Thursday, December 13, 2012

मेरी एक पुरानी ग़ज़ल और गुनगुनाने की कोशिश ....(Repeat)



मेरी एक ग़ज़ल है .....जिसे बस गुनगुनाने की कोशिश की है.... सुनियेगा ज़रा...
(न जी भर के देखा, न कुछ बात की, बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की, ....की तर्ज़ पर )


हम बोलें क्या तुमसे के क्या बात थी
अजी रहने दो बातें बिन बात की

सहर ने शफ़क़ से ठिठोली करी है
शिकायत अंधेरों को इस बात की

खयालों के तूफाँ तो थमने लगे हैं
लहर कोई डूबी थी जज़्बात की

उजालों से ऊँचें हम उड़ने लगे थे
कहाँ थी ख़बर अपनी औक़ात की

मन सोया जहाँ था वहीँ उठ गया है
शिकन न थी बिस्तर पे कल रात की

मुसलसल वो आया गली में हमारी
नदी बह रही थी इक हालात की

गुबारों से कितने परेशाँ हुए तुम
क्यूँ भूले वो ताज़ी हवा साथ की


मुसलसल= लगातार
गुबारों=धूल भरी आँधी
सहर=सुबह
शफ़क़=सवेरे की लालिमा

8 comments:

  1. मुसलसल वो आया गली में हमारी
    नदी बह रही थी इक हालात की

    बेहतरीन अदायगी शुभ प्रभात

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  2. मुझे बहुत पसंद है ये गज़ल, इतनी पसंद कि लगता है जैसे बहुत जल्दी खत्म हो गई।

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  3. unbeleiveable... apke gazal ke kayal hue hum... aur band khazane ke pitare me aur kya kya hain... ye shayad kisi ko pata nai.

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  4. unbeleiveable... apke gazal ke kayal hue hum... aur band khazane ke pitare me aur kya kya hain... ye shayad kisi ko pata nai.

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  5. बहुत दिनों बाद सुना आपको ।यकीन मानिये आपकी आवाज और मीठी लगने लगी है ।
    शुभकामनाये ।

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  6. आपकी आवाज बहुत प्यारी लगी । पहली बार ही सुनी है और भी सुनेंगे ।

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