Monday, February 4, 2013

हक़ की लड़ाई ...!!

ऐसा क्यों है कि आज भी बाप, अपनी बेटियों के लिए दहेज़ जोड़ रहे हैं, लेकिन संपत्ति में हक नहीं दे रहे हैं ? जबकि दहेज़ देना क़ानून के विरुद्ध है और संपत्ति में हक़ देना, अब क़ानून बन चुका है। लेकिन समाज में ये काम उल्टा ही चल रहा है। लड़कियों से विरासत का हक़, न जाने कब से छीना जा रहा है, तभी तो वो जलाई जा रहीं हैं, मारी जा रहीं हैं। ऐसे हादसों से बचने का एक ही कारगर उपाय है, बेटियों को उनका हक दिया जाए, ताकि वो पूरे आत्मविश्वास के साथ, अपना जीवन जी सकें। 

बहुत सी  लड़कियों को इस बात की जानकारी भी नहीं है। अगर जानकारी है, तब भी लडकियां इस मामले में मुखर नहीं हो पातीं। लोग क्या कहेंगे ? मेरे भाई नाराज़ हो जायेंगे , सम्बन्ध बिगड़ जायेंगे, बस यही सोच कर वो अपना हक़ छोडती जातीं हैं। कुछ लडकियाँ तो इस बारे में, सोचना भी नहीं चाहतीं हैं, जो मूर्खतापूर्ण भी है और उनके हित में भी नहीं है। वो सोचतीं हैं, दहेज़ उनका हक है और संपत्ति में हिस्सा लेना उनका लालच दर्शाता है। लेकिन ऐसा नहीं है। उसी माता-पिता का वो भी अंश हैं, जिनका उनका भाई है । लडकियाँ ऐसी फजूल की बातें सोचना अब छोड़ दें। वो बिन मतलब की दकियानूसी विचारों से बाहर निकलें, नींद से जागें और अपने माता-पिता की संपत्ति में अपना हक़, पूरे हक से लें। 


माता-पिता भी पुत्र-मोह में, अपनी बच्ची को इस हक से वंचित रखते हैं, जो सरासर ग़लत है। माता-पिता को चाहिए, बच्चियों के लिए दहेज का पैसा जमा करने की बजाए, उन्हें पढ़ाएं-लिखाएं, प्रॉपर्टी में हक दें, उन्हें सेकेंड सिटिजन का दर्ज़ा न दें, ये महसूस करायें कि वो किसी बात में, अपने भाईयों से कम नहीं है, यही बातें लड़कियों को आत्मविश्वास देगा । भाईयों को भी समझना होगा, कि माता-पिता की संपत्ति में, उनकी बहनों का भी उतना ही हक़ है, जितना उनका, तोले-माशे का भी फर्क नहीं है।   


लडकियां अब दहेज़ लेने-देने से बिलकुल इनकार करें, अपने माता-पिता से भी इसका बहिष्कार करने को कहें। दहेज़ की जगह वो अपने माता-पिता की संपत्ति में अपना बराबर का हिस्सा मांगें, उन्हें भी बताएं कि यही उचित भी है और उनकी बेटी का भला भी इसी में है । भाईयों को ये बात समझ में आनी  चाहिए उन्हें अपनी बहनों को, अपने माता-पिता की संपत्ति में हिस्सा देना ही होगा, ये उनकी बहनों का जन्मसिद्ध अधिकार है। माता-पिता की मृत्यु के बाद, बिना बहनों को उनका हिस्सा दिए हुए, भाईयों का आपस में संपत्ति का बँटवारा करना गैर-क़ानूनी और असंवैधानिक होगा। अगर ऐसा हुआ और बहन चाहे, तो उनको कोर्ट में ले जाकर अपना हिस्सा बेधड़क ले सकती है। 


संबंधों में बेकार की कटुता आये , इससे बेहतर है भाई सुलह से अपनी बहन का हक़ उसे दे दें। भाइयों को न सिर्फ यह समझना होगा, बल्कि स्वीकार भी करना होगा कि जेंडर के आधार पर अधिकारों का बंटवारा क़ानूनन ग़लत और असंवैधानिक है । जिस दिन भाई इस सच्चाई को समझ लेंगे, और स्वीकार कर लेंगे, अनावश्यक विवाद खड़े ही नहीं होंगे, और संबंधों में कटुता आने का भी प्रश्न नहीं उठेगा 


