एक तो हम लड़की पैदा हुए, दूसरे मध्यमवर्गीय परिवार में, तीसरे ब्राह्मण घर में, चौथे बिहार में और पांचवे थोडा बहुत टैलेंट लिए हुए, तो कुल मिला कर फ्रस्ट्रेशन का रेसेपी बहुते अच्छा रहा. याद है हमको, सिनेमा हॉल में सिनेमा देखने को मनाही रही, काहे कि उहाँ पब्लिक ठीक नहीं आता है, सिनेमा जाओ तो भाइयों के साथ जाओ, तीन ठो बॉडीगार्ड, और पक्का बात कि झमेला होना है, कोई न कोई सीटी मारेगा और हमरे भाई धुनाई करबे करेंगे, बोर हो जाते थे, सिनेमा देखना न हुआ पानीपत का मैदान हो जाता था...
इ भी याद है स्कूल से निकले नहीं कि चार गो स्कूटर और मोटर साईकिल पीछे लग जाते थे , हम रिक्शा पर और पीछे हमरी पलटन, स्लो मोसन में, घर का गली का मुहाना आवे और सब गाइब हो जावें....
एक दिन एक ठो हिम्मत किया था गली के अन्दर आवे का, आ भी गया था...और बच के चल भी गया, बाकि मोहल्ला प्रहरियों का नज़र तो पड़िये गया था....
दूसर दिन उन जनाब की हिम्मत और बढ़ी, फिर चले आये गल्ली के अन्दर में, हम तो गए अपना घर बाद में पता चला उनका वेस्पा गोबर का गड्ढा में डूबकी लगा गया, निकाले तो थे बाद में लोग-बाग़ , बाकि काम नहीं किया शायिद, काहे की उ नज़र आये ....वेस्पा नहीं.....
हम गाना गाते थे, और हमरे बाबू जी रोते थे, इसका बियाह कैसे होगा इ गाती है !!! आईना के आगे २ मिनट भी ज्यादा खड़े हो जावें तो माँ तुरंते कहती थी "इ मेन्जूर जैसे का सपरती रहती हो" माने इ कहें कि चारों चौहद्दी में पहरा ही पहरा, गीत गावे में भी रोकावट था, खाली लता दीदी को गा सकते थे, और हमको आशा दीदी से ज्यादा लगाव था, कभी गाने को नहीं मिला आशा दीदी का चुलबुला गीत सब, सब बस यही कहते रहे, इ सब अच्छा गीत नहीं है, अच्छा घर का लड़की नहीं गाती है इ सब, हम आज तक नहीं समझे कि गीत गावे से अच्छा घर का लड़की बुरी कैसे हो जाती है, गीत गावे से चरित्र में धब्बा कैसे लगता है, उस हिसाब से तो आशा जी का चरित्र सबसे ख़राब है, फिर काहे लोग उनका गोड़ में बिछे हुए हैं, बस यही बात पर आज हम गाइए दिए हैं इ गीत, अब आप ही बताइए, इसको गाकर हम कोई भूल किये हैं का.....का हमरी प्रतिष्ठा में कोई कमी आएगी आज के बाद ????
फिल्म : मेरे सनम
आवाज़ : आशा भोंसले
गीतकार : मजरूह सुल्तानपुरी
संगीतकार : ओ.पी. नैय्यर
सिनेमा के परदे पर गायीं हैं 'मुमताज़'
और ईहाँ आवाज़ है हमारी.....स्वप्न मंजूषा 'अदा' ...
ये है रेशमी
जुल्फों का अँधेरा न घबराइये
जहाँ तक महक है
मेरे गेसुओं के चले आइये
सुनिए तो ज़रा जो हकीकत है कहते हैं हम
खुलते रुकते इन रंगीं लबों कि कसम
जल उठेंगे दिए जुगनुओं कि तरह २
ये तब्बस्सुम तो फरमाइए
ला ला ला ला ला ला ला ला
प्यासी है नज़र ये भी कहने की है बात क्या
तुम हो मेहमाँ तो न ठहरेगी ये रात क्या
रात जाए रहे आप दिल में मेरे २
अरमाँ बन के रह जाइए.
ये है रेशमी
जुल्फों का अँधेरा न घबराइये
जहाँ तक महक है
मेरे गेसुओं के चले आइये