Wednesday, December 19, 2012

कहीं देर न हो जाए !

भारत हमेशा से ही पश्चिम की उतरन पहनने का आदी रहा है। पश्चिम में जो कुछ छूट जाता है या छूटने लगता है भारतीय उसे फट अपना लेते हैं। फिर वो फैशन हो, भोजन हो, त्यौहार हों, सिगरेट हो, लिव-इन रिलेशन हों, पारिवारिक मूल्य हों, समलैंगिगता हो या फिर पूरे देश को चलाने की रणनीति हो, या आम जन की मानसिकता। अभी चार साल पहले अमेरिका के जन साधारण ने 'अब बहुत हुआ' सोचकर एक फैसला लिया और देखते ही देखते पूंजीवादी माफिया टोली और बुश administration को बाहर का रास्ता दिखा दिया । एक बदलाव के सपने के साथ, श्री ओबामा ने सरकार की बागडोर अपने हाथों में सम्हाल ली । जिससे कुछ हद तक, पूंजीवादियों पर लगाम कसी गयी। 

लेकिन, जैसा कि हमेशा होता है, अमेरिका की उतरन, भारत पहनने को अब तैयार है। धीरे-धीरे भारत भी पूंजीवाद की तरफ अग्रसर होता जा रहा है, तभी तो आज देश किसी अम्बानी, किसी बिड़ला के इशारों पर नाचता दिख रहा है। आज भारतीय खुश होते हैं देख कर कि, अम्बानी पृथ्वी के अपार धनिकों में शुमार हैं, लेकिन वो धनी  हुए कैसे ? आपका ही पैसा लेकर न ! धनी होना बुरी बात नहीं है, लेकिन तानाशाही की हद तक धनी हो जाना, ख़तरे की घन्टी है । आज अम्बानी के तानाशाह बनने की शुरुआत हो चुकी है। अब अम्बानी आपकी रसोई तक पहुँच चुका है। आप कितना खाना बनायेंगे, और कैसे खायेंगे, इसका फैसला अब अम्बानी करने लगा है। क्योंकि आपको साल में कितने सिलिंडर मिलेंगे, इसका फैसला आपने अम्बानी के हाथ में दे दिया है। उसे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि आप कैसे जीते हैं या आप कैसे मर जाते हैं, क्योंकि उसके चूल्हे के लिए गैस की कभी कोई कमी नहीं होगी। अभी तो ये सिर्फ शुरुआत है, आगे-आगे देखिये होता है क्या। यही मौका है, भारतीयों के सम्हल जाने का, आवाज़ उठा कर लगाम कसने का। क्या इतने विशाल देश को चंद लोगों के हाथों में जाने देना सही होगा ? इससे पहले कि अम्बानी या उन जैसे लोग आपकी रसोई, आपका घर, आपकी जमा-पूँजी, आपकी दवाईयाँ यहाँ तक कि आपके जीवन का पुर्जा-पुर्जा वो अपने इख्तियार में कर लें , आप सोते से जाग जाइये और अपने आप को रहन होने से बचा लीजिये।

आज हर आम भारतीय की नज़र, बस चंद ख़ास व्यक्तियों पर ही टिकी रहती है। जैसे इनके अलावा और कोई रहता ही नहीं है भारत में। 'व्यक्ति पूजा' भारतीयों का प्रिय शगल हमेशा से रहा है। कुछ ही इने-गिनों की पकड़ मिडिया पर, और जन-मानस पर इतनी ज़बरदस्त देखने को मिलती है, कि लगता है, इन गिने-चुने लोगों के अलावा, भारतीय समाज में किसी का कोई योगदान ही नहीं है। अफ़सोस होता है यह सब देख कर। क्यों हम भूल जाते हैं कि हमारा देश सिर्फ इनके बल पर नहीं चल रहा है। भारत चल रहा है, लाखों शिक्षकों, लाखों डॉक्टर्स, जाने कितने इंजीनियर्स, कितने ही वैज्ञानिक, अनगिनत मजदूरों और न जाने कौन-कौन हैं, जो हर पल भारतीय समाज के तंतुओं को मजबूत बनाने में अपना योगदान दे रहे हैं। दुःख की बात ये हैं कि, हम कभी उनके बारे में न तो सोचते हैं, न कहीं उनकी चर्चा होती है, न ही उनको कभी सामने लाने की कोशिश की जाती है, यहाँ तक कि इतने बड़े हुजूम के होने का भी हमें भान नहीं है। लेकिन सच्चाई यही है कि भारत की चमक इन Unsung Heros की वजह से ही है, न कि इन चंद घाघ बिजिनेस मेन की वजह से । 

इन पूँजीपतियों के फंदे से जितनी जल्दी हो सके खुद को बचाना होगा ...अमेरिका की ग़लतियों से सीख लेने की जगह उन्हें अपनाना भारतीयों की भारी मूर्खता होगी। देख लीजिये, कहीं देर न हो जाए !


5 comments:

  1. पूँजी कुछ ही लोगों के हाथ में इकट्ठी हो जाने का यही अंजाम होना है !

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  2. सोचने की बात है। एक दूसरे तंत्र की अच्छाइयाँ अपनाने के बजाय हर तंत्र की खामियां चुनकर कुछ खास लोग फाइदा उठाने में लगे हुए हैं।

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  3. पता नहीं हम अपनी मूल शक्ति भूल कर आयातित की भक्ति में लगे हैं।

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  4. हम नहीं जागेंगे, नींद बडी प्यारी है और सपने सुन्दर

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