Thursday, March 24, 2011

सात दिनों तक दूर हूँ...

सात दिनों तक दूर हूँ...
आपलोगों का प्रेम भरा अनुरोध मैं भला कैसे टाल सकती हूँ..!!
आपके प्रोत्साहन भरे शब्दों के लिए हृदय से आभारी हूँ...
धन्यवाद...
...अदा'
 
दीवाना हुआ बादल...       

   
चंदा ओ चंदा..       

                       
   
 
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में..

Wednesday, March 23, 2011

पहचान जायेंगे लोग, इक शक्ल इख्तियार है .....


बोल मेरी ज़िन्दगी, क्यूँ इतनी तू बेज़ार है 
चल रही साँस पर, लग रही तलवार है

बिक रहे हैं लोग यहाँ, सुबहो-शाम हर तरफ
ये जन्नते-आदम नहीं, बस चोर-बाज़ार है 

है खड़ा हुआ कोई, बुलंदियों की शाख़ पर
और कोई पड़ा हुआ, ज्यूँ गिरी हुई दीवार है 
 
मुनादी हो गयी यहाँ, मेरी नीलामी की सुनो
कोई उसे खबर करो, वो मेरा ख़रीददार है 

ख़याल सँवरने लगे, अब रूह की ज़मीन पर 
पहचान जायेंगे लोग, इक शक्ल इख्तियार है



Monday, March 21, 2011

चेहरे ............ आपके हसीन रुख़ पे...आवाज़ 'अदा' की


ताल्लुक़ से खिलवाड़ न कर, रिश्ते बिगड़ जाते हैं
आँख में होकर भी चेहरे, दिल से उतर जाते हैं  

कुछ चेहरों को सँवरने की, ज़रुरत कहाँ पड़ती है 
रुख-ए-रौशन की झलक पाकर, आईने सँवर जाते हैं

इस ज़मीं से फ़लक तक की, दूरी नापने वालो 
तेरे वज़ूद से तेरे फ़ासले, तुझको क्या बताते हैं ? 

मैं तेज़ धूप में रहना चाहूँ, संग मेरे मेरा साया है
छाँह में मेरे खुद के साए, मुझसे मुँह छुपाते हैं 

आँधी के सीने में 'अदा', महबूब की चाहत होती है 
रेत पे उसकी साँसों से, कई अक्स उभर कर आते हैं

आपके हसीन रुख़ पे...आवाज़ 'अदा' की

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Friday, March 18, 2011

श्री समीर लाल 'समीर' और श्री ललित शर्मा जी की होली प्रस्तुति....'अदा' की आवाज़...


होली की असंख्य बधाईयाँ...!!

चढ़ गया रे फागुनी बुखार...
गीतकार : श्री समीर लाल 'समीर'
संगीतकार : श्री संतोष शैल
गायिका: स्वप्न मञ्जूषा 'अदा'



गीत : सजना सन्मुख सज के सजनी...
गीतकार: श्री ललित शर्मा
संगीतकार : श्री संतोष शैल 
गायिका:  स्वप्न मञ्जूषा 'अदा'


आप सभी का हृदय से आभार...
ये दोनों गीत पूरे एक साल पुराने हैं...पिछले वर्ष मैंने इन्हें समीर जी और ललित जी स्नेहासिक्त अनुरोध पर गाया था...
इस वर्ष तो यूँ भी होली हमारे घर में नहीं मनी...मेरा घर अभी भी मेरे बाबा के निधन पर शोक-संतप्त है...
आपलोगों ने इन गीतों को पसंद करके मेरा, गीतकार श्री समीर जी और श्री ललित जी और संगीतकार श्री संतोष शैल जी का मान बढ़ाया है...
पुनः आपका धन्यवाद..
'अदा'

Thursday, March 17, 2011

धर्मराज....



