Sunday, June 10, 2012

विभा...!! (संस्मरण)


कानून  पत्नी को पति  की जायदाद में अधिकारिणी मानता है...
अगर पति की मृत्यु  हो जाए तो, पति की सम्पति की वारिस पत्नी  ही होती है...
यूँ तो कौन स्त्री कभी चाहेगी विधवा होना, लेकिन कभी-कभी नियति के कुचक्र का प्रहार किसी पर हो ही जाता है..और तब, जब कभी कोई विधवा हो जाती है,  तो हमारा समाज उसके साथ कैसी बेइंसाफी करता है, साथ ही स्वार्थी तत्व किस तरह बलात, कमजोर विधवा के ऊपर कानून लाद कर अपना स्वार्थ सिद्ध करने की कोशिश करते हैं ...यह संस्मरण इसी बात को बताता  है ...और इस समाज को आईना भी दिखाता है.....

'विभा' नाम है उसका...व्यवसायी परिवार की लड़की है ....माँ बाप नेअच्छा खासा दान-दहेज़ देकर उसका विवाह पटना के, श्री सत्यपाल प्रसाद के साथ कर दिया....विभा भी ससुराल आकर और अपने पति का सानिध्य पाकर बहुत खुश थी...ससुराल में ..सास-ससुर, जेठ-जेठानी और एक 'परित्यक्ता' ननद और उसका एक बेटा साथ रहते थे.....घर में जेठ और ननद की ही चलती थी.... ननद बहुत खुश नहीं रहती थी...'परित्यक्ता' का जीवन जीना भारतीय समाज में कठिन तो है, चाहे कितना भी जीवन यापन भत्ता मिलता हो....

विभा के सर पर मुसीबतों का पहाड़ उस दिन टूटा,  जिस दिन उसके पति, सत्यपाल की मृत्यु जीप एक्सिडेंट में हुई....पति  के इस आकस्मिक निधन से, विभा की दुनिया तो बस उजड़ ही गयी....शादी के मात्र २ साल में ही हाथों की मेहंदी उतर गयी...विभा के कोई संतान भी तो नहीं थी कि, वह अपना कुछ दिल लगा लेती...
विभा का पति बहुत ही काबिल इंसान था...वो हर मामले में अपने बड़े भाई से बेहतर था...उसने अपने बड़े भाई से ज्यादा संपत्ति अर्जित की थी, वह घर का कमाऊ पूत था....और अब उसकी पूरी कमाई बंद हो गयी, जिससे घर की  परिस्थिति में फर्क पड़ने लगा....लेकिन विभा के व्यक्तिगत खर्चे तो थे ही ...जाहिर था, अब वो खर्चे परिवार के अन्य सदस्यों को खलने लगे थे...

विभा और बाकि लोगों में एक और फर्क था.....विभा शिक्षित थी और समझदार भी..जबकि उसके जेठ के परिवार में शिक्षा के प्रति लोग उदासीन थे...इसलिए विभा की समझदारी की बातें, उन्हें समझ में नहीं आती थी...

धीरे-धीरे विभा के प्रति लोगों का रवैय्या बदलने लगा, उसके सारे गहने सास के कब्ज़े में चले गए, दिन-प्रतिदिन के व्यक्तिगत खर्चों के लिए वो मोहताज हो गयी और विभा आभाव की प्रतिमूर्ति बन कर रह गयी...

बात इतने पर ही ख़त्म नहीं हुई थी,  जब-जब भी विभा ने अधिकार के लिए ज़बान खोलने की कोशिश की, उसे पूरे परिवार के आक्रामक रवैय्ये का सामना करना पड़ा...आये दिन मार-कुटाई भी शुरू हो गयी...

मेरी ससुराल भी पटना में ही है, और विभा वहाँ मेरी पड़ोसन है....मैं कुछ साल पहले, कुछ दिन के लिए गयी थी अपने ससुराल....बस यूँही एक दिन पड़ोस में पहुँच गयी विभा के घर ...पूरे घर का माहौल ही अजीब था....विभा को देखा ....वैधव की मूर्ति, कितनी आभा विहीन होती है, देखकर मन में एक टीस सी उठी थी....लेकिन दाल में कुछ काला भी लगा था,  बस  मैं उससे बात करने की जुगत में जुट गयी...

एक दिन दोपहर, जब ज्यातर लोग घर से बाहर थे और जो घर में थे वो भी सो रहे थे ...मैं मौका पाकर विभा के घर अन्दर चली गयी....और विभा का हाथ पकड़ कर ले आई उसे अपने  घर....मेरी सास को पसंद नहीं आया था , उसका मेरे घर आना...लेकिन मुझसे कुछ कह नहीं पायीं वो .....

विभा से बात करके मुझे पता चल गया, कि लाखों की सम्पति की वारिस विभा को, कितनी प्रताड़ना भरे दिन देखने को मिल रहे हैं...और इसमें उसकी सास, उसकी ननद और उसके जेठ सबका हाथ है....
विभा की गला दबा कर हत्या करने की भी, कोशिश की गयी थी जिसमें ...टांगें सास ने पकडे थे, हाथ ननद ने और गला दबाने का उपक्रम जेठ ने किया था...वो तो भला हो ससुर का, जो इसमें उनका साथ नहीं दे पाए....

विभा की कोई संतान नहीं है...वो उस घर से निकलना भी नहीं चाहती, अगर वो ऐसा करेगी तो संपत्ति से हाथ धो बैठेगी.....जो भी समय मुझे  दस-पंद्रह दिन में मिला, उसको ढाढस, और संघर्ष करने का साहस बनाये रखने की प्रेरणा देती रही....मेरे  रिश्ते के जीजा लगते हैं, हजारीबाग के एस .पी . थे उन दिनों ..Mr सुबर्नो उनसे बात करवा दी...जिससे हिम्मत बनी  रहे विभा की....कल ही बात की उससे फ़ोन पर..
कह रही थी कुछ भी नहीं बदला है दीदी.....सब कुछ वैसा ही है....आप फ़ोन करते रहा कीजिये....अच्छा लगता है आपसे बात करना......

और मैं सोच रही हूँ, इस हक की लड़ाई में विभा जीतेगी या हारेगी..यह तो समय ही बताएगा...लेकिन एक बात स्पष्ट है....कि मध्ययुगीन प्रवृतियां आज भी हमारे समाज में कहीं-कहीं व्याप्त हैं ...क्या हम सचमुच ख़ुद को प्रगतिशील, नीतिवान, ईमानदार,  आधुनिक कहने का हक रखते हैं...???

हिन्दू उतराधिकारी अधिनियम १९५६ के प्रावधानों के तहत विधवा अपने पति के हिस्से की पुश्तैनी संपत्ति तथा पति की अर्जित संपत्ति की उत्तराधिकारी है...

अब एक गीत ...नैनों में बदरा छाये..आवाज़ 'अदा' की...