पिछली बार जब इंडिया गयी तो वापसी में रांची एयर पोर्ट पर पहुंची...रांची का एयर पोर्ट तो बस यूँ लगता है जैसे अपना ही साम्राज्य हो...और क्यूँ न हो भला...वहां जिनका साम्राज्य है ..उनके दिलों में हमरा साम्राज्य जो है..:)
अरे नहीं..! ऐसी वैसी कोई बात नहीं है...मेरा बचपन वहाँ घुसते साथ ही फुदकने लगता है ....मेरी सहेली माधुरी, एयर होस्टेस थी लेकिन अब कोई टॉप पोजीशन में है... जिससे दोस्ती, आप यूँ समझे कि मेरे पैदा होते साथ ही हो गयी थी...और आज भी वैसी ही है...न एक इंच इधर न एक इंच उधर...देबू भैया, सिक्योरिटी ऑफिसर हैं...सतीश.. मेरे जीजा जी हैं जो एयर पोर्ट मैनेजर हैं...कहने का मतलब यह कि हर तरफ अपने लोग ही नज़र आते हैं..
मैं जैसे ही पहुंची, देखा माधुरी और देबू भैया, बड़े बीजी हैं, किसी महिला का लगेज ज्यादा होने पर उसकी मदद में लगे हुए हैं...माधुरी ने मुझे देखते ही, आँखों से इशारा किया ''अभी आती हूँ''...मैंने भी आँखों आँखों में ही कह दिया ''फिकिर नॉट ''.. ये आँखें भी कितनी अजीब होतीं हैं...बिन बोले सब कुछ कह जातीं हैं...मैं तो वैसे भी आँखों का इस्तेमाल ज्यादा ही करती हूँ...आलसी हूँ ना....कौन अपनी ज़ुबान को तकलीफ दे....आँखों से अपना काम भी हो जाता है और किसी को पता भी नहीं चलता है...युंकी...आम के आम और गुठलियों के दाम....सबसे बड़ी बात कोई सबूत नहीं छोड़ते हम...कोई चश्मदीद गवाह नहीं ...कोई कह भी नहीं सकता कि तुमने ये बात कही थी...हा हा हा...हाँ अगर कोई कहे कि तुमने मुझे 'ऐसी-वैसी' नज़र से देखा था तो फिर हम देख लेंगे उसे भी...हाँ नहीं तो...
खैर दस मिनट में माधुरी आ ही गयी...मैंने देखा था, महिला बहुत ज्यादा रिक्वेस्ट कर रही थी...सामान कुछ ज्यादा ही दिखाई दे रहा था.....मैंने माधुरी से पूछा 'लफड़ा क्या है ?' माधुरी ने जो बताया, वो गौर करने वाली बात है...कहने लगी ये 'प्रियंका चोपड़ा' की माँ है ..मैं हकला के रह गयी ..'ककक्या ?' प्रियंका की माँ और बोरी के साथ ? क्या बात करती है...! माधुरी बोली ..अरे सच में यार, प्रियंका के लिए यहाँ से 'उसना चावल' (boiled rice) ले जा रही है...प्रियंका यही चावल खाती है, दूसरा नहीं...और तो और सिर्फ चावल ही खाती है...वो भी 'ढेंकी का कूटा हुआ' ...अब जिनको 'ढेंकी' का मतलब नहीं पता ..उनके लिए तस्वीर लगा दी है, 'ज़रा ऊपर देखिएगा'....इस यंत्र को पैर से चलाया जाता है....मैंने भी चलाया है कई बार....ये सब सुनते ही मैं तो पछता के रह गयी, अपना सामान देखा....मन ही मन सोचा.. हाय राम !, एक हम हैं, हर वक्त बासमती के ही गुण गाते रहते हैं...अब ना हम जाने, प्रियंका की पतली कमर का राज...और एक हम हैं...'उसना चावल' (boiled rice) के देश में पैदा होकर भी, उसकी महिमा नहीं जान पाए...हमरी माँ कितना बार बोल चुकी है, 'उसना चावल' (boiled rice) सबसे अच्छा होता है...लेकिन हम सुने तब ना..काश हम भी माँ की बात मान लिए होते...तो हमारी कमर, कमरा तो ना होती ...! लेकिन अब तो हम भी ठान चुके हैं...और माधुरी से कह चुके हैं...चाहे कुछ भी हो जाए, मेरे लिए भी 'ढेंकी कूटा चावल का इंतज़ाम करो..अगली बार मेरा लगेज भी बड़ा होगा....अपने कमरे को कमर करना ही है...माधुरी भी मान गयी है मेरी बात...आप भी इस बात पर गौर फरमाएं...बेशक ये चावल देखने में मोटा होता है...लेकिन खाने में स्वादिष्ट और हर तरह से पौष्टिक होता है...इसके लुक पर नहीं जा कर, आप अपने लुक का ख़याल कीजिये और जहाँ तक हो सके इसे अपने भोजन में स्थान दीजिये...अगर आप चावल खाते हैं तो...वर्ना आपकी मर्ज़ी....हमारा काम था बताना सो बता दिए...
हाँ नहीं तो..!