यहाँ....!
कुछ उथल-पुथल है,
कुछ ऊबड़-खाबड़,
कुछ झटके हैं,
और कुछ हिचकोले,
कभी शान्ति,
तो कभी अपनापन,
कभी प्रेम,
और 
कभी रीता जीवन,
समझौते की
चाल चलाते,
असंख्य धर्मराज,
हर दिन नया शहर
बसाते हैं,
पुराने बासिंदों की
आत्मीयता
को जी भर कर 
भुनाते हैं,    
निज स्वार्थ की
रक्षा हेतू, 
किसी को दाँव
पर लगाते हैं, 
ये अलग बात
इस मर्त्यलोक में, 
उनके साथी, 
बस कुत्ते ही 
रह जाते हैं... 

जबसे तेरे नैना मेरे नैनों से लागे रे...आवाज़ 'अदा' की...


Monday, March 14, 2011

ऐसा हो नहीं सकता.....


मैं ठोकर खाके गिर जाऊँ, ऐसा हो नहीं सकता
गिर कर उठ नहीं पाऊँ, ऐसा हो नहीं सकता

तुम हँसते हो परे होकर, किनारे पर खड़े होकर
मैं रोकर हँस नहीं पाऊँ, ऐसा हो नहीं सकता

अभी जीना हुआ मुश्किल, घायल है बड़ा ये दिल
मैं टूटूँ और बिखर जाऊँ, ऐसा हो नहीं सकता

खिंजां का ये मंज़र है, कभी बादल घना-घन है
मैं छीटों में ही घुल जाऊँ, ऐसा हो नहीं सकता

कश्ती की बात रहने दे , समन्दर भी डुबो दे तू
किनारे तैर न पाऊँ, ऐसा हो नहीं सकता

गिरी है गाज हमपर अब, कभी बिजली डराती है
मैं साए से लिपट जाऊँ , ऐसा हो नहीं सकता

सभी सपने कुम्हलाये, तमन्ना रूठे बैठी है
मैं घुटनों पर ही आ जाऊँ, ऐसा हो नहीं सकता

तू मेरा हैं मैं जानू, ये क़ायनात तेरी है
मैं तेरा हो नहीं पाऊँ, ऐसा हो नहीं सकता


Saturday, March 12, 2011

किसने कहा हुज़ूर के तेवर बदल गए...आवाज़ 'अदा' की...


देखा था किसी फिल्म में कि , जब आप किसी चीज़ को दिल से चाहते हैं,  तो सारी क़ायनात जुट जाती है, आपको उससे मिलाने के लिए...मेरा भी एक ड्रीम प्रोजेक्ट है...चाहती हूँ कुछ ऐसा काम करूँ जिसे करने से लगे कि कुछ सार्थक काम किया है... फिर बच्चों के लिए काम करने से बेहतर और क्या हो सकता है ....
आज आपलोगों से कुछ बातें साझा करने आई हूँ...कुछ अपनों के साथ इस बात को share भी किया है...लेकिन आज आपलोगों से भी इस बात को शेयर  करना चाहा..आख़िर मैं इतनी ज्यादा ग़ैरहाज़िर क्यूँ हूँ...!

कुछ समय पहले आपलोगों से जिक्र किया था कि मैं १६ फिल्में बना रही हूँ...दरअसल वो फिल्में sample फिल्में थीं....जिन्हें हमें अपने प्रोपोजल के साथ जमा करना था...यह एक Technical Requirement  थी, जिन्हें evaluate करके २२२७ फिल्में बनाने का contract अवार्ड मिलना  था....पहले तो मैं प्रोपोजल राईटिंग में ही व्यस्त रही....यह काम भी अपने आप में एक असंभव सा काम था....७५५ पन्ने का प्रोपोसल...लेकिन कर ही लिया...हमने बड़ी मेहनत और लगन से ये काम किया था...और रिकॉर्ड टाइम में १६ फिल्में, मूक-बधिर भाषा के साथ बनायी,  जिन्हें प्रतियोगिता के लिए जमा किया, इस बहुत ही टफ कॉम्पिटिशन में, जिसमें ६ देशों की ९ Companies ने हिस्सा लिया था, हमने भी हिस्सा लिया, ये कंपनियां निम्नलिखित देशों से थीं :