अब लोग लड़कियों को 'पराई' कहना बिलकुल बंद करें । लड़कियों के साथ, माँ-बाप के घर में ही कैसा सौतेला व्यवहार होता है, ये हृदयविदारक है। लड़की की शादी होते ही, उसकी विदाई से पहले ही उसका कमरा तक खाली कर दिया जाता है, उसे अपने बचपन की एक-एक याद से महरूम कर दिया जाता है ...क्यों?  अनजाने ही सही, लेकिन गिरा हुआ मनोबल, हीन भावना, इन्सेक्योरीटी का भाव जो लड़कियों में आता है, उसकी नींव माँ-बाप के घर में ही पड़ती है। उसके दीमाग में कोंच-कोंच कर यह बात बिठाई जाती है, कि ये घर उसका नहीं है, बस वो कुछ दिनों की मेहमान है यहाँ, फिर उसे 'अपने घर' जाना है। यह एक ऐसा ज़हर है, जिसे पी जाना, नीलकंठ के भी वश की बात नहीं होती, अगर जो वो स्त्री होते। हर लड़की चाहे वो किसी भी परिवार से आती है, उसे यही महसूस कराया जाता है, कि अगर उसका पति उसके साथ नहीं है तो दुनिया में उसका कोई नहीं है। 'मायके से उसकी डोली उठेगी और ससुराल से उसकी अर्थी ही निकालनी चाहिए' और यही वो दहशत है, जो उसे सारी उम्र के लिए झुका देता है। ससुराल वाले सारी उम्र, इसी बात का फ़ायदा उठाते हैं, और लड़की समझौते पर समझौता करती चली जाती है। वो जानती है, अगर उसका साथ उसके ससुराल वालों ने छोड़ दिया, तो वो कहीं की नहीं रहेगी, क्योंकि मायकेवालों ने तो बचपन से ही, घुट्टी में घोंट-घोंट कर पिला दिया है, तुम 'पराई' हो। इस घर में जब भी आओ मेहमान की तरह आओ, मेहमान की तरह रहो और मेहमान की तरह जाओ। लेकिन अब क़ानून लड़कियों के साथ है, और उनका हक़, उनके हक़ में है।   

बेटे इसी मानसिकता के साथ बडे होते हैं, कि माता-पिता की सारी संपत्ति उनको ही मिलेगी। ऐसे में आगे चलकर, संपत्ति पर बहन के हक़ को स्वीकार करना, उतना आसान नहीं होता है। लेकिन ये सारी जिम्मेदारी पेरेंट्स की होनी चाहिए। वो शुरू से ही इस बात का खुलासा रखें कि संपत्ति में बेटे-बेटी दोनों को बराबर का इख्तियार है। वैसे भी माँ-बाप किसी एक बच्चे को, खास होने का अहसास, कभी न कराएं तो अच्छा रहता है। बचपन से ही बेटे और बेटी को यह स्पष्ट रूप से बता दिया जाए कि जो कुछ भी संपत्ति है, उसमें सबका हिस्सा बराबर है। ऐसा करने से, आगे चलकर संपत्ति संबंधित विवाद की गुंजाइश ही खत्म हो जाएगी। वर्ना ख़ामख्वाह बहन खलनायिका बन जाती है और सारा  दोष उसी का हो जाता है। आपसी सम्बन्ध ख़राब हो जाते हैं, और ठीकरा बहन के माथे फोड़ दिया जाता है ।

कोर्ट-कचहरी में संबंधों की मर्यादाओं का निर्वहन न भाई कर पायेगा, न ही बहन। फिर जबरदस्ती करके लिए गए अधिकारों से पारिवारिक ताने-बाने टूट ही जाते हैं । संबंधों की गर्मजोशी बनी रहे, इसके लिए भाई, बहन को उनका हक़ राजी-खुशी और पूरे मन से दे दें, क्योंकि कानून भी यही कहता है और सामाजिक मान्यता भी यही होनी चाहिए। संपत्ति में बेटी का अधिकार है, इस बात की जानकारी सबको होनी चाहिए। इस सम्बन्ध में मिडिया को और सक्रीय होना होगा । कानून को भी और कठोर होना चाहिए। 


हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में संशोधन के बाद माता-पिता की संपत्ति, बेटी के हस्ताक्षर के बगैर न तो ट्रांसफर हो सकती है, न पट्टा बन सकता है, न ही उसकी रजिस्ट्री हो सकती है। इसके लिए सबसे पहले बेटी को, संपत्ति में अपने हक़ का त्याग करना पड़ता है। हिंदू उत्तराधिकर 1956 सेक्शन 8 की धारा आठ के तहत, माता-पिता की संपत्ति में बेटे और बेटी को समान अधिकार है। इसलिए लडकियाँ सावधान हो जाएँ, बिना सोचे-समझे किसी भी कागज़ पर, आपके भाई हस्ताक्षर लें तो बिलकुल मत करें। ऐसा करके आप अपना हक़ त्याग रहीं हैं।


बेटियों को मालूम होना चाहिए कि वो प्रथम वर्ग के उत्ताराधिकारियों में आती हैं। हिंदू उत्तराधिकार कानून-1956 में 2005 में हुए बदलाव से क्लास वन वारिसों की सूची में महिलाओं को वरीयता दी गई है। इसलिए कोई भी लड़की अपने इस अधिकार का त्याग न करे, चाहे कुछ भी हो जाए। 



20 comments:

  1. भाग जगत पर आधा आधा,
    विघ्न करे, कैसी मर्यादा।

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    1. लेकिन आधा-आधा कहाँ है प्रवीण जी ??

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  2. @लडकियां अब दहेज़ लेने से, बिलकुल इनकार करें

    क्या ये दहेज़ लड़कियों को मिलता है? दहेज़ उनकी पसंद से दिया जाता है ?दहेज़ में मिली चीज़ों पर उनका हक होता है ?
    नहीं।
    लडकियोंको बस एक घर से दूसरे घर विदा कर दिया जाता है। वे यहाँ भी घर संभालती थीं,काम सीखने के बहाने घर का काम करती थीं और ससुराल में भी घर ही संभालती हैं।(एकाध अपवादों को छोड़कर )
    जमीन बेच कर , माँ के जेवर गिरवी रखकर लड़कों की उच्च शिक्षा का इंतजाम करते सुना है, पर कभी लड़कियों को पढ़ाने के लिए यह सब किया गया हो,देखने सुनने में नहीं आता।
    उस जमीन जायदाद पर उसका भी हक़ है और उसे भी आगे पढने और आत्मनिर्भर बनने की जरूरत है। लड़कियों को शर्म-संकोच त्याग कर यह सब कहना ही होगा और अपना हक जताना ही होगा।
    बहुत सही और जरूरी मुद्दा उठाया है , इन विषयों पर चर्चा होनी ही चाहिए

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    1. रश्मि,
      तुम्हारी सारी बातें शत-प्रतिशत सही हैं। ज़मीन-जेवर बेच कर लड़कियों को पढ़ाते हुए माँ-बाप हमने तो नहीं देखे हैं। लड़कों के लिए सब कुछ हर हाल में मुहैय्या करवाया जाता है, और लड़कियों के हिस्से में आता है बर्तन मांजना, मायके में भी और ससुराल में भी। पैदा होते साथ कुछ ही बातें सुनने को मिलतीं हैं, घर का काम सीख लो ससुराल जाओगी तो सास से डांट सुनोगी। मतलब ये हुआ कि अपने घर प्रैक्टिस करो, दुसरे घर में कैसे करना है इसके लिए, हद है !!
      शुक्र है समय कुछ तो बदला है। आगे भी बदलना ही पड़ेगा समाज और परिस्थियों को। बस लडकियां अगर थोडा अपने भेजे का इस्तेमाल करें तो वो सार नक्शा बदल सकतीं हैं।

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    2. i have recently started reading ur blogs. most of ur blogs are male bashing true to a certain extent. but continuous reading of your blogs shows a trend that u have some biased opinions about males. i have seen a lot of families where share of the property is given to the daughters by mutual consent without any infighting in the family but these people never get their due credit. likewise in a lot of cases that i have seen a lot of girls ask their parents to give dowry according to their choice. its not that all the males are that bad the way you portray them in ur blogs and all the females are mute spectators of the things happening around them. in most of the cases where family violence is happened to a girl why the other females does not object. donot say that the are suppressed by their male counterparts.

