आज मैं आपसे ये पूछना चाहूँगी इन दो विकल्पों में से कौन सा पुरुष निकृष्ट है ???
एक जो अपनी ही पत्नी को जूए में दाँव पर लगाता है और हार भी जाता है वो, या वो पुरुष जिसने उसी स्त्री, जिसे वो जूए में जीत चुका है, के साथ मनमानी करता है वो ??
इन दोनों में से किसे नराधम माना जाएगा ?????
हैं तो दोनो ही लेकिन जो अपनी ही पत्नी को जूए में दाँव पर लगाता है ज्यादा है!
ReplyDeleteAshish ji,
Deleteaapne apna vichaar vyakt kiya, aabhari hun.
जबाब वही जो ऊपर आशीष ने दिया।
ReplyDeleteaapne Ashish ji ke vichar vyakt kiye, aapki bhi aabhaari hun :)
Deleteअदा
ReplyDelete"पुरुष" को परिभाषित कैसे करते हैं ??
पहले परिभाषित करे :) आभार होंगा
शील प्रधानं पुरुषे तद् यस्येह प्रणश्चति।
Deleteन तस्य जीवितनार्थो न धनेन न बन्धुभि।।
अर्थात, किसी भी पुरुष का सबसे प्रधान गुण उसका सच्चरित्र होना होता है, अगर वह नहीं है, तो फिर, उसके जीवन में धन और बन्धु-बान्धवों का होना कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं करता।
पुरुषत्व महज एक लिंग पर टिका हुआ प्रश्न नहीं है, जो मनुष्य, शिष्ट, सभ्य हो, जो अकर्मण्य न हो, जो अज्ञानी न हो, अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण को प्राप्त करता है, जो अपने अधीन रहने वालों की रक्षा करता हो, सही अर्थों में वही पुरुषत्व का अधिकारी है, और वही पुरुष कहलाने योग्य है ।
आप की परिभाषा के अनुसार आप के प्रश्न में दिये हुए दोनों विकल्प "पुरुष" हैं ही नहीं फिर जवाब कैसे दिया जाये ??? :))
Deleteआप ने दोनों को पुरुष क्यूँ कहा हैं ?? महज लिंग के आधार पर ही ना जबकि आप खुद कह रही हैं "पुरुषत्व महज एक लिंग पर टिका हुआ प्रश्न नहीं है"
परिभाषा के हिसाब से अगर हम 'पुरुष' ढूँढने निकले तो हो लिया काम :):)
Deleteअब यही अवेलेबल हैं, इन्हीं से काम चलाइये :):)
द्वापर, त्रेता, सतयुग को ही जोड़-जाड़ के इने-गिने मिल गए तो गनीमत समझिये और कलियुग की तो हम बात ही न करें तो बेहतर होगा।
इतनी कमी रही है, इसीलिए तो, खींच-तीर के इनको धर्म पुस्तक में महापुरुष, पुरुषों में श्रेष्ठ, धर्मराज और न जाने क्या-क्या कहा गया है :)
अगर जुए की लत होती तो शायद सही जवाब दे पाता
ReplyDeletepurush hokar aap jua nahi kelte hain ? fir to aap dharmraj kabhi nahi ban sakte :)
Deleteदोनों ही !
ReplyDeleteDhanywaad !
Deleteदोनों ही अधम है..दोनों को न लगाने का अधिकार है और न ही अपनाने का।
ReplyDeleteaapka bhi shukriya !
Deleteएक तीसरा विकल्प भी है दांव में लगने वाली स्त्री
ReplyDeleteजिसके पक्ष में कुछ शास्त्रों में भी लिखा मिल जायेगा (जिनमें स्त्री जन्म को ही निकृष्टतम माना गया है)
प्रणाम स्वीकार करें
अगर स्त्री जन्म नहीं होता तो तुम्हारा जन्म कैसे होता ? :)
Deleteनिकृष्टतम जन्म के लोगों से क्या उत्कृष्ट लोग जन्म ले सकते हैं ?
