इक ज़ुनून,
कुछ यादें,
थोड़ा प्यार,
थोड़ा प्यार,
छोड़ जाऊँगी।
इन हवाओं में मैं
इंतज़ार,
इंतज़ार,
छोड़ जाऊँगी।
ले जाऊँगी साथ,
कुछ महकते से रिश्ते,
मेरे नग़मों की बहार
मेरे नग़मों की बहार
छोड़ जाऊँगी।
कहीं तो होंगे,
मेरे भी कुछ ग़मगुसार,
जलाकर इक दीया
जलाकर इक दीया
प्रेम का यहीं कहीं,
ये मज़ार,
छोड़ जाऊँगी।
कहाँ-कहाँ बुझाओगे,
मेरी सदाओं की मशाल,
मैं ज़िन्दगी जलाकर,
बार-बार,
छोड़ जाऊँगी।
मैं लफ्ज़-लफ्ज़ यक़ीं हूँ,
तुम भी यक़ीन कर लो,
मैं हर्फ़-हर्फ़
एतबार,
एतबार,
छोड़ जाऊँगी....!
एक गीत..नैनों में बदरा छाये...और आवाज़ वही...'अदा' की...
कहाँ-कहाँ बुझाओगे,
ReplyDeleteमेरी सदाओं की मशाल,
मैं ज़िन्दगी जलाकर,
बार-बार,--
आपकी सदायों की मसाल जलती रहे \
डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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शानदार | बहुत खूब लिखा | बधाई
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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ऊर्जा का प्रवाह अनवरत बहे..
ReplyDeleteआनंददायक सचमुच
ReplyDeleteयश काया ऐसे ही अमर बन जाती हैं !
ReplyDeleteसुंदर रचना मन को छूती हुई
ReplyDeleteबधाई
गजब का अहसास
उत्कृष्ट प्रस्तुति
विचार कीं अपेक्षा
आग्रह है मेरे ब्लॉग का अनुसरण करें
jyoti-khare.blogspot.in
कहाँ खड़ा है आज का मजदूर------?
आपकी यह प्रस्तुति कल के चर्चा मंच पर है
ReplyDeleteकृपया पधारें
कहाँ-कहाँ बुझाओगे,
ReplyDeleteमेरी सदाओं की मशाल,
मैं ज़िन्दगी जलाकर,
बार-बार,
छोड़ जाऊँगी।...
सिम्पली सुपर्ब और गाना तो हमेशा की तरह महा सुपर्ब
रचना का हर शब्द हृदयातल को छू रहा है।
ReplyDeleteकहाँ कहाँ बुझाओगे मेरी सदाओं की मशाल...
बहुत ही टचिंग अभिव्यक्ति आदरेया।
सादर बधाई।
ऐसे शब्द हम पढने वालों को भी ऊर्जा देते हैं , हौसला बढ़ाते हैं
ReplyDeleteगीत तो कमाल है
हर्फ - हर्फ एतबार और सांस - सांस ज़िन्दगी भी तो .......
ReplyDeleteबहुत बढ़िया।
ReplyDeleteसुन्दर एहसास के साथ खुबसूरत गायन बधाई शुभ संध्या
ReplyDeleteनैनों मे कजरा छाए
ReplyDeleteबिजली सी चमके हाए
बेहतरीन नगमा...
और रचना भी उत्कृष्ट...
दीदी..
आप मीठा पान खाया करो
और भी मीठी रचना पढ़ने को मिलेगी :)
सादर
वाह, बहुत खूब
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