Thursday, July 7, 2011

हे हृदयेश...


मम मन मयूर, मुदित हुआ
जब हृदयंगम, कोई  सुर हुआ
गात पात सम लहराया,
उषा सम आनन उर हुआ,
ऊबर गया, मन मंदिर तम से
और देह प्रकाशित पुर हुआ,
हे हृदयेश, देख तेरा वेश
प्रार्थना, उर अंकुर हुआ,
तव प्रभा से प्रदीप्त जीवन,
पुनः पुनः प्रेमातुर हुआ.....

1 comment:

  1. खाम्ख्वाह की बात पर,
    लड़ने को आतुर हुआ,
    तोती का धीरज देखकर,
    तोते का गुस्सा फ़ुर्र हुआ:)

    हम करते कविताई तो ऐसी बनती, इसीलिये नहीं करते।

    तोता कैसे आंखें गोल करके घूर रहा है, हैरान सा। इसे कहिये न खुश है तो खुश दिखा भी करे, हाँ नहीं तो...!!

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