खजुराहो के मंदिर में, नारी के अनगिनत मनोभाव, अपार प्रतिष्ठा पाते हैं। ये उत्कीर्ण आकृतियाँ, पूर्णता और भव्यता की, प्रतीक मानी जातीं हैं। यहाँ नारी देह की लोच, भंगिमाएँ और मुद्राएं, लालित्यपूर्ण तथा आध्यात्मिक मानी जाती हैं। विनम्रता और आदर पाती हैं, ये प्रस्तर की मूर्तियाँ। ऐसी विशुद्ध सुन्दरता की दिव्य अनुभूति के लिए, समस्त कामनाओं से मुक्त हो कर, श्रद्धालु वहाँ जाते हैं। स्त्री के कामिनी रूप की, हर कल्पना को सम्मानित करते हैं, क्योंकि वो अपने हृदय में जानते हैं, यही शक्ति, संभावित माता है, जो सृष्टि को जन्म देगी, जो नारी के सर्वथा योग्य है।
लेकिन सड़क पर आते ही, वो सब भूल जाते हैं।
क्यों ???
आध्यात्मिक मानी जाती हैं। ??
ReplyDeleteyou are very much mistaken , go and read the comments that are written there just below them . dirty lucid comments
and i personally feel its such depiction of female form in sculpture and poems and elsewhere is responsible for all that happens
why should woman be treated just as a beautiful body
kala ki duniya yatharth ki duniya se sachmuch kitni juda hai
ReplyDeleteबहुत सही बात कही है आपने .सार्थक अभिव्यक्ति भारतीय भूमि के रत्न चौधरी चरण सिंह
ReplyDeleteआपके क्यों का जवाब मेरी पोस्ट विक्रम वेताल ७ http://zaruratakaltara.blogspot.in/2012/12/7.हटमल में कुछ हद तक .आशा है आप देखना पसंद करेंगी.
ReplyDeleteसड़क पर आकर सड़कीय हो जाती है इनकी मानसिकता।
ReplyDeletebahut achhi baat kahi aapne for best great story Click Hire
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