क्यों आत्मा पृथ्वी पर जन्म लेती है, और क्यों वह इतने कष्ट झेलती है ? मृत्यु के बाद क्या होता है, और भाग्य क्या है? क्यों दो व्यक्तियों के जीवन में इतनी असामनता है ? हिंदू धर्म के अनुसार, मृत्यु के उपरान्त भी आत्मा का विनाश नहीं होता, जो ब्रह्मांड की अन्य अवधारणाओं के साथ असंगत है, जो साधारनतया यह बताती हैं कि मृत्यु के साथ ही सबकुछ समाप्त हो जाता है, और उसके बाद के जीवन का कोई अर्थ नहीं। परन्तु ये अवधारणायें, दृश्य लोगों के बीच की स्पष्ट असामनताओं की व्याख्या नहीं कर पाती। सब बराबर पैदा नहीं होते, कुछ बुरी प्रवृत्तियों के साथ जन्म लेते हैं, तो कुछ अच्छी प्रवृतियों के साथ , कुछ मजबूत हैं और कुछ कमजोर, कुछ भाग्यशाली हैं, और कुछ दुर्भाग्यपूर्ण हैं। इसके अलावा, यह भी अक्सर देखने को मिलता है पुण्य करनेवाले पीड़ित हैं और शातिर समृद्ध। क्या इसे हम परमेश्वर का अन्याय या उसके द्वारा किया गया भेद-भाव कहेंगे ?
हिंदू धर्म का कहना है, कि जीवन के दुख और असमानताओं का निदान मृत्यु के पश्चात नहीं बल्कि जन्म से पहले ही हो जाना चाहिए। पुनर्जन्म, आत्मा के अमरत्व का परिणाम और मृत्यु आने वाले अनेक जीवन की श्रृंखला को जारी रखने के लिए विश्राम स्थली। और यही वो समय होता है, जहाँ अगले जन्म के निर्णय, कर्मों का लेखा-जोखा, योनी निर्धारण इत्यादि होता होगा शायद।
हिन्दू दर्शन में पुनर्जन्म पूरी तरह से मनुष्य के 'कर्म' द्वारा शासित होता है। इस सिद्धांत के अनुसार मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है,और वह अपने 'कर्म' द्वारा पुनर्जन्म को बनाए रखता है ....
हिन्दू दर्शन में पुनर्जन्म पूरी तरह से मनुष्य के 'कर्म' द्वारा शासित होता है। इस सिद्धांत के अनुसार मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है,और वह अपने 'कर्म' द्वारा पुनर्जन्म को बनाए रखता है ....
दूसरी तरफ अगर , हम कुछ लोगों के जीवन का अवलोकन करें , जैसे सद्दाम, हिटलर, मुसोलोनी, बिन लादीन, गद्दाफी, इदी अमीन इत्यादि, ने जो इस जन्म में वैभवपूर्ण जीवन जिया, क्या वह सब उनके पिछले जन्म के कर्मों का परिणाम था ? जबकि इनमें से किसी को भी न पूर्वजन्म पर विश्वास था, न ही पुनर्जन्म पर यकीन। क्या उनके इस जन्म के कर्मों का उनकी आज की सफलता (??) में कोई हाथ नहीं था ? उन्होंने जो राजनीति, कूटनीति इस जन्म में खेली, उससे उनको ये सफलता नहीं मिली ?
कुछ लोगों को बिना मेहनत के ही सबकुछ मिल जाता है जबकि, कुछ अथक मेहनत करते हैं, फिर भी कुछ हासिल नहीं कर पाते... आखिर वजह क्या है ? क्या यह पूर्वजन्म के कर्मों के फल हैं ? कभी यह भी देखा है, लोग असफल होते हैं, फिर बार-बार कोशिश करते हैं, और सफल भी हो जाते हैं ...इसे क्या कहा जाएगा, आज की मेहनत या पिछले जन्म के कर्मों का परिणाम ...?
आप अपने ऑफिस में सबसे काबिल माने जाते हैं, इसलिए नहीं कि आपने पिछले जनम में बड़े पुण्य किये थे , बल्कि इसलिए माने जाते हैं, क्योंकि आज हर दिन आप, अपना काम पूरी निष्ठा से करते हैं। कोई व्यक्ति बहुत ईमानदार और सच्चा या बेईमान, धोखेबाज़, उसके आज के व्यवहार से माना जाता है, पिछले जन्म के व्यवहार से नहीं ...
