कुछ अलग है।
भारत में गाय-बैल को उनके मांस के लिए नहीं मारा जाता क्योंकि उनकी मांस खाने वालों की संख्या काफी कम है।
उन्हें दरअसल उनकी चमड़ी और हड्डियों के मारा जाता है।
भारत में दुनिया की सबसे बड़ी चमड़ी मंडी है और यहां ज्यादातर गाय-बैल के चमड़े का ही प्रयोग किया जाता है।
देखा जाए तो वर्क बनाने का पूरा उद्योग ही गाय को सिर्फ उसकी आंत के लिए मौत के घाट उतार देता है।
आप भले ही गाय-बैलो को नहीं मारते, लेकिन आप या आपका परिवार बोन चाइना का सामान खरीदने के साथ ही उन हत्याओं के साझीदार हो जाते है।
बोन चाइना सैट की परम्परा बहुत पुरानी है और इसके लिये गाय-बैलो को लम्बे समय से मौत के घाट उतारा जा रहा हैं।
यह सच है, लेकिन आप इस बुरे काम को रोक सकते हैं।
इसके लिए सिर्फ आपको यह काम करना है कि आप बोन चाइना की मांग करना बंद कर दें।
क्योकि अगर बाजार मे इनकी मांग नही होगी तो उत्पादन कम जायेगा और बिना मांग के उत्पादन अपने आप ही खत्म हो जायेगा।
मित्रों त्योहारो की इस मौसम मे शपथ ले की चांदी वर्क से सजी मिठाईया, चमड़े का जुता-चप्पल, पर्श-बैल्ट, लैदर जाकेट इत्यादि ऐसा कोई सामान नही खरीदेंगे जिससे गौहत्या को बढ़ावा मिलता हो।
मित्रों इस बार त्योहारो बोन चाईना के कप-प्लेट, ड़िनर सैट जैसी ना वस्तुओ ना तो किसी को उपहार मे दे और ना हि ऐसी वस्तु उपहार मे ले।
हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शनिवार (11-04-2015) को "जब पहुँचे मझधार में टूट गयी पतवार" {चर्चा - 1944} पर भी होगी!
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत-बहुत शुक्रिया शास्त्री जी !
Deleteजागरूक प्रस्तुति हेतु धन्यवाद!
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