(आज जो भी लिख रही हूँ, शायद उसका ओर-छोर आपको समझ ना आये, क्योंकि मन बहुत विचलित है।)
क्या बुराई थी उसमें ? डॉक्टर बन रही थी वो ...बन जाती तो न जाने कितनों को मौत के मुंह से निकाल लाती वो। लेकिन दुराचारियों ने उसे ही मौत के मुंह में धकेल दिया !! कितने अरमान से, कितने परिश्रम से वो यहाँ तक पहुंची होगी। कितनी तपस्या की होगी उसने और उसके परिजनों ने। लेकिन कुछ ही मिनटों में सब कुछ स्वाहा हो गया !! सिर्फ एक ही तो बुराई थी उसमें, वो एक पढ़ी-लिखी, स्वावलंबी बनाने को आतुर 'नारी' थी। अब
तक कल्पना नहीं कर पायी हूँ, क्या-क्या सहा होगा उसने ? क्या-क्या हुआ होगा
उसके साथ ? कितनी तकलीफ, कितनी तड़प ..कितना दर्द ???? मैं सोचना भी नहीं
चाहती हूँ। बस मैं उसके आस-पास रहना चाहती हूँ।
लेकिन सारा दोष उसके मत्थे मढने को सब
तैयार बैठे हैं। रात में क्या ज़रुरत थी फिल्म जाने की, क्या ज़रुरत थी उस बस
में बठने की ....क्या ज़रुरत थी ये करने की, क्या ज़रुरत थी वो करने की
...लेकिन कोई ये नहीं कहता क्या ज़रुरत थी उन वहशियों को ऐसा घोर और घृणित
काम करने की ...अपने से कमजोर पर दोष का ठीकरा फोड़ना हर सबल का
ईश्वर प्रदत्त अधिकार है, जैसे मालिक नौकर पर, धोबी गधे पर, पति पत्नी पर
(अगर पत्नी कमज़ोर हो तो ) और फिर फ़ोकट में स्वयंभू 'भगवान्', रक्षक और जाने
क्या क्या बने लोग ऐसे अधिकारों का उपयोग करने से वंचित भला कैसे रह सकते
हैं। दोष कपड़ों का होता है, शाम दोषी होती है, रात तो महा दोषी होती है और
उससे भी बड़ी बात लड़की, युवती, औरत, महिला, स्त्री,जो भी नाम आप पुकार लें,
वो तो नरक का द्वार कहाती ही है। बाकी पुरुषों के चरित्र, संस्कार,
मानसिकता इत्यादि सब अपनी जगह ठीक हैं ...वाह !! उसमें बदलाव की क़तई भी ज़रुरत नहीं है ..वो सब एकदम टीप-टॉप है।
कैसा घटिया चरित्र, और कैसे लीचड़ संस्कार होते हैं जो, कपड़ों की लम्बाई-छोटाई में बिगड़ जाते हैं, ये कैसा चरित्र हैं जो शाम ढले गिरने को आतुर हो जाता है। कैसा चरित्र है जो एक बच्ची, एक असहाय महिला को देख कर उबाल खाने लगता है।
क्या चाहता है पुरुष वर्ग, कि नारी घर में चौबीस घंटे बैठी रहे। क्या पढाई-लिखाई करना, नौकरी करना, अपना कैरियर बनाना, नारी का अधिकार नहीं है ???