कुछ लोगों को बिना मेहनत के ही सबकुछ मिल जाता है जबकि, कुछ अथक मेहनत करते हैं, फिर भी कुछ हासिल नहीं कर पाते... आखिर वजह क्या है ? क्या यह पूर्वजन्म के कर्मों के फल हैं ? कभी यह भी देखा है, लोग असफल होते हैं, फिर बार-बार कोशिश करते हैं, और सफल भी हो जाते हैं ...इसे क्या कहा जाएगा, आज की मेहनत या पिछले जन्म के कर्मों का परिणाम ...?
आप अपने ऑफिस में सबसे काबिल माने जाते हैं, इसलिए नहीं कि आपने पिछले जनम में बड़े पुण्य किये थे , बल्कि इसलिए माने जाते हैं, क्योंकि आज हर दिन आप, अपना काम पूरी निष्ठा से करते हैं। कोई व्यक्ति बहुत ईमानदार और सच्चा या बेईमान, धोखेबाज़, उसके आज के व्यवहार से माना जाता है, पिछले जन्म के व्यवहार से नहीं ...
ऐसे कई प्रश्न आये मन में जब मैंने ये पोस्ट पढ़ी :
http://mosamkaun.blogspot.ca/2012/11/blog-post.html?showComment=1352086662933#c9143398798382510055
भारतीय दार्शनिक पुनर्जन्म और कर्मफल को मानते ही रहे हैं और अब वैज्ञानिक भी इस बात को स्वीकार करने लगे हैं। विज्ञान ने अनुसार ही देखा जाए तो ऊर्जा का विनाश नहीं होता, उसकी सिर्फ अवस्था बदल जाती है। हमारी चेतना, ऊर्जा का शुद्धतम रूप है।
सद्कर्म का फल हमेशा अच्छा होता है, इस जन्म में भी, अगले जन्म में भी और पिछले जन्म में भी, (अगर जो ये सब होता है तो) ...इत्ती तो हिंदी फिलम हैं, देखा नहीं है, हर बार धर्मेन्द्र, मीनाकुमारी, राजेश खन्ना, प्राण को हरा देते हैं।
मेरे पति हमेशा कहते हैं, तुमसे मेरा नाता सात जन्मों का है, और मैं जी भर के उनको सता लेती हूँ, क्योंकि मेरे हिसाब से 'ज़िन्दगी ना मिलेगी दोबारा ' और मौका भी न मिलेगा दोबारा ।
हाँ नहीं तो ..!
भारतीय दार्शनिक पुनर्जन्म और कर्मफल को मानते ही रहे हैं और अब वैज्ञानिक भी इस बात को स्वीकार करने लगे हैं। विज्ञान ने अनुसार ही देखा जाए तो ऊर्जा का विनाश नहीं होता, उसकी सिर्फ अवस्था बदल जाती है। हमारी चेतना, ऊर्जा का शुद्धतम रूप है।
सद्कर्म का फल हमेशा अच्छा होता है, इस जन्म में भी, अगले जन्म में भी और पिछले जन्म में भी, (अगर जो ये सब होता है तो) ...इत्ती तो हिंदी फिलम हैं, देखा नहीं है, हर बार धर्मेन्द्र, मीनाकुमारी, राजेश खन्ना, प्राण को हरा देते हैं।
मेरे पति हमेशा कहते हैं, तुमसे मेरा नाता सात जन्मों का है, और मैं जी भर के उनको सता लेती हूँ, क्योंकि मेरे हिसाब से 'ज़िन्दगी ना मिलेगी दोबारा ' और मौका भी न मिलेगा दोबारा ।
हाँ नहीं तो ..!
मौका मिला है, पूरा जीने का..