हर वह व्यक्ति, जो दुसरे को सिर्फ इसलिए नीचा माने , कि वह दूसरा व्यक्ति विपरीत लिंग का है , हर ऐसा व्यक्ति अधम है । फिर वह व्यक्ति स्त्री हो या पुरुष , इससे कोई फर्क नहीं पड़ता ।
Deletethis applies to your "teesraa vikalp" suggected above mr. sohil
हर वह व्यक्ति, जो दुसरे को सिर्फ इसलिए नीचा माने , कि वह दूसरा व्यक्ति विपरीत लिंग का है , हर ऐसा व्यक्ति अधम है । फिर वह व्यक्ति स्त्री हो या पुरुष , इससे कोई फर्क नहीं पड़ता ।
ReplyDeleteयदि पुरुष स्त्री से सिर्फ स्त्री होने के कारण अन्याय करे, या स्त्री पुरुष से सिर्फ पुरुष होने के लिए अन्याय करे - दोनों ही स्थितियां सामान रूप से निंदनीय हैं ।
यहाँ नारी-पुरुष की बात नहीं हो रही है, दो व्यक्तियों के क्रिया-कलापों बात हो रही है...जो इंसिडेंली पुरुष हैं। मेरे हिसाब से दोनों में ज्यादा फर्क भी नहीं है, इस प्रश्न द्वारा मैं सिर्फ इतना जानना चाहती हूँ, कि मैं जैसा सोचती हूँ और भी लोग ऐसा ही सोचते हैं क्या ?
Deleteदेख कर अच्छा लगा मैं अकेली नहीं हूँ।
स्वप्ना जी - मेरे निजी विचार में तो उस व्यक्ति का अपराध बहुत अधिक है जिसने अपनी पत्नी को दांव पर लगाया । जिसने उसे "जीता" वह तो बाहर वाला व्यक्ति है :(
Deleteबहुत दुखद है यह सब होना, होता चला आना, होते चले जाना ... :(
और - इन दोनों से कहीं बढ़कर अपराध है उस सामाजिक व्यवस्था और मान्यता अक , जो इन दोनों की ऐसी मानसिकता बनने में सहायक है कि- मैं पत्नी को दांव पर लगा सकता हूँ / मैं इसकी पत्नी को जुए में जीत सकता हूँ / और सबसे बड़ी बात यह कि यह सब देखने वाले लोगों को भी उचित लगे कि ये दोनों यह कर सकते हैं । जब वह पत्नी आकर अपने आप को दांव पर लगाया जाना अनुचित कह इसका विरोध भी करती है, तब भी समाज के बड़े, समाज के ठेकेदार, उसे गलत और इन दोनों पुरुषों को सही साबित करते हैं ...
Deleteमैं खुद भी हैरान होती हूँ सोच कर, वो कैसी दुनिया थी और कैसा समाज था जहाँ बड़े-बुजुर्गों के सामने इतनी बड़ी अनीति हो रही थी और सभी चुप थे !!!
Deleteआज भी कुछ नहीं बदला है, मेरा ही एक संस्मरण है, जिसमें एक ससुर अपनी विधवा बहू के साथ पूरे समाज के सामने अनीति कर जाता है, और कोई कुछ बोल नहीं पाया। उस स्त्री ने कितने साल ये नरक भोगा है और उसका ससुर ठाठ से अन्याय करना रहा। ये कोई बहुत पुरानी बात भी नहीं। ये तो है हमारा महान समाज और ये हमारी महान संस्कृति !!
:(
Deleteसमाज और संस्कृति हम ही जैसे लोग बनाते बिगाड़ते हैं स्वप्ना जी - हर समय खंड में अच्छे और बुरे दोनों लोग हुए हैं ।
हर अच्छे / महान / स्थापित / शक्तिशाली / धनवान / ज्ञानवान आदि व्यक्ति में निजी स्वार्थों के चलते निजी कमियां, निजी मजबूरियां होती हैं, जिन्हें वह अपनी अपनी शक्ति के अनुसार महानता में "पेंट" कर सकता है, यदि वह ऐसा करना चाहे तो ।
उस सभा में जितनी अनीति हुई , उतनी "ऑफिसियल" अनीति का उदाहरण शायद ही संसार में कहीं और देखने को मिले ।
लेकिन स्वप्ना जी - यह बात ध्यान रखी जाए - कि यह घटना "संस्कृति" बना कर नहीं सिखाई गयी कभी भी - इसकी निंदा ही हुई - हर ओर से । कृष्ण ने साफ़ कहा कि "इस सभा में विरोध करने वाली द्रौपदी और विदुर के अतिरिक्त सभी ने जघन्य पाप किया है"
- और उन सब ने भी अपने कर्म को कभी भी उचित नहीं ठहराया उस घटना के बाद, उनके सर हमेशा उस तेजस्विनी के आगे झुके ही रहे ।
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और हाँ -
"आज भी - आज भी - आज भी" -
हम "महिला ब्लोगर" जमात में भी -
नारी के अधिकार के लिए लड़ने वाली एक महिला ने मुझे कहा कि "द्रौपदी का नाम देकर मैंने (शिल्प मेहता ने) दिल्ली ब्रेव्हार्ट का अपमान किया है - अर्थात ??