१. भारत- ३ कम्पनियाँ 
२. अमेरिका - २ कम्पनियाँ
३. दुबई - १ कंपनी
४. साउथ अफ्रीका- १ कंपनी
५. ग्रेट ब्रिटेन- १ कंपनी
६. कनाडा- १ कंपनी


आपलोगों की शुभकामनायें काम आईं हैं....हमारी बहुत छोटी सी कंपनी शैल्स कम्युनिकेशन ने यह प्रतियोगिता जीत ली....और यह contract हमें मिल गया है...अब मैं आने वाले लगभग एक साल तक बहुत बहुत व्यस्त रहूँगी ...कम नज़र आऊँगी...लेकिन नज़र आऊँगी ज़रूर ...अच्छी बात ये है कि एक सार्थक काम करने जा रही हूँ...अफ्रीका के बच्चों के लिए Syllabus based Educational Films बनाना...इससे पहले भी बना चुकी हूँ ४८१ फिल्में...और बहुत क़ामयाब हो चुकी हूँ ....


फिर एक बार ये सफ़र शुरू हो गया है...यकीन कीजिये बहुत ही रोमांचकारी अनुभव होता है, जब किसी असंभव से लगने वाले काम को करना पड़ता है...मेरी कोशिश रहेगी आपलोगों को सारी ख़बर देते रहने की...


बस जी काम शुरू हो चुका है, इस पूरे प्रोजेक्ट की प्रोजेक्ट मैनेजर मैं ..यानी 'स्वप्न मंजूषा शैल 'अदा'' हूँ ...लगभग ९० लोग मेरे साथ काम कर रहे हैं, २५ स्क्रिप्ट राइटर हैं, जो एक दिन में १६ स्क्रिप्ट लिख रहे हैं ....
६ स्टूडियो में सेट लगाए जा चुके हैं ...एक दिन में १६ फिल्म्स रिकॉर्ड होतीं हैं और उतनी ही फिल्म्स एडिट हो रहीं हैं ...मेरा काम ३ शिफ्ट में चल रहा है ...यानी २४ घंटे ...कम से कम १० ग्राफिक डिजाइनर्स और animatars हैं...९ प्रोडूसर, ९ डाइरेक्टर, ९ लाइन प्रोडूसर, १८ कैमरा मैन्स, Presenters, एक्टर्स, production assistant, teleprompter operator,  वैगेरह वैगरह .... सभी ६ Studios ३-३  High Definition कैमरे से लैस हो गए हैं,  मुझे १० महीने में यह प्रोजेक्ट पूरा करना है ...अगर मैंने कर लिया तो यह अपने आप में ही एक रिकॉर्ड होगा...
आप लोगों ने हमेशा साथ दिया....बहुत सम्मान दिया...बहुत प्यार दिया ...और मैं इसके लिए हृदय से आभारी हूँ...आगे भी इस काम के लिए आपकी प्रार्थनाओं की आवश्यकता है...उम्मीद है आपकी प्रार्थनाएं मेरे साथ रहेंगी...
आपकी 'अदा' 


किसने कहा हुज़ूर के तेवर बदल गए...आवाज़ 'अदा' की...



Thursday, March 10, 2011

आज उर्मिला बोलेगी .....



सावधान ! हे रघुवंश
वो शब्द एक न तोलेगी
मूक बधिर नहीं,कुलवधू है
आज उर्मिला बोलेगी |

कैकेयी ने दो वरदान लिए
श्री दशरथ ने फिर प्राण दिए
रघुबर आज्ञा शिरोधार्य कर
वन की ओर प्रस्थान किये
भ्रातृप्रेम की प्रचंड ऊष्मा
फिर लखन ह्रदय में डोल गई
मूक बधिर नहीं, कुलवधू है
आज उर्मिला बोलेगी |

रघुकुल की यही रीत बनाई
भार्या से न कभी वचन निभाई
पितृभक्ति है सर्वोपरि
फिर पूजते प्रजा और भाई
पत्नी का जीवन क्या होगा
ये सोच कभी न गुजरेगी
मूक बधिर नहीं, कुलवधू है
आज उर्मिला बोलेगी |