ReplyDeleteअच्छे बुरे कर्मों का लेखा बता पाना शायद आज कठिन होगा क्योंकि तक़निक विकसित हो गया है उसे सही दिशा ले जाना और गणना अनुसार सत्य या कहूँ सही हल को खोज कर जन सामान्य तक रखा पाना बाकि है . एक छोटा सा उदहारण मात्र रामायण में आदि पुरुषोत्तम रामचंद्र जी का वर्णन और रामचरित मानस में मर्यादा पुरुषोत्तम रामचंद्र जी का चरित वर्णन ..... आप स्वयं विचार करें . तकनीक उन्नत है अभी उसका सही उपयोग बाकि है . कुंडली को पढ़ा पाना , कर्म फल को बता पाना संभव होगा? फिर भी एक प्रचलित कहावत आपको नज़र करता हूँ *** कुछ करनी कुछ करम गति कुछ पुरबल के भाग *** अर्थात कुछ हमारे किये कर्म, कुछ कर्म की गति, और कुछ पूर्वजों के भाग हमारे जीवन की दशा और दिशा को निर्धारित कर जाते हैं ऐसा सुना और गुना है. ... आपने बहुत सुन्दर और सार्थक पोस्ट लिखा बधाई शायद कम हो प्रणाम स्वीकारें.
ReplyDeleteआपकी उम्दा पोस्ट बुधवार (07-11-12) को चर्चा मंच पर | जरूर पधारें |
ReplyDeleteसूचनार्थ |
हालाँकि इस जन्म में सद्कर्मों के बावजूद दुखी रहने वाले और बुराई के प्रतीक होने के बावजूद खुश रहने वाले अनगिनत देखे हैं , फिर भी अंतर्मन का विश्वास यही कहता है की सद्कर्म का फल हमेशा अच्छा होता है, इस जन्म में भी!
ReplyDeletesat-chit-anand vyakhya ka nahi bhav ki baat hai....kab, kaun, kaise aur kitna ise grahan karta hai......ye anubhav ki baat hai.....
ReplyDeletekarm hamara p/l a/c. hai jabke bhagya balance sheet........jinhe nahi pata ho o audit karva len....
bastutah: aapke pas kisi bhi vastugat jankari hoti to hai........lekin, aap use alag-alag sandarbh me alag-alag nazariye/dristikon se prastoot karte hain.....
ek choti si kahani yaad to aa raha lekin phir sahi.......
pranam.
@ हाँ नहीं तो ..!
ReplyDeleteलेख की गंभीरता पर असर डालते शब्द |
सादर -
कठोपनिषद का पारायण करिये ....सब समझ में आजायगा ...
ReplyDeleteKindly have a look at articles here.
ReplyDeletegurusantmat.org/index.php?option=com_content&view=article&id=61&Itemid=1&lang=en
, और मैं जी भर के उनको सता लेती हूँ, क्योंकि मेरे हिसाब से 'ज़िन्दगी ना मिलेगी दोबारा ' और मौका भी न मिलेगा दोबारा ।
ReplyDeleteधत्त्त तेर्री कीई ....
हमें लगा कोई बहुत बड़ा गूढ़ ज्ञान अंत में जानने को मिलेगा ... और यहाँ आप पतिदेव की वाट लगाने में लगी हैं ...
अभी दो दिन पहिले ही तो व्रत किया है जिनका
यावेत जीवेत सुखम् जीवेत
ReplyDeleteऋणम् कृत्वा घृतम् पिवेत.
- चार्वाक
जो लोग आज बुरे कर्म करते हुए भी सुख में ओतप्रोत होते है वस्तुतः पूर्व भवों में तृष्णा और इच्छाओ के अधीन बुरी भावना रखते हुए कुछ अनायास ही अच्छे कर्म द्वारा पुण्य उपार्जन किए होते है उन्ही पुण्यफल से उन्हें अनुकूल स्थिति, सुख सुविधा व कीर्तियाँ तो प्राप्त हो जाती है किन्तु विपरित महत्वकांक्षाओं और बुरे कर्म के फल स्वरूप सुख भोगते हुए और भी बुरे कर्म कर जाते है अगले जन्मों आदि में भोगने के लिए। बुरे कर्मों का दुख भोग कर्मानुसार कभी भी उदय में आ सकता है, वर्तमान भव में और आगले कईं भवो के बाद, जैसी कर्मों की तीव्रता या सहजता। कर्मों के क्रियान्वन के साथ साथ मन के भावो का भी प्रमुख प्रभाव होता है। विषय बडा गूढ है पर कर्म की