मैं भी कल रात उन दीवानों में थी
और मेरी नज़रें गुजरे ज़मानों में थी
ये दिल घबराया ऊँचे मकाँ में बड़ा
फिर सोयी मैं कच्चे मकानों में थी
यूँ हीं दिखती हूँ मैं भी शमा की तरहाँ
पर गिनती मेरी परवानों में थी
उसकी बातों पे मैंने यकीं कर लिया
कितनी सच्चाई उसके बयानों में थी
मेरे अपनों ने कब का किनारा किया
मुझसे ज़्यादा कशिश बेगानों में थी
क्या ढूँढे 'अदा' वो तो सब बिक गया
तेरे सपनों की डब्बी दुकानों में थी
ये समा, समा है ये प्यार का ...आवाज़ 'अदा' की ..
ये समा, समा है ये प्यार का ...आवाज़ 'अदा' की ..
बहुत कुछ अभी भी बाकी है जिन्हें सहेजे रहना है वर्ना जमाने की नज़र तो वाकई बहुत बुरी है :-)
ReplyDeleteसपनों की डब्बी, बहुत प्यारी लगी..
ReplyDeleteये दिल घबराया ऊँचे मकाँ में बड़ा
ReplyDeleteफिर सोयी मैं कच्चे मकानों में थी
खूब कही.....
शमा की तरह दिखना पर परवानों में गिना जाना - क्या बात कही है.
ReplyDeletebahut khub gajal
ReplyDeleteआखिर कब तक अपनी बेटी को निर्भया और बेटे को सरबजीत बनाना होगा ?
सपने एक बड़े बक्से में भरे रखे हैं तुम्हारे लिए !!
ReplyDeleteयूँ ही नहीं ये समां प्यार का हुआ करता है.....................
:-)
अनु
बहुत ही सुन्दर गीत का निभाना साथ ही सुन्दर लेखन भावों संग ****
ReplyDeleteकभी कभी छुट जाता है पढ़ना अखरता है ...
सुंदर भावों से सुसज्जित रचना !!
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