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    3. Dear Reader,
      Please accept my sincere gratitude for taking time out, from your schedule to read my blog. I beg to deffer to your statement, that I am biased towards males. i would appreciate, if you could provide me some examples, where I sounded illogical and male 'basher'. You have every right to make your own conclusion. This is what is all about freedom of expression.

      May be you have seen many such families, those have shared, willingly paternal properties with their daughters, but I still have to see one. What you have seen, they will be considered exceptions. Go to any any state, Jharkhand, bihar, Haryana, Punjab, UP, majority of the population will be against this law. People are killing their brothers to give their share, forget about sisters. Why don't we take a voting in Blog World and ask the males, if they are willing to give the fair share of their parents property to their sisters.

      About the Dowry, I never said that girls are not falling for dowry. This is all the more reason I am suggesting todays' girls, to boycott dowry entirely and ask for their share in parental /ancestral property.
      I have never said males are bad and girls are good. but they can be better, each has scope of improvement, including me and you.

      About you saying other, female not saying any thing, when they see violence around them. The answer is obvious, they know, if they object, they will be the next one. The police takes domestic violence as a joke, because they themselves take part in such activities at their homes. In 2012 in Delhi 634 rapes are reported (god knows haw many are not reported) Not a single offender is caught. Forget about the sentencing. Take this Damini's case, this is crystal clear case. Still what's going on in the name of fast track court and all that BS. Do you think system is working ?? and who is creating, making changing, applying this whole system ??


      when u see things happening around u, be it Damini, be it singer girl, getting fatwa, u start thinking..are we woman really worth of this kind of treatment ? Personally I do not have any problem with my male counterpart, and with my two sons. this does not mean, world around me is perfect. and as a global citizen i can not turn my eyes away from what is happening. Writing rosy things is pretty easy, and getting popularity is even easier. But when you write truth, you pay for it. because most of the time truth is not pretty.

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  3. दहेज लेनेवाले घर के मर्दों की बजाय स्त्रियों की इसमें ज्‍यादा रुचि होती है। यह समस्‍या स्‍त्री को स्‍त्री से सच्‍चा स्‍नेह होने पर ही सुलझेगी। खासकर सास का बहू को बेटी जैसा मानने के बाद।

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    1. सही कहा आपने, ये सार तीन-पांच भी सासे ही करतीं हैं। उनको भी इस मामले में क्रैश कोर्स मिलना चाहिए।

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  4. सारगर्भित आलेख!
    सोचने को विवश करता हुआ!

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  5. तार्किक और विचारणीय.

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    1. धन्यवाद राहुल जी, इस आलेख को आपने विचार करने योग्य समझा |

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  6. दहेज़
    लड़की के अभिभावक जिस की जितनी हसियत होती हैं अपनी बेटी के लिये दहेज़ से वर खरीदते हैं
    बिना दहेज के विवाह होते ही नहीं हैं , लड़की डॉक्टर , इंजीनियर या आईएस ही क्यूँ ना हो अगर उसका विवाह पूर्ण रीति रिवाज से होना हैं तो उसके लिये दहेज़ अत्यंत जरुरी . दहेज़ केवल और केवल अपनी बेटी के लिये वर खरीदने के काम ही आता हैं .
    संपत्ति पर अधिकार मिलजाने से भी दहेज़ में फरक इस लिये ही नहीं पडा हैं क्युकी शादी बिना खर्चे के संभव ही नहीं हैं
    दहेज़ तब ख़तम होगा जब लडकियाँ विवाह से इनकार कर देंगी अगर एक भी पैसा शादी पर खर्च होगा तो पर हमारे यहाँ इसका उलटा हैं , लड़कियों को खुद एक से एक बढ़िया गहना कपड़ा चाहिये , वो ज्यादा दहेज़ लेकर सुसराल जाना चाहती हैं ताकि उनका सम्मान हो .

