हैराँ हूँ घर की दीवार के, उतरे हैं सब रंग, देखना
उड़ता रहा आँधियों में वो, जाने कितना दर-ब-दर
तिनका ही था कमज़ोर सा, उसका मुक़द्दर, देखना
पोशीदा है ज़मीन के, हर ज़र्रे पर दिलकश बहार
उतरो ज़रा आसमान से, आएगी नज़र वो, देखना
सोया किया क़रीब ही, फ़रिश्ता दश्त-ए-दिल का
ख़ुशबू सी उसकी बस गई, महका है शजर, देखना
इश्क़ के दावे उनके, अब तो हो गए आसमाँ-फरसा
इश्क़ के दावे उनके, अब तो हो गए आसमाँ-फरसा
हम भी देखेंगे उनकी अदा, और तुम भी 'अदा', देखना
आगे भी जाने न तू ....आवाज़ 'अदा' की ...
Yashoda ne kaha :
ReplyDeleteदीदी
अभी http://swapnamanjusha.blogspot.in/2013/05/blog-post_5.html हूँ मैं
काव्य मंजूषा से कमेंट बाक्स आज गायब है
गीत....आगे भी आपकी प्यारी आवाज सुनाई देती रहेगी
और दबंगई से
आपकी ये रचना मैं मेरी धरोहर में रख रही हूँ
http://4yashoda.blogspot.in/2013/05/blog-post_5600.html
सादर
यशोदा
Pata nahi kaise Yashoda comment Box gayab ho gaya tha. Khair ab aa gaya hai :)
Delete'मेरी धरोहर' में मेरी इस रचना को शामिल करने के लिए बहुत धन्यवाद यशोदा !
Deleteबहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल की प्रस्तुति,आभार.
ReplyDeleteराजेंद्र जी, धन्यवाद !
Deleteबहुत बढ़िया....खूबसूरत रचना ..
ReplyDeleteआभार !
Deleteएक खूबसूरत अदाभरी रचना!
ReplyDeleteआपका बहुत धन्यवाद डॉक्टर साहेब !
Deleteआवाज़ माशा अल्लाह और ग़ज़ल खुबसूरत भावों संग बधाई
ReplyDeleteधन्यवाद भईया !
Deleteबहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteउड़ता रहा आँधियों में वो, जाने कितना दर-ब-दर
ReplyDeleteतिनका ही था कमज़ोर सा, उसका मुक़द्दर, देखना
बहुत खूब.
वंदना,
Deleteतुम्हारा आना अच्छा लगा।
तुम्हें रचना पसंद आई ये और भी अच्छा लगा।
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति!
ReplyDeleteसाझा करने के लिए आभार...!
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सुखद सलोने सपनों में खोइए..!
ज़िन्दगी का भार प्यार से ढोइए...!!
शुभ रात्रि ....!
धन्यवाद शास्त्री जी !
Deleteये गज़ल पहली बार भी बहुत अच्छी लगी थी, इस बार भी। दूसरी पंक्ति में दो कॉमा वाला प्रयोग बहुत अच्छे से निभाया गया है। इसके अतिरिक्त देखना के एक से ज्यादा मतलब निकलते हैं - देखना, देख ना(मत देख) देख ना(इसरार वाला)। जिसको जो समझ आये वही समझ ले, हाँ नहीं तो!! :)
ReplyDeleteलब्बो लुआब ये कि, गज़ल बहुत अच्छी है, चित्र भी। और गाने की तो क्या कहें, सिस्टम ही ठीक नहीं है अभी, वो तो बहुत अच्छा होता ही है आपकी आवाज में।
वोई तो !
Deleteदेख ना, देख ना :)
आज की ब्लॉग बुलेटिन देश सुलग रहा है... ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद !
Deleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (06-05-2013) के एक ही गुज़ारिश :चर्चा मंच 1236 पर अपनी प्रतिक्रिया के लिए पधारें ,आपका स्वागत है
ReplyDeleteसूचनार्थ
हार्दिक धन्यवाद !
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद पूनम !
Deleteबढ़िया ग़ज़ल...गाना तो हमेशा की तरह बहुत ही खूबसूरती से गाया है
ReplyDeleteछो छ्वीट :)
Deleteबढ़िया गज़ल...वाह
ReplyDeleteभावभीनी ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए बधाई । सस्नेह
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