Wednesday, November 7, 2012

सौदर्य की पीड़ा....

सौन्दर्य के प्रति सहज आसक्ति मानवीय गुण है। लेकिन सौन्दर्य प्राप्ति के लिए बर्बरता ही हद तक जाना अमानवीय प्रवृति। इसी जगत में ऐसी कितनी ही परम्पराओं ने सिर्फ सौन्दर्य प्राप्ति के लिए जन्म लिया है, जो न सिर्फ अप्राकृतिक हैं, बल्कि नृशंस और बर्बर भी हैं।
ध्यान रहे, ये सारे अमानवीय प्रयोग महिलाओं पर ही किये गए हैं।

फुटबाइंडिंग या पैर बंधन परंपरा:

चीनी मान्यताओं में महिलाओं के छोटे पैर सौन्दर्य के प्रतिमान माने जाते थे। चीन में पैर बंधन की बर्बर प्रथा का आरम्भ तांग राजवंश (618-907) के दौरान 10 वीं सदी में शुरू हुआ और यह प्रयोग एक हजार से अधिक वर्षों तक चला. फुटबाइंडिंग या पैर बंधन का अभ्यास आमतौर पर छह साल या उससे छोटी बालिकाओं पर किया जाता था। इस अनुष्ठान से पहले बालिका के दोनों पैरों को जानवरों के रक्त तथा जड़ी बूटी के गरम मिश्रण में डुबोया जाता था। तत्पश्चात, पैरों के नाखूनों को ज्यादा से ज्यादा काटा जाता था। फिर पाँव के अँगूठे को छोड़ कर बाकी की चार उँगलियों को निर्दयता पूर्वक तोड़ कर, उसे एड़ी की तरफ मोड़ दिया जाता था ताकि उनका विकास आगे की ओर न हो, फिर उसी मिश्रण में भिगोई एक इंच चौड़ी और दस फीट लंबी रस्सी से उनके पैरों को बांध दिया जाता था, जिससे किसी भी कीमत पर पैर का सही विकास न हो।  ऐसा करने से महिला के पाँव 4-5 इंच ही बढ़ पाते थे। यह अमानुषिक परंपरा, प्रतिष्ठा और सौंदर्य, का बोधक था।










कांस्य के छल्ले और गर्दन की लम्बाई :


बर्मा में एक जनजाति पायी जाती है जिसका नाम है 'कायन'. यूँ तो यह भी अन्य जनजातियों की तरह ही है, लेकिन इस जनजाति की महिलाओं के विशेष परिधान ने लोगों को आकर्षित किया है। यह रूचि इसलिए हुई है, क्योंकि कायन महिलाएं अपनी नाजुक गर्दन में भारी-भारी कांस्य के छल्ले पहनती हैं। जिनकी संख्या उम्र के साथ-साथ बढ़ती ही जाती है। कांस्य छल्ला धारण का अनुष्ठान बालिकाओं के पांच वर्ष की आयु में ही शुरू हो जाता है और यह ता-उम्र चलता ही रहता है। उम्र के साथ, महिला की गर्दन में छल्लों की संख्या बढती है, उनका बोझ बढ़ता है और उनकी गर्दन भी लम्बी होती जाती है, जो उन्हें अधिक सुन्दर और आकर्षक बनाता है, ऐसा माना जाता है। 

सदियों से यह परंपरा कायन जाति की महिलाओं की पहचान रही है। इस प्रथा को अपनाने का मुख्य कारण गर्दन की लंबाई को बढ़ाना है, और लम्बी गर्दन खूबसूरती का साक्षात प्रतिमान माना जाता है। 

इस परम्परा को निभाने में कितने कष्ट है, एक बार इसे भी सोचना चाहिए।  एक बार कांस्य के छल्ले पहन लिए जाएँ तो इन्हें उतारना लगभग असंभव है| जीवन भर गर्दन पर बोझ लादे रहना, जो लगभग 5 किलो होता है, गर्दन की त्वचा को कभी भी प्राकृतिक हवा-पानी नहीं मिलता, फलतः उसका रंग ही बदल जाता है, गर्दन हमेशा छल्लों पर टिकी रहती है, इसलिए गर्दन की हड्डी बहुत कमजोर हो जाती है, जिसके कारण, अगर छल्ले हटा दिए जाएँ, तो गर्दन के टूटने का भी भय रहता है।

इतनी पीड़ा महिलाओं की अपनी पसंद है, सौन्दर्य के लिए है, या पुरुषवर्ग का अपना वर्चस्व जताने का तरीका ???  