इसका साफ़ अर्थ है कि उनके मन में कहीं द्रौपदी होना एक अपमान की बात है - नहीं ? मेरे लिए द्रौपदी होना कतई अपमान की बात नहीं है, मेरे लिए युधिष्ठिर आदि आदि होना अपमान है । उस दिन मैं बहुत निराश हुई थी, क्योंकि जिन्होंने यह कहा - यह मेरे लिए बहुत शोकिंग था कि वे भी स्त्रियों की इज्ज़त को उसके शरीर का कामलोलुप / सत्तालोलुप पुरुषों द्वारा किये गए अपमान से जोडती हैं । क्योंकि उनसे मुझे बहुत आशाएं थीं ।
द्रौपदी का नाम देकर मैंने (शिल्प मेहता ने) दिल्ली ब्रेव्हार्ट का अपमान किया है - अर्थात ??
Deleteद्रौपदी का नाम आप ने दिया उस लड़की को जो एक अविवाहिता थी , जिसका बलात्कार 6 लोगो ने किया
द्रौपदी का ना तो बलात्कार हुआ था
और ना ही द्रौपदी ने वो सब सहा था तो इस बच्ची ने सहा
और मुझे आप से तो कम से कम ये आशा नहीं थी की आप उसको द्रौपदी कहेगी क्युकी द्रौपदी का सीधा सरल मतलब आम जनता के लिये एक पांच पति वाली पत्नी होता हैं
सब आप की तरह प्रबुद्ध नहीं होते हैं ना
द्रौपदी कहकर आप क्या साबित करना चाहती थी की वो पांच बलात्कारी उसके पति थे और वो छठा नाबालिग था इस लिये आप उसको भूल गयी
शिल्पा जी आम औरत / आदमी की तरह सोचना शुरू करिये
उस लड़की के माँ पिता अगर सुन लेगे की उसको द्रौपदी कहा जा रहा हैं तो आत्म हत्या ही कर लेगे
अफ़सोस होता हैं आप की सोच और समझ पर और उस से भी ज्यादा अफ़सोस होता हैं की आप बिना मेरा नाम लिये टंच कसती हैं
आज भी लोग द्रौपदी और कुंती इत्यादि नाम इसीलिये नहीं रखते क्युकी कोई नहीं चाहता हैं उसकी बेटी अविवाहित माँ बने या उसके 5 पति हो . बात कुंती या द्रौपदी के मान सम्मान की नहीं हैं क्युकी वो इतिहास हैं लेकिन इतिहास ने कुंती या द्रौपदी को जो पीड़ा दी हैं कम से कम मे तो नहीं चाहूंगी किसी को मिले
Deleteवे भी स्त्रियों की इज्ज़त को उसके शरीर का कामलोलुप / सत्तालोलुप पुरुषों द्वारा किये गए अपमान से जोडती हैं । क्योंकि उनसे मुझे बहुत आशाएं थीं ।
Deleteplease keep your hopes to your self SPARE ME PLEASE
1.
DeleteI have ALL THE RIGHT to express my thoughts - nobody has the right to tell me to keep silent in public debates. (swapna ji has invited our opinions in this post, and i responded - just as you did).
you have your opinions about fellow bloggers, and you express them freely where and when you like - SO DO I , and i am not afraid to voice my opinions either.
when i initially came to the blog-world - i made a few opinions, some of them right, some of them drastically wrong. they are molding with time and experience, and i have changed my opinions about some people.