ऐसा क्यों नहीं है कि नारी एक नार्मल ज़िन्दगी जी सकती ? जहाँ सब कुछ सामान्य हो।
कभी सोचा है नारी भी एक साफ़-सुथरी, साधारण सी ज़िन्दगी, जो डर-भय से परे हो, जीना चाहती है, लेकिन वो जी नहीं सकती, इसका एक मात्र कारण हैं ...पुरुष
वर्ना इस दुनिया में लाखों जीव-जंतु हैं, उनसे नारी को कोई खतरा नहीं है, खतरा है तो सिर्फ पुरुषों से और त्रासदी ये है कि नारी इन्हें रक्षक मानती है।
रेप की विक्टिम जो भी होती है, उसके अपने तो उसके माँ-बाप भी नहीं रह जाते। हर जानने वाला या अनजाना उसे ही शक की नज़र से देखता है। कितनी अजीब बात है, बिना किसी कसूर के सारी उम्र की सजा एक बेगुनाह झेलती है और दोषी हमेशा साफ़ बच कर निकल जाते हैं, क्योंकि कोई चश्मदीद गवाह नहीं होता। अंधे कानून को ये बात समझ में नहीं आती कि बलात्कारी गवाहों के सामने बलात्कार नहीं करता, जो उसके साथ होते हैं वो गवाह नहीं, इस काम में बराबर के हिस्सेदार होते हैं। ऐसे काम अंधेरों में और अकेले ही किये जाते हैं।
ऐसे हादसे होते ही रहेंगे तब तक, जब तक :
भारतीय कानून में सुधार नहीं होगा
पुरुष समाज इन्हें रोकने और ऐसे अपराधियों को पकडवाने के लिए आगे नहीं आएगा
कैसा घटिया चरित्र, और कैसे लीचड़ संस्कार होते हैं जो, कपड़ों की लम्बाई-छोटाई में बिगड़ जाते हैं, ये कैसा चरित्र हैं जो शाम ढले गिरने को आतुर हो जाता है। कैसा चरित्र है जो एक बच्ची, एक असहाय महिला को देख कर उबाल खाने लगता है।
क्या चाहता है पुरुष वर्ग, कि नारी घर में चौबीस घंटे बैठी रहे। क्या पढाई-लिखाई करना, नौकरी करना, अपना कैरियर बनाना, नारी का अधिकार नहीं है ???
ऐसा क्यों नहीं है कि नारी एक नार्मल ज़िन्दगी जी सकती ? जहाँ सब कुछ सामान्य हो।
कभी सोचा है नारी भी एक साफ़-सुथरी, साधारण सी ज़िन्दगी, जो डर-भय से परे हो, जीना चाहती है, लेकिन वो जी नहीं सकती, इसका एक मात्र कारण हैं ...पुरुष
वर्ना इस दुनिया में लाखों जीव-जंतु हैं, उनसे नारी को कोई खतरा नहीं है, खतरा है तो सिर्फ पुरुषों से और त्रासदी ये है कि नारी इन्हें रक्षक मानती है।
रेप की विक्टिम जो भी होती है, उसके अपने तो उसके माँ-बाप भी नहीं रह जाते। हर जानने वाला या अनजाना उसे ही शक की नज़र से देखता है। कितनी अजीब बात है, बिना किसी कसूर के सारी उम्र की सजा एक बेगुनाह झेलती है और दोषी हमेशा साफ़ बच कर निकल जाते हैं, क्योंकि कोई चश्मदीद गवाह नहीं होता। अंधे कानून को ये बात समझ में नहीं आती कि बलात्कारी गवाहों के सामने बलात्कार नहीं करता, जो उसके साथ होते हैं वो गवाह नहीं, इस काम में बराबर के हिस्सेदार होते हैं। ऐसे काम अंधेरों में और अकेले ही किये जाते हैं।
ऐसे हादसे होते ही रहेंगे तब तक, जब तक :
भारतीय कानून में सुधार नहीं होगा
पुरुष समाज इन्हें रोकने और ऐसे अपराधियों को पकडवाने के लिए आगे नहीं आएगा
पुरुष समाज, महिलाओं के साथ-साथ ऐसे मुजरिमों को सजा दिलवाने के लिए मुहीम नहीं चलाएगा।
जब तक ऐसे केसों की कार्यवाही ज़रुरत से ज्यादा समय लगाएगी
जब तक ऐसे मुजरिम साफ़ बच कर निकलते रहेंगे
जब तक इन वहशियों को कड़ी से कड़ी सजा नहीं दी जायेगी
तब तक ये चलता ही रहेगा, लडकियां पिसतीं ही रहेंगी और ऐसी सनसनीखेज़ खबरें सुर्खियाँ बन कर अखबारों, टीवी की टी आर पी बढ़ातीं ही रहेंगी। हम आप उनपर पोस्ट लिखते रहेंगे और ऐसी पीड़िता सिर्फ एक चर्चा बन कर ख़बरों की भीड़ में खोतीं रहेंगी। दुनिया यूँ ही चलती रहेगी और हम यूँ ही फिर बिफ़रते रहेंगे अगले हादसे पर ...बिना मतलब !!
