जिसे देखो सियासत में सिकन्दर है
बस तमद्दुन-ओ-एहसास ही कमतर है
इसे धूप में बाहिर तो निकालो यारो
अश्कों से तर-ब-तर मेरा बिस्तर है
हो गई खोखली बीवी की भी मुस्कान
घर भी घर नहीं, लगता है दफ्तर है
हो गए हावी बर्गर और पिज्जा की दूकान
घर में चूल्हे नहीं जलते गुमशुदा दस्तर है
ग़ुम गए चाँद से चेहरे वो शर्मीली आँखें
लोग कहते हैं कन्फिडेंस ही बेहतर है
न वो लोच न नज़ाकत न वो भोलापन
हक़-ए-दरिया में अव्वल आज के दुख़्तर हैं
बदल तो रहा है मिजाज़-ए-जम्हूरियत
क्यों मगर हालात पहले से बदतर हैं ?
अब कौन रखेगा मेरे ज़ख्मों पर फ़ाहे
वो ख़ुद ही है बीमार जो मेरा चारागर है
तमद्दुन=संस्कार
दस्तर=खाने की मेज़ पर बिछाए जाने वाला मेज़पोश
दुख़्तर=बेटी
मिजाज़-ए-जम्हूरियत=प्रजतन्त्र की मानसिकता
चारागर=डॉक्टर
बस तमद्दुन-ओ-एहसास ही कमतर है
इसे धूप में बाहिर तो निकालो यारो
अश्कों से तर-ब-तर मेरा बिस्तर है
हो गई खोखली बीवी की भी मुस्कान
घर भी घर नहीं, लगता है दफ्तर है
हो गए हावी बर्गर और पिज्जा की दूकान
घर में चूल्हे नहीं जलते गुमशुदा दस्तर है
ग़ुम गए चाँद से चेहरे वो शर्मीली आँखें
लोग कहते हैं कन्फिडेंस ही बेहतर है
न वो लोच न नज़ाकत न वो भोलापन
हक़-ए-दरिया में अव्वल आज के दुख़्तर हैं
बदल तो रहा है मिजाज़-ए-जम्हूरियत
क्यों मगर हालात पहले से बदतर हैं ?
अब कौन रखेगा मेरे ज़ख्मों पर फ़ाहे
वो ख़ुद ही है बीमार जो मेरा चारागर है
तमद्दुन=संस्कार
दस्तर=खाने की मेज़ पर बिछाए जाने वाला मेज़पोश
दुख़्तर=बेटी
मिजाज़-ए-जम्हूरियत=प्रजतन्त्र की मानसिकता
चारागर=डॉक्टर
बहुत अरसे के बाद आपको पढ़ने का सौभाग्य मिला | सब के सब उम्दा और गहरे , मेरे जैसे पाठक को तो उर्दू के अलफ़ाज़ भी सीखने को मिलते हैं |
ReplyDeleteहर शेर में एक बात बहुत स्पष्ट कही गयी है l बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबदल तो रहा है मिजाज़-ए-जम्हूरियत
ReplyDeleteक्यों मगर हालात पहले से बदतर हैं ?
अब कौन रखेगा मेरे ज़ख्मों पर फ़ाहे
वो ख़ुद ही है बीमार जो मेरा चारागर है
बहुत ही खूबसूरत अल्फाजों में पिरोया है आपने इसे... बेहतरीन ग़ज़ल
Lovely blog you havee
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