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    1. रचना जी,
      आपकी बात से बिलकुल सहमत नहीं हूँ, दहेज़ और शादी का ख़र्चा एक ही बात नहीं है। शादी एक उत्सव भी है और उसमें ख़ुशी-ख़ुशी भी खर्च किया जाता है। तीज-त्यौहार में भी आप नए कपडे, गहने लेते हैं फिर शादी जैसे अहम् उत्सव के लिए क्यों नहीं ?? पश्चिम में भी शादी में खर्च किया जाता है और खर्च लड़की के माँ-बाप भी करते हैं।

      विवाह तो होना ही चाहिए, हाँ उसके इर्द-गिर्द जो ढकोसले हैं उनका ख़ात्मा चाहिए।

      मैंने लड़कियों को दहेज़ देने से इनकार करने की बात कही है, और ये कहा है कि लड़कियों को माता-पिता की संपत्ति में बराबर का हक मिलना चाहिए, ताकि उनका आत्मविश्वास और उनमें सुरक्षा की भावना बनी रहे, साथ ही उनका संबल ऊंचा रहे । गहने-कपडे, फ्रिज से बड़ी बात होगी, संपत्ति में लड़कियों का हक़। इस तरह संपत्ति लड़कियों को सिक्योरिटी देगी। दहेज़ जैसे तुच्छ चीज़ से जितनी जल्दी हो सके लडकियां मुक्ति पाएं। न तो दहेज़ उनके लिए दिया जाता है, न ही उनका कोई हक़ होता है उसपर। वो सिर्फ ससुराल वालों की ठसक पूरी करने का तरीका है। और इसी दहेज़ की वजह से भाईयों को भी कहने का मौका मिलता है, तुम्हारी शादी में इतना-उतना दिया, इसलिए तुम्हारा हिस्सा ख़तम। ये रुकना चाहिए।

      सच पूछिए तो इस सारे 'कारोबार' में लडकियां ही घाटे में रहतीं हैं। हठात लडकियाँ अपने ही घर से पराई हो जातीं हैं, अपने ही घर में घुसने से डरतीं हैं। एकदम से पूरा माहौल ही बदल जाता है उनके लिए, उसी घर में जहाँ कभी उनका जन्म हुआ होता है, परायों की तरह व्योहार किया जाता । सिर्फ इसलिए कि शादी होते साथ ही उसपर 'पराई' का लेबल लग जाता है ये सरासर गलत है। अपने ही घर में पराया हो जाने का दर्द झेलना बहुत कठिन होता है। इस तरह की मानसिक पीड़ा से किसी भी लड़की को गुजरने की ज़रुरत ही नहीं होनी चाहिए। माता-पिता का घर लड़कियों का था, है और हमेशा रहना चाहिए। वो मेहमान बन कर वहां न जाएँ, उस घर की मालकिन की हैसियत से जाएँ और खुद को मालकिन ही समझें। समाज को अपनी सोच इस मामले में हर हाल में बदलनी बदलनी होगी। हम अपनी लड़कियों को ऐसा माहौल बिलकुल नहीं देंगे ये वादा हम खुद से भी करें और समाज से भी करवाएं।
      मेरे इस आलेख का यही आशय है।

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    2. मेरे इस आलेख का यही आशय है।
      i do understand and appreciate

      but when the girls parents are FORCED to spend money so that the daughter CAN GET A SUITABLE match then its not a FESTIVAL for them

      In indian system marriage is a market where parents purchase a groom for their daughter
      there are brackets
      IAS rs 2 crore and above
      doctors / engineer rs 50 lakh and above
      business man no limits

      these days even the housemaids who work in our homes tell me that for a boy who is just 10th pass a peon in a office they have to shell out rs one lakh and above to get their daughters married

      the law long back gave girls the right in inheritance but it cant be implemented because FROM WHERE WILL THE PARENTS BRING IN THE MONEY TO MARRY THE DAUGHTER

      many parents invest in properties and sell those properties to marry the daughters

      dowry and right to property are TWO DIFFERENT ISSUES all together

      dowry is a tool to purchase a groom and give the a "comfort zone " called marriage

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  7. मेरी बेटी को, मेरे घर में, उसके भईयों के बराबर का हक़ मिलेगा ..चाहे कुछ भी हो जाये।
    कोई उसे पराई नहीं कहेगा। वो मेरी थी, मेरी है और मेरी ही रहेगी ...हाँ, दूसरे भी उसे अपना बना सकते हैं।

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    1. this should be the opening lines of this post , thank you for this

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    2. excellent swapna - wish more moms start thinking like that ...

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