इत्ते परिचित तो हमारे किसी रेलवे स्टेशन पर भी नहीं हैं जितने आपने अपने एयरपोर्ट पर बता दिये। खैर, हाई स्टेटस है आपका - ये पहले से जानते हैं इसलिये कोई अचंभा नहीं हुआ। हैं आप बड़ी दयालु वैसे, कोई कहेगा तो उसे देख लेंगी आप, हा हा हा।
ReplyDeleteमाँजी की बात न मानकर अच्छा ही किया आपने नहीं तो माँजी एयरपोर्ट पर ’उसना चावल’ की बोरी संभाल रही होतीं और प्रियंका यहाँ ब्लॉगिंग कर रही होती। ईश्वरम यत्करोति शोभनम एव करोति।
इतने सहज तरीके से लिखती हैं आप कि मजा आ जाता है। हमेशा आपके चित्र संयोजन की तारीफ़ करता हूँ, है न? तस्वीर बहुत अच्छी लगी, आभार स्वीकार करें:)
अरे वाह ..
ReplyDeleteउसना चावल के स्वाद के क्या कहने !!
ढेंकी के कूटे चावल भी खाए हैं बचपन में ..
पौष्टिक तो बहुत होता है ये ..
पर आपके द्वारा दी गयी जानकारी पढकर सुखद आश्चर्य हुआ !!
आपने भले इँडिया का सीन बयान किया,
ReplyDeleteपर हमारे भारत में तो लोग बादशाह खाने में ही बादशाहत समझते हैं...
कहते हैं कि, धुत्त... इँडिया इज़ अ पूअर कँट्री.. लेट देम ईट देसी चावल !
हमरा कमेन्टवा बिहार कोटा में जाने दिजीयेगा नू..
ReplyDeleteतॅ हम हरदम कमेन्ट करेंगे !
@ अरे संजय ही...
ReplyDeleteआभार भार रहने दीजिये आप..
आप तो ई बात का खुलासा कीजिये कि कौन सी तस्वीर अच्छी लगी आपको...?
हाँ नहीं तो...!
@ डागडर साहेब,
ReplyDeleteई बिलाग तो बिहार का कोटरे है ...
आपको भी धनबाद, गोला, पेटरवार, माराफारी, हूरा-हुरी दे रहे हैं..:)
आप आईये तो सही..!
उसना चावल के स्वाद से सना पोस्ट अच्छा लगा।
ReplyDelete:)
ReplyDeleteअच्छा है, कितने दिनों बाद तस्वीर में ही सही, ढेंकी देखने को तो मिली।
आज तो बहुत आभार कहना बनता है (मेरे वाला specifically पहली तस्वीर के लिए ही है :))।
हाँ अगर कोई कहे कि.....
ReplyDeleteआपने खुद ही कहा कि ’जरा ऊपर देखियेगा’ तो हम ठहरे आज्ञाकारी, ऊपर देखा और तस्वीर अच्छी लगी सो तारीफ़ कर दिये। अब शिकवा शिकायत पर वजह पूछी जाये तो ठीक है, तारीफ़ करने पर भी खुलासा? इसी तस्वीर की तारीफ़ किये हैं जी, ’मोटा चावल पतली कमर’ वाली पोस्ट पर है जो:)
मोटा चावल ...देखे तो अमीर घराने के लोग अपने नौकरों को यही खाने को दिया करते थे , खुद तो बासमती खाते थे ...
ReplyDeleteबेचारे मजदूरों के एक-एक पसली दिखने का राज समझ आ गया ....
किसी का फैशन , किसी की मजबूरी ...
भरी दुपहरी में कहीं दूर ढेंकी की आवाज़ कानों में गूँज रही है
सुन्दर पोस्ट, महीन तस्वीर।
ReplyDeleteअदा जी, आपका भी जवाब नहीं, आज इधर हम ढेंकी याद किये और आप फोटो भी लगा दिये.
ReplyDeleteयह मानव चालित प्राचीन यंत्र वर्तमान में विद्युत चालित धनकुट्टी में बदल गया है..............
bahut hi sunder tasvire hai post par
ReplyDeletemaza aa gaya padhkar vaise kuchh log to kahte hain ki ve hawa pani si hi mote ho jate hain fir unke liye kya batayengi aap.ha!ha!ha!
ReplyDeleteमां को दिखाने के चावल और और खाने के और :)
ReplyDeleteढेकी देखकर ही मैं रुक गयी थी, असल में एक बार जसपुर जाना हुआ वहाँ इसे देखा था और अपने एक आलेख में इसे सचित्र दिया भी था। एक हमारी मित्र हैं, विशाखापट्टनम में पतिदेव की पोस्टिंग थी। मंहगे भाव का चावल मंगाती थी और वो ही चावल नौकरों को भी देती थी। एक दिन अपनी बड़ाई सुनने की गरज से पूछा कि चावल अच्छा है ना? नौकर ने बड़े दुखी होकर कहा कि ठीक ही है, लेकिन उसना चावल होता तो पेट भरता। उन्होंने फटाक 10 रूपए दिए और कहा कि जा पांच किलो ले आ।
ReplyDeletebara nimman chitaar lagayen hain....dheki ke......
ReplyDeletelagle haath 'ukhair-samath' bhi daal detin t'.....
gajabbe lagta.........
pranam.
koi saboot nahin chhodati aap...
ReplyDeleteachchhaa hi karti hain...
haaN nahiN to........................
:)