BUT i never WANT to talk about PERSONS - i like to concentrate on TOPICS. that is how i am. to ME - blogging is not about ME and my personal wars, it is about topics, discussions, and forums, expressing opinions, and getting to know others' opinions. i have always expressed my opinions, but i NEVER force another to abide by them.
you objected to me calling her draupadi and i objected to your insult of draupadi ...
NEITHER DO I HAVE THE RIGHT TO TELL YOU TO KEEP QUIET .... NOR YOU HAVE A RIGHT TO TELL ME TO DO SO ....
"NAARI" was your platform - you invited me to it as a co-author, and when i wrote my opinions somewhere else - you kicked me out without even the courtesy to inform me priorly. that was highly insulting, but it was acceptable - because that was "YOUR BLOG _ YOU WERE THE DECISION MAKER".
but this is swapna's blog - it is ONLY HER - who can tell me to keep quiet about certain matters - and NO-ONE ELSE. if she says so - i will refrain here too.
-----------
2.
@ और मुझे आप से तो कम से कम ये आशा नहीं थी की आप उसको द्रौपदी कहेगी क्युकी द्रौपदी का सीधा सरल मतलब आम जनता के लिये एक पांच पति वाली पत्नी होता हैं
i do not think that is so in "aam janataa's" mind - draupadi is much respected by the masses - i MAY be WRONG...
to THEM, she is not just "paanch patiyon kee patni" she is much much more than that .
TO ME
she is the symbol of the initial days of WOMEN getting conscious about her rights and trying to assert their rights,
even at the cost of -
***opposing a whole RAAJSABHA's wrong attitude, *** opposing the king's wrong attitude, ***opposing the the gurus' wrong attitude, ***speaking against her elders, ***speaking against her husband, and ***NEVER FORGIVING and forgetting a grave insult to womanhood, ***NEVER allowing HERSELF to be blamed for/ feel guilty for what OTHERS DID (- the way most sexually assaulted women seem to accept in india. )
she saw to it that her culprits were brought to justice. SHE SAID _ THIS IS MY KARMABHOOMI _ AND I WILL DO MY KARMA FOR THE PURPOSE OF JUSTICE FOR ALL WOMAN WHO SUFFER SILENTLY WHAT I SUFFERED IN THE HIGHLIGHTS and she went on to do so.
to me - and to many many hindus - draupadi is a very respected woman.
if you have YOUR opinions about her - you are COMPLETELY ENTITLED to keep them and express them.
to ME - being "draupadi" is not an insult, it is a praise.
CONTINUED
Continued
Delete3.
द्रौपदी कहकर आप क्या साबित करना चाहती थी की वो पांच बलात्कारी "उसके पति" थे और वो छठा नाबालिग था इस लिये आप उसको भूल गयी
NO
no - i do not wish to prove any such thing, nor i have suggested so there..
I THINK you know exactly what i was saying, but you have chosen to interpret it like this - it is your own choice. i can't help it. i think i have said what i wanted to say, and if that is YOUR INTERPRETATION of what i was saying, it is not my problem - if you read that comment again - you will understand it if you wish to.
for all others reading here - i am repeating what i said
"
.... maine shraddhaanjali likhte hue use "abhimanyu" kahaa thaa, jo chhah kapurushon se akeli nirbhay ho kar mukaabla karti rahi
vah draupadi jo abhimanyu ban gayi ....
us nirbhay kanya ko mera naman....
"
now -
"छह" "कापुरुषों" से "मुकाबला" - does THAT seem to suggest that i am calling the rapist "kaapurushs" her husband ???? - did i say 5 or 6 there ? you are saying that i am forgetting the 6th - while in that comment i clearly say "6"
the "shraddhanjali" i am talking about in that comment is here - (though i do not like to give links to my posts in comments, still since you are interpreting my words like that - i am giving the link here so that if anyone is interested - they can see for themselves exactly what i was saying about draupadi and abhimanyu.)
http://shilpamehta1.blogspot.in/2012/12/condolences-shraddhaanjali.html
-- if you want to understand what i am saying - you will,
-- if you do not want to do so - no amount of explanations on my part will make any difference.
-- i do not think others have interpreted what i said this way - at least no-one else has said so.
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4.
@शिल्पा जी आम औरत / आदमी की तरह सोचना शुरू करिये
- i will decide my own thought process - i will NOT borrow your (or anybody else's) thought process - thanks. i do not need to ask you how to think, i am a free citizen.
i think i am an "aam aurat/aadmi" and i think like one.
moreover - since you asked me - let me ask you too. do YOU think like anyone else ? do you not oppose most of the things the so called "aam aurat /aadmi" think ?
