अब दोस्ती, प्यार, चाहत के सिवा कुछ भी नहीं
ज़िन्दगी क्या है मोहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं
अगले जन्मों में मेरे साथ सफ़र का वादा
तेरी इक और शरारत के सिवा कुछ भी नहीं
प्यार औरों को मिला और मेरी क़िस्मत में
एक पत्थर की इबादत के सिवा कुछ भी नहीं
चीरकर सीना मेरा आप तसल्ली कर लें
दिल में आपकी सूरत के सिवा कुछ भी नहीं
अपने हाथों की लकीरों में सजाना तुमको
मेरी मासूम हिमाक़त के सिवा कुछ भी नहीं
ख़्वाहिशे-वस्ल न शिकवे न शिकायत दिल में
आख़िरी दीद की हसरत के सिवा कुछ भी नहीं
ऊँचे क़द वालों से ज़रा फ़ासला ही रख्खो
वर्ना हाथ आएगी, ज़िल्लत के सिवा कुछ भी नहीं
ख़्वाहिशे-वस्ल = मिलन की इच्छा
सुन्दर मोहब्बती भाव।
ReplyDeleteशुक्रिया विकेश।
Deleteचाहत, मोहब्बत, इबादत, शरारत सबकुछ तो है फ़िर भी शिकायत !!
ReplyDeleteअंदाज-ए-शिकायत अच्छा है,
@अंदाज-ए-शिकायत अच्छा है
Deleteइसे मैं रवायत समझूँ या अदावत :)
ईनायत !!
Deleteज़िल्ले-सुभानी, त्वाडी वड्डी मेहेरबानी
Deleteवड्डे लोग वड्डी बातें !
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवार के लिए चुरा ली गई है- चर्चा मंच पर ।। आइये हमें खरी खोटी सुनाइए --
ReplyDeleteइस चोरी के लिए आपका हृदय से आभार रविकर जी !
ReplyDeleteबहुत उम्दा ग़ज़ल !
Deleteधर्म संसद में हंगामा
क्या कहते हैं ये सपने ?
आपका हृदय से धन्यवाद कालीपद जी !
Deleteअनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने ... बेहतरीन अभिव्यक्ति ...आभार
ReplyDeleteहमेशा खुश रहो भास्कर !
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteधन्यवाद सुमन जी !
Deleteपढते-पढते मुह्हबत हो गयी---कुछ ते्री गज़ल यूं उतर गई.
ReplyDeleteमन के मनकों पर ये रंग चढ़ना ही था
ReplyDeleteकौन बच पाया है इससे ये तो होना ही था
शुक्रिया, करम, मेहेरबानी !