व्यवस्था बडी सटीक है। जैसे कोई बहुत बड़ा दान पुण्य करे किन्तु मन में भाव किसी अन्य को नीचा दिखाने का रहे तो कर्मफल का परिणाम बुरा ही आएगा। और कोई भूखा अपनी भूख को भूल उसमें ऐसा भाव जगे कि यदि मेरे पास सामग्री होती तो सबसे पहले मैं अन्य भूखों की भूख का निवारण करता, ऐसा शुभ सोचता हुआ वह गरीब, उस दानवीर से अधिक पुण्य का उपार्जन कर लेता है। मानव पापकर्म व पुण्यकर्म दोनों में ही असंख्य तरह की मायाएँ रचता है, किन्तु कर्म व्यवस्था में प्रत्येक छोटे भाव की परिगणना होती है।
ReplyDeleteविज्ञान मानता है कि हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है, वैसे ही हम मानते हैं कि हर कर्म का तदनुरूप फ़ल भी मिलता है। इसे मानना या न मानना व्यक्तिगत च्वॉयस है।
ReplyDeleteरमाकांत सिंह जी ने जो कहावत पेश की है, बहुत कुछ कहती है और मेरे विश्वास को सुदृढ़ करती है।
धन्यवाद।
कोई भी घटना या कार्य अकारण नही घटता. कुछ भी घटित होने मेँ पाँच समवाय का योगदान होता है, एक मात्र 'कर्म' ही नही. काल, स्वभाव, कर्म, नियति व पुरूषार्थ. देखेँ... कारणवाद (पंच समवाय)
ReplyDelete@ आप अपने ऑफिस में सबसे काबिल माने जाते हैं, इसलिए नहीं कि आपने पिछले जनम में बड़े पुण्य किये थे , बल्कि इसलिए माने जाते हैं, क्योंकि आज हर दिन आप, अपना काम पूरी निष्ठा से करते हैं। कोई व्यक्ति बहुत ईमानदार और सच्चा या बेईमान, धोखेबाज़, उसके आज के व्यवहार से माना जाता है, पिछले जन्म के व्यवहार से नहीं ...
बेशक काबिल वे अपनी कर्तव्य निष्ठा से माने जाते है किंतु किसी किसी मेँ काबिलियत उत्पन्न होती ही क्योँ है,कईँ लोग लाख प्रयास के बाद भी कुशल नही हो पाते, किसी को कुशलता रास नही आती, किसी को कुशल होते हुए भी कुशलता का सम्मान नही मिलता, कोई कुशल बनना ही नही चाहते, किसी की धारणा ही बन जाती है कि कुशलता से कुछ भी उपार्जित नही होता, कोई कौशल का मात्र दिखावा कर लाभ उठाते है, कोई कोई तो कुशलता के लाभ जानते हुए भी बार बार के प्रयासोँ के बाद भी कर्तव्यनिष्ठ बने नही रह पाते. कोई सभी कार्य कुशलता से करते है किंतु श्रेय पाने के समय ही चुक हो जाती है या अवरोध आ जाता है. किसी को बहुत काल बाद कौशल का लाभ मिलना ही होता है और उसका उसी समय कौशल से भरोसा उठ जाता है और निष्क्रिय हो जाता है. आखिर ऐसे चित्र विचित्र सँयोग बनते क्योँ है? कर्माधीन!!
निसन्देह आज के व्यवहार से ही व्यक्ति ईमानदार, सच्चा, बेईमान या धोखेबाज़ माना जाता है पर सोचने की बात यह है कि क्योँ किसी का कोई विशिष्ठ व्यवहार स्वभाव या वर्तन होता है? क्योँ किसी मनोवृति पर निष्ठ होता है? कर्माधीन!!
@ लोग एक बार असफल होते हैं, फिर मेहनत करते हैं, दोबारा तिबारा मेहनत करके सफल भी होते हैं, इसे क्या कहा जाएगा, पिछले जन्म का फल, या आज की मेहनत ...??
Delete@ यकिन से कैसे कहा जा सकता है, क्योँकि सटीक सच्चाई सर्वज्ञ ही जान सकते है यहाँ कोई सर्वज्ञ नही है. असफलता कर्मफल भी हो सकती है और प्रमाद भी. सफलता कर्मफल भी हो सकती है और पुरूषार्थ (महनत)भी. दोबारा तिबारा ही नही सौबारा सहनशक्ति के सीमांत तक महनत करे और फिर भी सफलता न पाए तो क्या कहेंगे?
Deleteपिछले जन्म को लेकर आपके दिए इस तर्क को मुझे माने में कठिनाई हो रही है. मेरा शुरू से ही एक पञ्चलाईन रहा है "They called it luck, I called it probability."