जब तक ऐसे केसों की कार्यवाही ज़रुरत से ज्यादा समय लगाएगी
जब तक ऐसे मुजरिम साफ़ बच कर निकलते रहेंगे
जब तक इन वहशियों को कड़ी से कड़ी सजा नहीं दी जायेगी
तब तक ये चलता ही रहेगा, लडकियां पिसतीं ही रहेंगी और ऐसी सनसनीखेज़ खबरें सुर्खियाँ बन कर अखबारों, टीवी की टी आर पी बढ़ातीं ही रहेंगी। हम आप उनपर पोस्ट लिखते रहेंगे और ऐसी पीड़िता सिर्फ एक चर्चा बन कर ख़बरों की भीड़ में खोतीं रहेंगी। दुनिया यूँ ही चलती रहेगी और हम यूँ ही फिर बिफ़रते रहेंगे अगले हादसे पर ...बिना मतलब !!
New Delhi: More than 50 per cent of women feel unsafe while travelling on Indian roads, with the capital perceived to be the most unsafe of all the metros, a study claimed on Friday. According to the study, 51 per cent of the women surveyed in Delhi, Mumbai, Kolkata and Chennai felt unsafe while travelling on roads while 73 per cent said they were scared of travelling alone at night.
The study conducted by Navteq, global provider of navigation
enabled maps, and TNS Market Research claims 87 per cent women regarded
Delhi as most unsafe city while Mumbai was touted as the safest city by
74 per cent women. While women in Kolkata felt safer than those in Delhi
and Mumbai, most women in Chennai felt their city was safer than Delhi
but not as safe as Mumbai.
The study also claimed that to find their way, most women
prefered to seek direction from friends and family before setting out
while en-route in unfamiliar areas, a similar number will seek
directions from strangers with an aim to overcome the fear of losing
their way.
दिल्ली की मुख्यमन्त्री महिला और कांग्रेस की अध्यक्ष भी महिला।
ReplyDeleteदोनों ही दिल्ली में रहतीं है और महिलाएँ दिल्ली में सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं।
दोष मानसिकता,शिक्षा,नैतिकता का है..
ReplyDeleteदोष समाज और सरकार दोनों का ही है !!
ReplyDeleteमन बहुत ही विचलित है
ReplyDeleteकम से कम अब तो सरकार जागे और उन नर पिशाचों को इस जघन्य अपराध की ऐसी सजा दे की कोई सपने में भी ऐसा दुष्कृत्य करने की हिमत न जूता सके।
लेकिन पूरे समाज की पुरुष मानसिकता को ही बदलने की जरूरत है।
जब तक स्त्री को एक देह समझा जाता रहेगा ,इस तरह की घटनाएं रोकनी बहुत ही मुश्किल है,
डॉक्टर अपने प्रयास में सफल हों और उस बच्ची का कष्ट कुछ कम कर सकें यही प्रार्थना है।
क्या जाने दिन, क्या कहता है,
ReplyDeleteमन बस पीड़ा को सहता है।
दोष मानसिकता,शिक्षा,नैतिकता का है..
ReplyDeleteAGRRED WITH SAKET SHARMA JI
क्या कहूं स्वप्ना जी । बस तीन दिन से रो रही हूँ, रो रही हूँ और रो रही हूँ ।
ReplyDeleteथक गयी हूँ - चुक गयी हूँ - हर बलात्कार और अमानुषता के बाद यही समाज इन्ही घडियाली आंसुओं को बहाता है । फिर अपने घर में बैठ कर अपनी पत्नी और बेटियों से कहता है - देखा ? इसीलिए हम तुम्हे समझाते है - रात में अकेले बाहर नहीं जाओ । देखा ? इसीलिए कहते हैं - नौकरी वौकरी की कोई ज़रुरत नहीं - औरतें घर में ही शोभा देती हैं । बात कोई भी हो - इसका अर्थ यही होता है - देखा ? तुम स्त्री शरीर हो, और हीन हो - तुम्हारे लिए बराबरी का स्वप्न देखना पाप है - जो तुम करोगी - तो इसी तरह चीर दी जाओगी । :( :( :( हर ऐसी घटना को पुरुष अपने अंगूठे के नीचे आने वाली स्त्रियों के मन में उसके स्त्री होने से पुरुष से "नीचे" होने के डर को मजबूत करने के लिए उपयोग में लाता है - जानते हुए या अनजाने में ।
रावण की सभा में सीता के साथ बलात्कार पर बाकायदा मंत्रियों से विमर्श होता है । उसे मुर्गे की तरह "लेने" के सुझाव होते हैं - किन्तु रावण को अपने सर के टुकड़े होने का भय है, कि जब उसने अपनी पुत्रवधू के साथ बलात्कार किया तो उसने उसे यह श्राप दिया था । तो रावण कहता है - भरी सभा में - कि "उस श्राप के डर से, अपने प्राणों के भय से मैं ठहरा हूँ, एक साल का समय दिया हूँ | हाँ नहीं करेगी - तो मार दूंगा ।" :( :( :( । और सीता का गुनाह क्या था ? वाही था जो इस दिल्ली वाली लड़की का था - वह घर से बाहर थी न ? क्या हुआ जो पति के साथ वन गयी थीं - थीं तो घर से बाहर ? not in a bus, but in a hut - unprotected, alone ...
