अमावसी, बेजान मूर्तियाँ,
समय के प्रवाह में,
कब की,
विसर्जित हो चुकीं हैं,
फिर भी...
मेरे पीछे-पीछे,
क्यों लक्ष्यहीन सी,
ये धीरे-धीरे,
डग भरतीं हैं ?
जबकि,
उनके साथ बंधीं,
फ़ालतू सी गांठें,
शिथिल हो,
खुल चुकी हैं ।
मेरे...
सामने अब,
वृहत प्रकाश है,
दिन का उजास है,
हर्ष और उल्लास के,
कंकड़-पत्थर,
लुढ़कते-लुढ़कते,
अब गोल हो गए हैं,
और..
स्थापित हो गए,
मेरे मन-मंदिर में,
सौम्य शिव की तरह ..!!
वादियाँ मेरा दामन, रास्ते मेरी बाहें..
ReplyDeleteghazab kaa geet...suhaane bol...
madhosh kar dene waali aawaaz...
इसी भाव पर हमने भी एक कविता लिखी थी कभी...हां इतनी परिपक्व अभिव्यक्ति नहीं थी :-)
ReplyDeleteअब गाना सुनते हैं....तारीफ पहले ही किये देते हैं..यकीन है अच्छा ही होगा.
वाह जी....बहुत खूब.
अनु
जितना खुबसूरत वर्णन निराकार शिव जी का और सांकेतिक शिव लिंग वंदनीय . आपके शिव भक्ति को प्रणाम .वादियाँ मेरा दामन , रास्ते मेरी बाहें को बहुत सुन्दर आपने गाया है . गाना और सुन्दर लिखना .गायन और लेखन का अद्भुत समन्वय .
ReplyDeleteलुढ़कते लुढ़कते हम भी गोल हो गये..सारे नुकीले स्थान सपाट हो गये।
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteसादर
आज पहली बार आपके ब्लॉग पर कॉमेंट बॉक्स खुला दिखा मुझे बहुत अच्छा लिखती हैं आप पहले भी कई बार सोचा की आपके ब्लॉग पर कुछ लिखूँ मगर कॉमेंट का ऑप्शन ही नहीं दिखा इसलिए कभी कुछ लिख नहीं पायी :)आपके के कॉमेंट भी मुझे मेरे कुछ गिने चुने आलेखों पर ही दिखे खैर कोई बात नहीं....देर आए दुरुस्त आए भावपूर्ण अभिव्यक्ति ...
ReplyDelete"सत्यम शिवम् सुन्दरम "
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव
ReplyDeleteमैं नही करती कमेंट
ReplyDeleteआपकी इस सौम्यता पर
सादर
खुबसूरत वर्णन
ReplyDeleteआज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)