CONTINUED
Delete5.
@उस लड़की के माँ पिता अगर सुन लेगे की उसको द्रौपदी कहा जा रहा हैं तो आत्म हत्या ही कर लेगे
- i do not think so, i do not know what they will do, and neither do you know it. so i would not assume things about such COWARDLY STEPS LIKE SUICIDE by such family who have displayed such a wonderful strength in the face of so much adversity, nor would i suggest such things to them or about them. i am AGAINST the society suggesting "death" , "eeshwar ise uthaa le" or "suicide" as an option for either rape victims or their families..
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6.
@अफ़सोस होता हैं आप की सोच और समझ पर और उस से भी ज्यादा अफ़सोस होता हैं की आप बिना मेरा नाम लिये टंच कसती हैं
aapke afsos kaa mujhe afsos hai - lekin main aisee hi hoon ,
meri soch , meri samajh aisee hi hai (aur rahegi). jo hoon usse khush hoon, - aur badalne ke koi iraade nahi hain |
@आज भी लोग द्रौपदी और कुंती इत्यादि नाम इसीलिये नहीं रखते क्युकी ... that is individual's decision. If i had a daughter - i would not have any such inhibitions about naming her though. unfortunately i do not have one.
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7.
@क्योंकि उनसे मुझे बहुत आशाएं थीं । please keep your hopes to your self SPARE ME PLEASE
nope - i will express my thoughts and feelings anywhere and everywhere i please - my constitution grants me freedom to EXPRESS my hopes, aspirations and also my disappointments . whether right or wrong - i have the right to have them - same as YOU do have the same rights.
and moreover - you have said EXACTLY the same thing above - that
""""और मुझे आप से तो कम से कम ये आशा नहीं थी की आप ....""""
- just like you had some hopes (aashaa) from me - and felt disappointed - same way i had some hopes - and felt disappointed.
we all are humans - we all expect some things - sometimes our hopes get fulfilled, sometimes they get dashed.... that does not mean i will NOT keep or express my hopes and disappointments. you decide your path - i shall decide mine.
देख कर अच्छा लगा मैं अकेली नहीं हूँ।
ReplyDelete:)
शिल्पा जी की सभी बातों से सहमत हूँ।
ReplyDeleteसीधा सा सवाल था -उत्तर भी उतना ही सहज कि दोनों ही अधम हैं! मगर यहाँ पर्सनल स्कोर तय किये जा रहे हैं -दुर्भाग्यपूर्ण है :-)
ReplyDeleteमूल पोस्ट में परिप्रेक्ष्य नहीं है -मगर ध्वनित युधिष्ठिर और दुर्योधन का प्रसंग हो रहा है -तत्कालीन समाज में द्यूत क्रीडा का बड़ा प्रचलन था -शकुनि को इसी अभियान पर लगाया ही गया था -युधिष्ठिर एक दुरभिसंधि में फंसे -राजा नल ने भी दमयंती को दांव पर लगाया था -युधिष्टिर भी उसी स्थिति तक आने को मजबूर हुए -मगर कोई भी द्रौपदी को दांव पर लगाने को उचित नहीं मानेगा -उस समय भी सब चुप रहे क्योकि युधिष्ठिर के द्रौपदी को हार जाने के बाद कोई हस्तक्षेप की स्थति में न था -भीम बहुत आक्रोशित हुए किन्तु उन्हें दुसरे भाईयों द्वारा चुप करा दिया गया -बड़े भाई का निर्णय अंतिम था -और बड़े का सम्मान उन दिनों एक तय बात थी .....हाँ द्रौपदी ने अनीति पर लोगों को ललकारा और अपने विद्वतापूर्ण संबोधन में यह साबित किया कि पति पत्नी का रिश्ता किसी जुए के का पासे का मुहताज नहीं है-
बड़ी लम्बी चर्चा है -और मैं मुफ्त में राय देने वाला नहीं हूँ -मगर यह जरुर चाहूँगा लोग आपसी सद्भाव और भाईचारे /बहनापे के साथ रहें -इन पुराण की बातों पर अपना आज न खराब करें ....