वाह री ये दुनियादारी !
कितनी सारी है जिम्मेवारी
एक साँस लेना है मुश्किल
दूजा उससे भी भारी
फूल के दर्शन दुर्लभ हो गए
बस झेल रहे हैं गोला-बारी
हम बैठे हैं डाल के ऊपर
दोस्त चलाते धड़ पर आरी
साज़िश रचते मेरे क़त्ल का
मुँह पर कहते लम्बी उम्र है तुम्हारी !!
कितनी सारी है जिम्मेवारी
एक साँस लेना है मुश्किल
दूजा उससे भी भारी
फूल के दर्शन दुर्लभ हो गए
बस झेल रहे हैं गोला-बारी
हम बैठे हैं डाल के ऊपर
दोस्त चलाते धड़ पर आरी
साज़िश रचते मेरे क़त्ल का
मुँह पर कहते लम्बी उम्र है तुम्हारी !!
वाह री ये दुनियादारी ....
ReplyDeleteयही आपाधापी है हर ओर
इस आपा-धापी का अंत कहाँ है ?
Deleteआपका आभार !
एक साँस लेना है मुश्किल
ReplyDeleteदूजा उससे भी भारी
...वाह...बहुत सटीक चित्रण आज की दुनियादारी का...
धन्यवाद कैलाश जी !
Deleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteनई पोस्ट : नयनों की भाषा
बहुत शुक्रिया राजीव जी !
Deleteसच ज़िंदगी बड़ी उलझी है
ReplyDeleteसबके साथ यही समस्या है महेश जी, उलझन सुलझे ना !
Deleteवाह ,बहुत सुंदर
ReplyDeleteरामाजय ज़ी, हृदय से आभारी हूँ
Deletesach kaha apne...sundar rachna
ReplyDeleteइसी आपा-धापी के कारण देर से आपका आभार व्यक्त कर रही हूँ राजेंद्र जी !
ReplyDeleteरेवा जी बहुत बहुत धन्यवाद !
ReplyDeleteदोस्तों की आरी भोथरी होगी वरना अब तक तो हो गया होता हैप्पी बड्डे :)
ReplyDeleteवड्डे नालायक हैं जी म्हारे दोस्त भी, कोई काम ढंग से नहीं करते
Deleteमैनू पता है, मेरा हैप्पी बड्डे भी परमिट ले ले के, लंगी मार-मार कर ही करेंगे :)