Deleteआप उसी लक अथवा भाग्य को पिछले जन्म से जोड़ रहे हैं. ऐसे तो यह भी कहा जा सकता है की सिक्के को उछालने पर चित आयेगा या पट, यह भी उस उछलने वाले के पिछले जन्म का ही फल है? मगर मेरे मुताबिक़ दोनों के ही आने की संभावना पचास फीसदी है. जिसे प्रोबैबिलिटी कहते हैं. आप एक ही सिक्के को इमानदारी से हजार बार उछालिये और उसके परिणाम की गणना कीजिये तो चित और पट आने का परिणाम लगभग बराबर ही होगा.
पञ्चलाईन………
Deleteयही तो दृष्टिकोण वैभिन्य है, सम्भावनाएं अगणित है इसीलिए सभी सभी तरह की दृष्टि अवसर है।
यह सही है कि चित या पट, दोनों के ही आने की संभावना पचास फीसदी है. लेकिन एक उछाल की संभावना पचास फीसदी है। हजार बार उछालेंगे तो प्रत्येक हजार में परिणाम भिन्न होंगे, आप एक संख्या का सिद्धांत निर्धारण कर ही नहीं सकते। जहां 2 और 2 चार की तरह सटीक परिणाम नहीं होते, सोच की अधिक सम्भावनाएं वहीं तो बनती है।
चलिए कोई बात नहीं. आप एक करोड़ या एक हजार करोड़ बार उछाल लें. और उसके बाद जो भी परिणाम आये वह आपको 49.999999564543353 ऐसा ही कुछ परिणाम मिलेगा या फिर 50.0000007565456456 ऐसा ही कुछ..
Deleteखैर.
वैसे हो सकता है की आपको पता हो, मगर फिर भी लिखना चाहूँगा, चूँकि मैं कंप्यूटर प्रोफेशनल हूँ सो.
Deleteआपके बैंक में रखा रुपया यदि एक हजार है तो इसका मतलब कभी ये ना समझें की वह एक हजार ही है. आप बारीकी से देखेंगे तो आप पायेंगे की वह 999.999999999999999976776767 ऐसी ही कुछ संख्या होगी. जिसे हम-आप हजार मान लेते हैं.
शायद मैँ अपनी बात स्पष्ट नही कर पाया. एक उछाल मेँ पचास फीसदी का अर्थ यह है कि पचास फीसदी चाँस है चित आए और पचास फीसदी चाँस है पट आए. किंतु हजार मेँ हर बार पचास फीसदी बार चित और पचास फीसदी बार पट नही आ सकते, मैने कहा वे अलग अलग 20/80, 30/70 इस तरह भिन्न भिन्न फीसद मेँ आएँगे.
Deleteचलिय्र आप हजार बार उछाल कर देख लीजिये. यह 20/80 या 30/70 आये तो कहियेगा. मैं बहुत अधिक श्योर हूँ की यह 49/51 से कम पर नहीं टिकेगा. और यह पिछले जन्म का प्रभाव तो कतई नहीं होगा.
Delete:)
Deleteचित पट के प्रतिशत का पूर्व जन्म से सम्बँध नही है, यह तो आपके ही दिए उदाहरण से सम्भावनाओँ को मात्र टटोलने का काम किया. सिक्के को किसी निर्णय के लिए उछाला जाता है और एक निर्णय आता है तो क्या सिक्का निर्णायक है? नही, सिक्का निर्णय का निमित मात्र है. घटना उसी सँयोग से बननी थी. सिक्के के निर्णय के बाद भी जिस कार्य के लिए यह निर्णय लिया गया उसके सफल होने की गारंटी नही है. कर्म सिद्धाँत ऐसे कईँ निमितोँ के सहयोग से भी कार्य करता है.
बिलकुल यही बात जो आपने कही, उसे ही मैं कह रहा था. हर कर्म को आप पिछले जन्मों के कार्य से नहीं जोड़ सकते हैं. बल्कि मैं तो यह कहता हूँ की अगर कल यह सिद्ध हो जाए की कोई भी कार्य पिछले जन्म से सम्बंधित नहीं है तो मुझे आश्चर्यमिश्रित ख़ुशी होगी.
Deleteऔर अगर मैं गलत हूँ और पिछले जन्म का प्रभाव अगले जन्म में पड़ता है तब भी मुझे अगले जनम(जिसे किसी ने देखा नहीं है और हमें भी पिछले जन्म की बात याद नहीं) की चिंता में घुलने से बेहतर तो यही लगेगा की इस जन्म की चिंता में घुला जाए.
