Monday, May 9, 2011

तू मेरे ज़हन-ओ-दिल पर, कुछ इस तरहाँ तारी है...


तू मेरे ज़हन-ओ-दिल पर, 
कुछ इस तरहाँ तारी है,
ख़ुश्बू लगाऊं कोई, 
लगती वो तुम्हारी है,
दुश्वार हो गया है,
रहना भी अब शहर में,
इंसान यहाँ देखो,
दरिंदों पे भारी है,
ग़र हम अब मिले तो,
रुसवा ये इश्क होगा, 
अगले जन्म में तुमसे, 
मिलने की तैयारी है...  

13 comments:

  1. दुश्वार हो गया है,
    रहना भी अब शहर में,
    इंसान यहाँ देखो,
    दरिंदों पे भारी है,

    बहुत खूब ... अच्छी पेशकश

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  2. तू मेरे ज़हन-ओ-दिल पर,
    कुछ इस तरहां तारी है,
    ख़ुश्बू लगाऊं कोई,
    लगती वो तुम्हारी है,
    वाह बहुत ही खूबसूरत भाव हैं\ शुभकामनायें।

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  3. इससे मिलता प्रकाश अर्श का एक शेर याद आ गया
    छाया हुया चेहरा तेरा कुछ इस तरह से जहन मे
    खीँचूँ लकीरें जैसे भी बन जाती है तस्वीर सी
    शुभकामनायें

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  4. इस पर प्रकाश अर्श जी का एक शेर याद आ गया
    छाया हुया चेहरा तेरा कुछ इस तरह से जहन मे
    खीँचूँ लकीरें जैसी भी बन जाती है तस्वीर सी
    शुभकामनायें।

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  5. इंसान यहाँ देखो,
    दरिंदों पे भारी है,


    सच कहा आपने, आज की अराजकता को देखते हुए...:(

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  6. Aapkee rachna ne hamesha kee tarah nishabd kar diya!
    http://simtelamhen.blogspot.com/
    Is blog pe maine aap beetee likhee hai...aapkee salah kee aasha kartee hun...

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  7. इंसान यहाँ देखो,
    दरिंदों पे भारी है,
    बहुत खूब,आपको अनेकोनेक बधाई।

    मार्कण्ड दवे।
    nttp://mktvfilms.blogspot.com

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  8. इंसान यहाँ देखो दरिंदों पर भारी है ...
    मगर फिर भी कोई तो है , जिससे मिलने का ऐसा वादा लिया है !

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  9. बहुत खूब ... लाजवाब नज़्म है ...

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  10. तू मेरे ज़हन-ओ-दिल पर,
    कुछ इस तरहाँ तारी है,
    ख़ुश्बू लगाऊं कोई,
    लगती वो तुम्हारी है,


    ग़र हम अब मिले तो,
    रुसवा ये इश्क होगा,
    अगले जन्म में तुमसे,
    मिलने की तैयारी है...

    बहुत बढ़िया है, अदा जी.

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  11. बहुत अच्छी नज़्म....
    सादर...

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  12. सच में बहुत अच्छा लिखती हैं आप। खुशनसीब है वो ’जो इस तरहाँ तारी है’

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