चौदह बरस तक बाट जोहाया
एक पत्र भी नहीं पठाया
नवयौवन की दहलीज़ फांद कर
अधेड़ावस्था में जीवन आया
इतनी रातें ? कितने आँसू ?
की कीमत क्या अयोध्या देगी ?
मूक बधिर नहीं, कुलवधू है
आज उर्मिला बोलेगी |

हाथ जोड़ कर विनती करूँ मैं
सातों जनम मुझे ही अपनाना
परन्तु अगले जनम में लक्ष्मण
राम के भाई नहीं बन जाना
एक जनम जो पीड़ा झेली
अगले जनम न झेलेगी
मूक बधिर नहीं, कुलवधू है
आज उर्मिला बोलेगी |


गीत तो आप सुन चुके हैं लेकिन फिर सुन लीजिये...
चंदा ओ चंदा....
आवाज़ 'अदा'

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Sunday, March 6, 2011

रहिमन जिह्वा बावरी, कहिगै सरग पाताल. आपु तो कही भीतर रही जूती सहत कपाल.



कहते हैं....
कमान से निकला हुआ तीर और जुबां से निकली हुई बात कभी वापिस नहीं लौटती  ....
बोल कर, हम अपनी बात दूसरों तक पहुंचाते हैं, यह अभिव्यक्ति का सबसे पहला और सबसे सशक्त माध्यम है... भाषा कोई भी हो, और कहीं भी बोली जाती हो, वो हमें एक दूसरे से जोड़ती है, एक दूसरे के विचार जानकर, एक दूसरे के प्रति प्रेम और आत्मीयता बढ़ती है, बोलचाल को कभी भी लापरवाही या हल्केपन से नहीं लेना चाहिए, हमेशा सोच समझ कर ही बातचीत करनी चाहिए...

कभी-कभार हलके-फुल्के वातावरण में कुछ गंभीर बातें की जा सकती हैं, लेकिन ऐसे अवसरों पर कोई ऐसी बात न की जाए, कि अच्छा-ख़ासा वातावरण विषाक्त हो जाए...

भाषा अमृत भी है और विष भी, अब ये आप पर निर्भर है, कि आप इसे किस तरीके से उपयोग में लाना चाहते हैं..रहीम कवि ने बहुत ही अच्छी बात कही है :

रहिमन जिह्वा बावरी, कहिगै सरग पाताल. 
आपु तो कही भीतर रही जूती सहत कपाल. 

यही जिह्वा हमें प्रतिष्ठा भी दिलवाती और जूते भी खिलवाती है....बहुत ज्यादा बोलना भी जोख़िम से भरा होता है..क्योंकि बोलने वाला व्यक्ति अपनी बातों पर नियंत्रण नहीं रख पाता..लाख नहीं चाहते हुए भी, कभी न कभी कोई ऐसी बात, निकल ही जाती है जो उसके अपयश का कारण बन सकती है...

मीठा बोलना अच्छी बात है, लेकिन बहुत ज्यादा मीठा बोलना भी अच्छा नहीं माना जाता है...अर्थात बहुत ज्यादा मीठा भी विष का काम कर जाता है...

दरअसल, हमें बोल चाल में सौहार्द, प्रेम और मैत्री जैसे भाव प्रकट करने चाहिए...न कि जलन, ईर्ष्या, द्वेष, शत्रुता के भाव...

बोल-चाल में नम्रता और शालीनता की बहुत आवश्यकता होती है , वर्ना आपके मुंह से उच्चारित अच्छे शब्द भी सामने वाले को अच्छे नहीं लगेंगे...

