Thursday, May 19, 2011

अब कहाँ गया वो ?? (जापान की सुनामी की याद में एक कविता ... )


मौसम में कोई सम नहीं,
रात हो गई अंगारा
दुपहरी थोड़ी रेशम सी है
सांझ बनी ऊसर-परती, 
निर्वासित सी डोल रही
नियमितता, अनियमितता संग,
कभी गलियों में
कभी सड़कों पर,
खुली-खुली और बिन संतुलन,
स्वछंदता है बंधी-बंधी,
जीवन का आयाम 
बिखरा सा,
न कोई कसाव, 
न कोई बनावट 
ग्राम-देवता रूठ गए अब, 
धरती कितनी रेगिस्तानी
हरे-भरे खेत हैं ओझल,
दलदल हुई, अट्टालिकाएं 
स्वर्ग की चाबी कहीं खो गई,
शहर था इक गठा-गठाया
सृजन का रंग काफ़ूर हुआ,
वो यही कहीं था
अब कहाँ गया वो ?
ढूंढ के देखा,
है चहुँ ओर
नहीं मिला वो 
नहीं मिला वो... !
 

 

8 comments:

  1. jis jagat se aaya tha ..... usi jagat me leen ho gaya ........... abhar....

    pranam.

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  2. ee kee hoye chhe......attempt failed hoye chhe...

    pronam.

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  3. त्रासदि का सफल चित्रण....

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  4. त्रासदि का सफल चित्रण लिखा है आपने....

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  5. हमारे नामराशि के प्रथम कमेंट से सहमत, समीर सर के कमेंट से भी सहमत और आपकी कविता से भी सहमत।
    यहाँ भी मौसम में विषमता है लेकिन आशा है कहीं तो सम होगा ही। आशायें जीवित रहें, शुभकामनाये।

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  6. बिखरा सा,
    न कोई कसाव,
    न कोई बनावट
    ग्राम-देवता रूठ गए अब,

    सफल चित्रण

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  7. किस वक़्त मौसम कौन सी करवट बदले कुछ पता नहीं.सुनामी इसी का नतीजा था.आपकी कविता अच्छी है.

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  8. प्रकृति के आगे किस का बस चले:(

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