रिश्वत देकर पेंशन लाते बुज़ुर्ग,
दहेज़ देकर बेटी की शादी
निपटा कर आता प्रौढ़,
और
इंटरव्यू देकर आता
बेरोज़गार नौजवान,
व्यवस्था पर टिप्पणी
करते हैं...
बुज़ुर्ग ने कहा,
कितने बुरे दिन आ गए हैं,
रिश्वत लेने वाले कितने
बेशर्म हो गए हैं,
प्रौढ़ ने अपनी बात रखी,
रिश्वत लेने वाले
दूसरों से ईमानदार हैं,
रिश्वत लेते तो हैं,
मगर कम से कम
काम तो करते हैं,
काम तो करते हैं,
नौजवान की सोच थी,
बहुत ग़लत बात है,
बहुत ही ग़लत काम है,
ग़लत रास्ता है,
जिसमें चलकर
सही लोग
तंग हो जाते हैं....
Yatha Raja Tatha Prajaa.
ReplyDeleteहै तो बुरी चीज ही रिश्वत।
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा है आपने.
ReplyDeleteउम्र के साथ सोच में क्या अंतर आता है बहुत ही अच्छे ढंग से प्रस्तुत किया है आपने.
अरे रचना का नाम तो टिप्पणी है.फिर से पढ़ना होगा.
ReplyDeleteबहुत खूब.
बुरा और सबसे बुरा ...कई बार अंतर करना मुश्किल हो जाता है !
ReplyDeleteसही लोग बचे कितने है? उनकी संख्या नगण्य के बराबर है | रचना के माध्यम से अच्छे विषय को चुना वाह क्या बात है आपने अंदाज में सच्चाई वयां कर दी.......
ReplyDeleteहां ये दृष्टिकोण भी है इस मुद्दे पर , आपने सही कहा है , लेकिन बिना रिश्वत के काम करने और मन से करने का अपना ही आनंद है जो विरलों को ही मिलता है ...बेशक दुनिया उन्हें कुछ भी कहे समझे । विचारोत्तेजक पंक्तियां अदा जी । बहुत दिनों बाद आपको पढा , अच्छा लगा । शुभकामनाएं
ReplyDeleteगज़ब लिखा है।
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति ...अनुभवों के साथ बदल जाती है सोच
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखा है ।
ReplyDeleteटिप्पणियाँ ही करते रह जाते है हम बस बाद में!और ये टिप्पणियाँ भी बस ऐसे बस तक ही सीमित हो कर रह जाती है,जो गलत है उसे ख़त्म करने करने पर कोई चर्चा नहीं कोई प्रयास नहीं..
ReplyDeleteआपने बहुत ही बढ़िया लिखा है...
एक बात में ही सभी उम्र वर्ग को दर्शा दिया..
कुँवर जी,
अर्थात व्यवस्था वही रहती हैं , बस आयु के अनुसार समझ बदलती रहती है । जिस दिन हर आयु के लोग गलत को गलत कहेंगे , परिवर्तन उसी दिन सम्भव है ।
ReplyDeletebahut khoob...
ReplyDeleteसही है !
ReplyDeleteहालात और परिस्थितियाँ हमारे नजरिये को प्रभावित करते हैं। एक ही चीज को देखने का अलग अलग मनुष्य का अलग नजरिया होता है, हो सकता है। पीने वालों से पूछा जाये तो प्राय: यह जवाब मिलता है कि मेरे पिताजी पीते थे उन्हें देखकर मैं भी पीने लगा, मेरा एक दोस्त नहीं पीता था तो उसने वजह यही बताई कि मेरे पिताजी इतनी पीते थे कि मैंने कभी न पीने का फ़ैसला कर लिया।
ReplyDeleteजितने शब्दों में आपने सब समझा दिया, उससे ज्यादा शब्द खर्च करके भी मैं शायद स्पष्ट नहीं कर पाया। तुस्सी ग्रेट हो जी, त्वाडा नजरिया ग्रेट है:)
बहुत खूब लिखा है आपने.
ReplyDeleteSochne ko vivash karti rachna.
ReplyDelete............
ब्लॉग समीक्षा की 13वीं कड़ी।
भारत का गौरवशाली अंतरिक्ष कार्यक्रम!
.... और हम यहां बिना रुके टिप्पणी करते हैं :)
ReplyDeletetippani karne kaa kyaa hai madam aDa..
ReplyDeletekoi kuchh bhi kar saktaa hai.....