Friday, January 11, 2013

परवरिश सैय्याद की, और आबाद हैं कफ़स में हम ...

क़ानून है इंसानी जिस्म, बेचे-खरीदे नहीं जायेंगे
पर कौन सा मोहल्ला, शहर है जहाँ, ये करम नहीं होता

मंदिर-मस्जिद-गिरजा-गुरुद्वारा, हैं वहाँ बड़ी मारा-मारी 
पर पैसे से बड़ा यारो, कोई दूसरा धरम नहीं होता 

जान निकल गयी जिस्म से, है बदन भी अब ख़ाली 
बाद का स्यापा मरहूम का, मरहम नहीं होता 

परवरिश सैय्याद की, और आबाद हैं कफ़स में हम 
आब-दाने से फ़क़त, ज़िन्दगी का भरम नहीं होता 


सैय्याद=शिकारी 
क़फ़स=पिंजड़ा