Tuesday, February 1, 2011

सूनी गली का नाम कहकशां लिखूँ ......और एक गीत...



क्यूँ न मेरे सफ़र की दास्ताँ लिखूँ
सूनी गली का नाम कहकशां लिखूँ

ग़म से सुलगते रहे मेरे शाम-ओ-सहर
ख़ुद को एक जलता हुआ मकाँ लिखूँ

मेरा वजूद ढँक गया तेरे नाम के तले 
कहो! और तेरा नाम मैं कहाँ-कहाँ लिखूँ



15 comments:

  1. ग़म से सुलगते रहे मेरे शाम-ओ-सहर
    ख़ुद को एक जलता हुआ मकाँ लिखूँ
    बहुत सुन्दर ग़ज़ल है अदा जी. और गीत? अब क्या कहूं? अतिसुन्दर.

    ReplyDelete
  2. बहुत खूब । बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति ।

    ReplyDelete
  3. हां हां, जरूर लिखो जी। राह तो बहुत दिलकश दिख रही है तस्वीर में, दास्तान-ए-सफ़र थोड़ा तफ़सील से लिखियेगा:)) कहकशां शायद आकाश-गंगा को कहते हैं..!!
    "मेरा वजूद ढँक गया तेरे नाम के तले
    कहो! और तेरा नाम मैं कहाँ-कहाँ लिखूँ"
    खुद को खो देना भी कभी कभी अच्छा लगता है शायद।
    गाना सुपरफ़िट है जी, संतोष जी और आपकी आवाज में, ’तुम्हें याद होगा.....’
    आंख, कान और मन को भरपूर डोज़ देने का शुक्रिया।

    ReplyDelete
  4. कहो और तुम्हारा नाम कहाँ कहाँ लिखूं ..
    हम्म्म्म...

    गीत तो शानदार है ही ...
    भुला दो मुहब्बत में हम तुम मिले थे ...

    ReplyDelete
  5. Ambarish Ambuj
    B Tech (Mechanical)
    IIT Roorkee,India
    said....

    प्रणाम दी,
    कैसी हैं आप? हलकी सी धुंधली सी याद तो मेरी होगी आपको? एक दिन वादा किया था खुद से कि ब्लॉग से रिश्ता ख़त्म. 'कसम है मुझे वो कसम तोड़ डालूँ!' आज 'तुम्हें याद होगा' सुना आपकी आवाज़ में तो रोक नहीं पाया. विजया चौधरी पर फिल्माया ये गीत बचपन की यादों में से एक है.. विविध भारती का सुहाना सफ़र, दूरदर्शन पर रंगोली, वो ऑडियो कैसेट प्लेयर जिसमें कभी कभी गाने अटक जाते थे, सब 'याद आते हैं..' और यही कहते हैं कि 'तुम्हें याद होगा' और मैं बस यही कह पाता हूँ कि 'सहारा है यादों का...' काश आज इस भाग दौर के बीच इतना वक़्त होता की हेमंत कुमार और तलत महमूद के लिए ४ पल निकाल पाते...
    एक छोटी सी ख्वाहिश है दी. अगर आप थोड़ा वक़्त निकाल कर 'भँवरा बड़ा नादान' गा दें, यूँ तो सुन/देख ही लेता हूँ हफ्ते में २-४ बार, एक बार आपकी आवाज़ में सुनने की ख्वाहिश है..

    ReplyDelete
  6. बहुत प्यारे अम्बरीश,
    ख़ुश रहो,
    आज मैंने रूडकी देखा तो समझ गई थी की तुम ही आए हो...
    कैसी बात करते हैं ...मैं तुम्हें बहुत याद करती हूँ...
    पिछले किसी दिन तुम्हें ऑनलाइन भी देखा था लेकिन कुछ कहा नहीं दूर से ही आशीष दे दिया था...
    इनदिनों मैं एक प्रोजेक्ट में बहुत व्यस्त हूँ...फिर भी कोशिश करुँगी तुम्हारी इच्छा पूरी करने की...

    बहुत ही अच्छा किया है कि तुमने ब्लॉग जगत से नाता तोड़ लिया है...यह जगह वैसे भी ऐसी नहीं है जहाँ पढ़ने-लिखने वाले मेधावी छात्र अपना समय गवाएं...यहाँ तो वही लोग हैं जिनके पास करने को कुछ नहीं है...विश्वास करो तुम कुछ भी मिस नहीं कर रहे हो..अगर किसी बात से दूर हो तो यहाँ की गन्दगी से...जिससे दूर रहना हर हाल में बहुत अच्छा है....
    तुम एक होनहार लड़के हो, तुम्हारी पहचान बन ही चुकी है..अच्छे लोगों के बीच में रहो और ख़ूब तरक्की करो...मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है...
    अच्छा लगता है नए लोगों के मन में पुरानी अच्छाइयों के प्रति आदर देख कर...
    हमेशा ख़ुश रहो...मुझे बहुत अच्छा लगा तुमने याद किया...
    तुम्हें ढेर सारा आशीष मिले..

    तुम्हारी..
    दीदी...

    ReplyDelete
  7. गजल तो बहुत सुन्दर है मगर इसमें एक शेर और होना चाहिए था!

    ReplyDelete
  8. बहुत सुन्दर गज़ल, उतना ही सुन्दर गाना।

    ReplyDelete

  9. बेहतरीन पोस्ट लेखन के लिए बधाई !

    आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।

    आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है - पधारें - ठन-ठन गोपाल - क्या हमारे सांसद इतने गरीब हैं - ब्लॉग 4 वार्ता - शिवम् मिश्रा

    ReplyDelete
  10. बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति । धन्यवाद|

    ReplyDelete
  11. `ग़म से सुलगते रहे मेरे शाम-ओ-सहर’


    जलता हुआ दिया लिखूं या शमा लिखूं :)

    ReplyDelete
  12. बहुत ही बढ़िया .
    मेरा वजूद ढँक गया तेरे नाम के तले
    कहो! और तेरा नाम मैं कहाँ-कहाँ लिखूँ

    ReplyDelete
  13. सूनी गली का नाम कहकशाँ... वाह ।

    ReplyDelete
  14. अम्बरीश जी को क्या क्या सलाह दे डाली आपने :) इस बस्ती में कुछ बुज़ुर्ग छात्र भी बसते हैं और उन्हें आगे भी तरक्की की हसरत है :)


    आज की प्रविष्टि पे शरद कोकास की वाहवाही से सहमत !

    ReplyDelete