और हमारा प्रबुद्ध समाज उसी रावण के कसीदे पढता है । वह ग्यानी था और पता नहीं क्या क्या ।
फिर राम को स्त्री द्वेषी दर्शाने के लिए (रावण की सुपीरियोरिटी बनाए रखने के लिए, also male superiority) सीता की अग्नि परीक्षा और परित्याग के मिथक गढ़ दिए गए । गढ़ने वाले भी खूब जानते थे - जो पढ़ेगा - वह समझ लेगा कि यह ऊपर से जोड़े क्षेपक हैं - क्योंकि भाषा और काव्य शैली कुछ भी नहीं मिलती original verses se। लेकिन खूब जानते थे समाज को | समाज स्त्री विद्वेषी है - बिना पढ़े ही मान लिया जाएगा कि, राम ने सीता को त्याग दिया - क्योंकि समाज के लिए स्त्री की पवित्रता का मापदंड है उसका शरीर । क्या हुआ जो राम के लिए सीता का शरीर नहीं , मन महत्वपूर्ण था - कहानी गढ़ने वालों को तो अपनी बात सिद्ध करनी थी - उन्होंने राम को भी मोहरा बना लिया ।
अब यह दिल्ली वाली लड़की - क्या ज़रुरत थी उसे डॉक्टर बनने की? दिल्ली जाने की ? रात में पिक्चर जाने की? फिर बस से घर लौटने की ? ऑटो नहीं ले सकती थी?क्यों जी - ऑटो चालक ऐसा नहीं कर सकते ? सिर्फ बस में ही होता है ? पिछले महीने कैब में नहीं हुआ ???? शादी कर के घर में झूठे बर्तन धोती - डॉक्टर बनी ही क्यों? दिल्ली गयी ही क्यों ? अनेक संवेदना वाक्यों के पीछे यह मानसिकता छिपी है - और तो और - मेडम दीक्षित भी तो यही कह रही हैं न ?
नहीं - गलती बलात्कारी की नहीं हो सकती - वह तो पुरुष था । गलती तो रात के समय की है - उसके भीतर का इंसान रात में भेडिया बन जाता है - नहीं तो वही पुरुष दिन में तो देवता था - नहीं ?
नारी ब्लॉग पर अंशुमाला जी ने एक और बात कही - जिससे बहुत चिंतित हूँ । वह बस ड्राईवर स्कूल बस चलाता था । क्या किसी ने यह जान्ने के प्रयास किये कि उन नन्हे मासूमों से उसने इससे पहले कोई दुर्व्यवहार तो नहीं किया ? वे तो बेचारे रात में नहीं , दिन में ही बस में जाते होंगे, फिर भी क्या जाने ? उनके माता पिटा अध्यापक आदि से अनुरोध है कि उनसे पूछें कि वे ठीक हैं न ?
जानती हूँ टिप्पणी संयंत नहीं है - लिखा ही नहीं जा रहा । इतने भाव गुथे हुए हैं भीतर कि टुकड़ों में आ रहे हैं बाहर । न्यूज़ में कह रहे हैं की वह असहनीय दर्द में है । कोई न्यूज़ चैनल शान से कह रहा है कि उसने उसका नाम खोज लिया - जैसे चाँद फतह कर लिया हो । होड़ है - दूसरों से पहले हमारे चॅनल ने उसके नाम का "पर्दाफ़ाश" जो किया ?
आँतों के टुकड़े काटते जा रहे हैं डॉक्टर उसे बचाने के लिए ? बच भी गयी तो सामान्य जीवन नहीं जी सकेगी - वे कह चुके हैं ।
अभी भी प्रलय आनी बाकी है क्या ?
आज जो भी लिख रही हूँ, शायद उसका ओर-छोर आपको समझ ना आये, aapne aisaaa kuchh nahin likhaa adaa ji .... jiskaa or-chhor samjhne me pareshaani ho ...
ReplyDeletesab hi dukhi hain is ghatanaa se ...
सच में आक्रोशित और स्तब्ध महसूस कर रहे हैं सब।
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