ज़िन्दगी के लिए कुछ नए रास्ते हम बनाते रहे फिर मिटाते रहे
थी वहीँ वो खड़ी इक हसीं ज़िन्दगी हम उससे मगर दूर जाते रहे
रात रोई थी मिल के गले चाँद से और अँधेरे अँधेरा बढ़ाते रहे
आँखें बुझने लगीं हैं चकोरी की अब दूर तारे खड़े मुस्कुराते रहे
बिखरे-बिखरे थे मेरे वो सब फासले हम करीने से उनको सजाते रहे
अब समेटेंगे हम अपनी नज़दीकियाँ दूरियों को गले से लगाते रहे
वो पेड़ों के झुरमुट से अहसास थे और ख्वाबों की बेलें लिपटती रहीं
हम हक़ीक़त के हाथों यूँ मरते रहे बढ़ के पेड़ों से बेलें हटाते रहे
वो तो भूखा मरा मंदिर के द्वार पर लोग प्रतिमा को लड्डू चढ़ाते रहे
इक कली जिस गली में बलि चढ़ गयी वहीँ देवी का मंडप सजाते रहे
आपकी लेखनी में जादू है ......... सीधे असर करता है
ReplyDeleteधन्यवाद शास्त्री जी !
ReplyDeleteशुक्रिया यशोदा !
ReplyDeleteख़ुश रहो भास्कर !
ReplyDeletewah bahut khoob.....ek ek line dil par asar krti hui
ReplyDeleteरेवा जी,
Deleteसबसे पहले आपका स्वागत है और हौसलाअफजाई के लिए शुक्रिया है.।
बिखरे-बिखरे थे मेरे वो सब फासले हम करीने से उनको सजाते रहे
ReplyDeleteअब समेटेंगे हम अपनी नज़दीकियाँ दूरियों को गले से लगाते रहे
बहुत खूब
स्मिता जी,
Deleteआपका स्वागत है और हृदय से आपका धन्यवाद !
वाह पेड़ों के झुरमुट से अहसास.............क्या अपने से अहसास हैं।
ReplyDeleteविकेश,
Deleteबहुत दिनों बाद नज़र आये, ख़ुशी हुई देख कर.।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteप्रतिभा जी,
Deleteआपका धन्यवाद !
बेहतरीन गज़ल।
ReplyDeleteआशा जी,
Deleteआभारी हूँ !
Ati sunder rachna...
ReplyDeleteपरी जी,
Deleteहृदय से धन्यवाद !
बहुत बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteविशेषतः अंतिम पंक्तियाँ ।
हेम पाण्डेय जी,
Deleteसुस्वागतम एवम आभार !
vaah ...khubsoorat...
ReplyDeleteधन्यवाद ओंकार जी !
ReplyDeleteऔर आपका भी धन्यवाद शारदा जी !
ReplyDeleteमुझे खेद है कि इतनी खूबसूरत नज़्म बहुत देर से मेरी नज़रों में पडी। एक अजब सा अहसास दिल पर तारी होता चला गया। अपने भावों को आपने बहुत खूबसूरत नक्कशीदारी से संजोया है। मन अनजाने ही "आफरीन " "आफरीन" कह उठा। लेकिन क्षमा करें आख़िरी मकता हालांकि बहुत लाजवाब है , जबरन पेवस्त किया गया सा लगता है। जानता हूँ कि " I'm trespassing upon a restricted teritorry " बहुत नफीस को "बहुत नफीस" कहने से खुद को रोक ना पाया। मरहबा !
ReplyDeleteविजय साहेब,
Deleteइस नायाब टिप्पणी के लिए तहे दिल से आपका शुक्रिया।
आपकी बात सोलह आने सही है, आख़री मक़्ता कुछ ऐसा ही है जैसा आपने कहा है। लेकिन जो बात जब, जिस वक़्त ज़हन में आ जाए उसे कह देना अच्छा रहता है, वर्ना अफ़सोस होता है और मुझे अफ़सोस करना पसंद नहीं। एक बार फिर आपका शुक्रिया इस हौसलाफजाई के लिए ।