ऊंची आवाज़ में बोलना, तेज़ बोलना या बात-बात में क्रोधित होना, कोई अच्छी बात नहीं है..इससे अपनी ही शक्ति का अपव्यय होता है साथ ही आपके स्वास्थ्य पर भी इसका विपरीत असर पड़ता है...
क्रोध हर व्यक्ति को आता है, परन्तु इसका इस्तेमाल यदा-कदा, ज़रुरत पड़ने पर ही करना चाहिए..उपयुक्त अवसर पर इसका उपयोग कारगर होता है...परन्तु क्रोध के समय, बोलने में संयम अवश्य बरतना चाहिए...यह बहुत ही ज़रूरी बात है.. सच पूछिए तो किसी भी व्यक्ति के लिए, यह अवसर परीक्षा की घड़ी होती है...ऊंची आवाज़ को रोक पाना तो क्रोध के समय संभव नहीं होता, लेकिन शब्दों और भाषा पर नियंत्रण रखना बहुत हद तक संभव होता है....कुछ लोगों को जब क्रोध आता है, तो वो बौखला जाते हैं और अपशब्द बोलने लगते हैं..परन्तु कुछ ऐसे भी हैं जो लाख क्रोधित होने बावज़ूद  भी,  मुंह से गलत शब्द का उच्चारण नहीं करते...जहाँ तक हो सके, जब क्रोध आये तो कम से कम बोलना चाहिए...और जो भी बोला जाए वो नपे तुले शब्दों में हो ...

हम जो भी बोलते हैं, तब हमारी भाषा के जो शब्द मुंह से निकलते हैं उनका बड़ा प्रभाव होता है...उन शब्दों में बहुत शक्ति होती है....यह शक्ति बिगड़ी बात बना सकती है या फिर वो विस्फोट कर सकती है....कई बार हमने देखा है..बिना बात के बतंगड़ होते हुए..और छोटी सी बात को विकराल रूप धरते हुए...और तब बात इतनी बढ़ जाती है कि फिर सम्हल ही नहीं पाती...

विवेकी मनुष्य हमेशा सोच-समझ कर बात करता है..वो हर बात तौल कर कहता है...
जब भी आप बात करें समय और परिस्थिति का भी अवश्य ध्यान रखें ..अगर इन बातों का ध्यान हम नहीं रखते तो...किसी का मन विदीर्ण हो सकता है, किसी के मन में में कडुआहट भी आ सकती है....आप परिहास के पात्र बन सकते हैं या फिर लोग आपको मूर्ख समझ सकते हैं...

आनंद या उल्लास के माहौल में जली-भुनी बातें करना या फिर शोक के समय हंसी-ठठा करना...सभा या गोष्ठियों में सम्बंधित विषय पर बात नहीं करना..व्यक्ति विशेष को अल्पज्ञ या मूर्ख दर्शाता है...

कुछ लोग इतना बोलते हैं, कि बोलने वाला बोलता चला जाता है और सुननेवाले के सर में दर्द हो जाता है.. साथ ही जीवन की शान्ति भंग होती नज़र आती है....ऐसे लोगों को यह अवश्य बता देना चाहिए कि उनका अनर्गल प्रलाप व्यर्थ में प्रदूषण फैला रहा है...ऐसे लोगों को बोलने की तहज़ीब सिखानी चाहिए...ताकि आपके साथ-साथ उनकी भी प्रतिष्ठा बची रहे...
याद रखिये...
ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय
औरन को शीतल करे आपहूँ शीतल होय

ये है रेशमी जुल्फों का अँधेरा....आवाज़ 'अदा' की...


Friday, March 4, 2011

ऐसा क्यूँ नहीं कर पायी मैं ?


क्या जाने..!
आँसूओं का मौन 
कुछ कह भी पाता है
या
नहीं,
खिड़की से सिर निकाल कर
देखा तो था एक बार
अपने शहर को,
उस आँगन को,
उन गलियों को,
जहाँ मैं खेली थी,
धूल में
ग़ुम हो गए थे 
दो बूँद आँसू,
मन ही में
अलविदा कह कर,
खींच ली थी
गर्दन मैंने 
खिड़की के अन्दर,
पर पलकों पर
इक साया उभर ही आया था,
जीर्ण सी चारपाई 
पर
पड़ी हुई काया,
मानो मुझे आँखों से
ही पुकार रही थी,
मन में करुणा और प्रेम के
कितने तूफ़ान आये थे,
जी तो किया था
रुक जाऊँ,
पहुँच जाऊँ
अपनी माँ के पास,
लेकिन चाह कर भी
ऐसा क्यूँ नहीं कर पायी मैं ? 
सुहानी चांदनी रातें, हमें सोने नहीं देतीं....  आवाज़ 'अदा' की.. 