12 comments:

  1. पागलपन है बाबा...............
    इससे तो बदसूरत भले...
    :-)

    अनु

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  2. ये पीड़ा दरअसल सौंदर्य के लिए नहीं है... एक तरह से अहम् की पूर्ति के लिये है. जैसा कि आपने लिखा, इस तरह के प्रयोग महिलाओं पर ही किए गये हैं... सोचो तो लगता है, हो न हो, शुरुआत कुछ ऐसी रही होगी - उसकी गर्दन मेरी (या मेरी बेटी/बीवी की) गर्दन से लंबी कैसे/क्यों? महिलाएं कुछ ईर्ष्या के कारण, कुछ शोषण के कारण इस तरह की तुलना और उससे उपजी पीड़ा की ज़्यादा शिकार होती हैं

    तुलना से अहम् आहत, आहत अहम् उकसाए कुप्रयोग, कुप्रयोग बने कुप्रथा... फिर क्या, जो प्रथा का पालन न करे, वो घोर पापी

    तभी न कहते हैं, सन्मति से बड़ी दुआ कोई नहीं :)

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  3. mujhe kuchh nahin kahanaa..

    bas...

    itanaa kahnaa hai

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  4. मैं तो सोच कर ही कांप रहा हूँ... स्त्रियाँ विरोध क्यों नहीं करतीं...

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  5. काश इतना ध्यान मन की सुंदरता पर दिया जाता।

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  6. अदा जी,
    जापान में महिलाओं के लिए बने विशेष प्रकार के जूतों के बारे में भी सुना था जो बहुत तंग होते थे ताकि पैरों का आकार न बढ़ पाए ।जहाँ तक बात है गर्दन पर छल्ले आदि पहनने की तो जनजाति समाज में कौनसी प्रथा क्यों शुरू की गई ठीक ठीक कहा नहीं जा सकता।हो सकता है इसका कोई धार्मिक कारण रहा हो।और वहाँ तो पुरुषो के लिए भी कई ऐसी प्रथाएँ और कर्मकाण्ड के बारे में सुना है जो बहुत भयावह है और उन्हें जीवनभर निभाना पड़ता है जिनमें शारीरिक कष्ट भी बहुत होता होगा।

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  7. मानव शरीर स्वयं में ही सुन्दर है, इसे पुनः ढालने की क्या आवश्यकता?

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  8. इतनी पीड़ा महिलाओं की अपनी पसंद है, सौन्दर्य के लिए है, या पुरुषवर्ग का अपना वर्चस्व जताने का तरीका ???

    एक निश्चित काल का सौन्दर्य बोध होता है. जिसे परंपरागत ढंग से सम्मान दिया जाता है.इसे वर्चस्व जतलाना कहना उचित होगा? एक बात सदैव ध्यान रखें नारी सदा महान और पूज्य रहीं हैं . किसी भी परिवर्तन को मानना न मानना हमारी भी सहमति को व्यक्त करता है. गोदना, दांत को छोटा करना , बाल बढ़ाना, आदि आदि सौन्दर्य के आयाम रहे हैं.शायद किसी पर बल प्रयोग संभव और उचित नहीं रहा होगा.......

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  9. पता नहीं कौन सा पुरुष कहता है नारी को नाक कान छिदवाने के लिए / टैटू खुदवाने के लिए / वैक्सिंग करवाने के लिए और ऐसे ही कितने सौन्दर्य कर्म जो पीड़ा दायक भी होते हैं ...
    मैंने तो अपने जीवन में नारी को ही इन सब के प्रति स्वयम ही लालायित देखा है ...
    अपने से बड़ों को भी ..हमउम्र में भी ..और नयी पीढ़ी में भी ...

    पोस्ट आपकी ठीक है .. मगर इस बात से ज़रा सा भी सहमत नहीं हूँ की यह सब नारी पर किया गया पुरुष का अत्याचार है

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  10. भयावह कष्ट साधक सुन्दरता!! :(
    चीन बर्मा……
    और हम है कि मात्र बिंदी चुडियों में भी अत्याचार प्रताड़ना महसुस करते है। दुनिया के निराले रंग, इन्सान नश्वर काया की अबुझ सुन्दरता के लिए भी कितने कष्ट ओढ़ लेता है।

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  11. किसी भी कोण से इसमें सुन्दरता नजर नहीं आयी !

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  12. ओह ये तो क्रूरता हुई सौंदर्य के नाम पर।

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