थोडा सा बात में अन्तर है, आप अप्रत्याशित घट्नाओं को संयोग मात्र मानते है और मैं मानता हूं कोई भी घटना बिना करण कारण के नहीं होती। आप उन घटनाओं को ही संयोग मानते है और मैं संयोग को किन्ही घटनाओं के निमित मात्र।
Deleteआपके और मेरे बीच दृष्टिभेद आपके इसी कथन में निहित है - "मुझे अगले जनम(जिसे किसी ने देखा नहीं है और हमें भी पिछले जन्म की बात याद नहीं) की चिंता में घुलने से बेहतर तो यही लगेगा की इस जन्म की चिंता में घुला जाए."
चलो एक बार पिछले जन्म या अगले जन्म को भूल इस जन्म पर विचार करते है हमारा बुढ़ापा हमारे से अभी तक अनदेखा है क्या हमें इस चिंता में नहीं रहना चाहिए कि बुढ़ापा आएगा, कोई लम्बी बिमारी भी चल सकती है। हमें हमारे बुढ़ापे को सुरक्षित करना चाहिए, स्वास्थ्य का ख्याल रखना चाहिए, सावधान रहना चाहिए, अर्थ संग्रह कर रखना चाहिए। न कि यह सोचा जाय कि हमें बुढ़ापा आएगा ही नहीं, बुढ़ापा किसने देखा है? अभी तो हम जवान है बेफिक्र रहा जाय और जवानी की चिंता में ही कन्द्रित रहा जाय्। उसी चिंता में घुला जाय।
उसी तरह यदि पुनर्जन्म व्यवस्था होगी, और हम गरीब हुए तो अभावों की चिंता में घुले रहे और अपने अभाव दूर करने के लिए अनैतिकताएं आचरने लगे, और यदि अमीर हुए तो अपने राग रंग में मस्त रहे और हमारे सुखों के कारण दूसरों को पहुंचती पीडा अत्याचार आदि पर ध्यान न गया, स्वार्थ सुख की चिंता में ही घुले रहे तो उस व्यवस्था में हमारा कर्मफल क्या होगा? फिर क्यों न अगले जन्म की चिंता में अपने व्यक्तित्व और चरित्र को सुधारा जाय? और क्यों न पिछले जन्म का चिंतन किया जाय कि गरीब अवस्था या अमीर अवस्था हमें किन कारणों से सहज संयोगी हुई है। मात्र अमीर गरीब ही नहीं, रुग्णता या निरोगी काया, सुन्दर शरीर या विकलांग शरीर, नेतृत्व शक्ति या पिछलगुपन, सर्वमान्य या सर्व तिरस्कृत, दबंग या दब्बु, अनुकूलता या प्रतिकूलता, सुख या दुख सभी क्यों अप्रत्याशित हमारे जीवन में चले आते है? इसलिए पूर्वकृत कर्मों का चिंतन और भविष्य के परिपेक्ष्य में वर्तमान कर्मों की चिंता करना जरूरी है।
बुढापा आएगा तो इसी जनम में आएगा. जिसे हम उस वक्त देखेंगे जब हमें इस जन्म के कर्म भी याद रहेंगे. मगर एक ऐसे अनिश्चित भविष्य को लेकर घुलना मुझे पसंद नहीं जिसका कुछ अता-पता भी ना हो. और जब वह आएगा तो अभी के हमारे कर्म भी याद ना रहे.
DeleteWe dance round in a ring & suppose,
But secret sits in the middle & knows.
बहुत ही कन्फ्युजियाने वाला विषय है अदा जी इसलिए कुछ न ही कहा जाए तो अच्छा ! हां, जो सामने है उसे भरपूर जियो इसमें कोई दो राय नहीं !.............. इस विषय का एक अपवाद है राबडी देवी ! :)
ReplyDeleteमैं भी कर्म में विश्वास करती हूँ प्रमाण पर जीती हूँ पुनर्जन्म या पूर्व जन्म में यकीन नहीं रखती बस ये जीवन जो मिला है इसे ही भरपूर जी लें
ReplyDeleteअगले जन्म में क्या होगा कैसे होगा इसके लिये ये जन्म काहे खराब किया जाये। :)
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