Thursday, March 3, 2011

कम से कम मुझसे ज़रा सी तुम नफ़रत तो कर लो....


सचमुच   !!
मेरे मन के आँगन में
उसका इक ख़त आया है,
जाने कैसा है वो
सच है या साया है,
लिखा है ..
तुम्हारी मुस्कुराहट
ग़ज़ल बन कर 
सामने फैले कागजों में
पसर जाती है,
तुम्हारा अंदाज़
मेरे जीने का सबब बन जाता है,
मैं तुमसे कुछ नहीं मांगता,
बस मोहब्बत करने की
इजाज़त  दे दो,
ज़िन्दगी की दीवारों
से टकरा कर
मैं बार-बार बिखर जाता हूँ,
दरक रहे हैं
हकीक़त के महल
जाने कैसी दलदल में,
सारी शोखी उदास शामों
में ढल कर
अंधेरों में डूब चुकी,
मैं उजालों से अपने लिए
लड़ता हूँ,
बस इक ज़रा तुम
मेरा साथ दे दो ना,   
मैं ख़ुशी से जी जाऊँगा
अपनी अधूरी सी ये ज़िन्दगी,
कम से कम मुझसे
ज़रा सी तुम
नफ़रत तो कर लो....
   
बेक़रार दिल तू गाये जा....आवाज़ 'अदा' की ...




Tuesday, March 1, 2011

'पुरुषोत्तम' ...

एक पुरानी कविता...नए और पुराने पाठकों के लिए :):):)

त्याग दिया वैदेही को
और जंगल में भिजवाया
एक अधम धोबी के कही पर
सीता को वन वन भटकाया
उस दुःख की क्या सीमा होगी
जो जानकी ने पाया
कितनी जल्दी भूल गए तुम
उसने साथ निभाया

उसने साथ निभाया
जब तुम कैकई को खटक रहे थे
दर दर ठोकर खाकर,
वन वन भटक रहे थे

अरे, कौन रोकता उसको
वह रह सकती थी राज-भवन में
इन्कार कर दिया था उसने
तभी तो थी वह अशोक-वन में
कैसे पुरुषोत्तम हो तुम !
क्या साथ निभाया तुमने
जब निभाने की बारी आई
तभी मुँह छुपाया तुमने ?
छोड़ना ही था सीता को
तो खुद छोड़ कर आते
अपने मन की उलझन
एक बार तो उसे बताते !
तुम क्या जानो कितना विशाल
हृदय है स्त्री जाति का
समझ जाती उलझन सीता
अपने प्राणप्रिय पति का

चरणों से ही सही, तुमने
अहल्या का स्पर्श किया था
पर-स्त्री थी अहल्या
क्या यह अन्याय नहीं था ?
तुम स्पर्श करो तो वह 'उद्धार' कहलाता है
कोई और स्पर्श करे तो,
'स्पर्शित' !
अग्नि-परीक्षा पाता है
छल से सीता को छोड़कर पुरुष बने इतराते हो
भगवान् जाने कैसे तुम 'पुरुषोत्तम' कहलाते हो
एक ही प्रार्थना है प्रभु
इस कलियुग में मत आना
गली गली में रावण हैं
मुश्किल है सीता को बचाना
वन उपवन भी नहीं मिलेंगे
कहाँ छोड़ कर आओगे !
क्योंकि, तुम तो बस,
अहल्याओं का उद्धार करोगे
और सीताओं को पाषाण बनाओगे...!

दिल चीज़ क्या है आप मेरी जान लीजिये....आवाज़ 'अदा' की..