Monday, July 20, 2009

युद्ध.....

प्रभु तुम्हारी दुनिया में, इतना अन्याय क्यों होता है ?

जीत-हार के अन्तराल में, निर्दोष बलि क्यों चढ़ता है?

युद्ध धनिक का महज मनोरंजन, निर्धन ही सब खोता है

अट्टहास करते नेतागण, सिर्फ गरीब ही रोता है

सदियों से यही कहानी, मानव सुनता आया है

हर युग में इतिहास स्वयम् को, बार-बार दोहराया है

त्रेता, द्वापर या कलियुग में, जितने भी जो युद्ध हुए

सिर्फ बे-नाम, लाचार ग़रीब, विप्र ही प्राण गँवाया है

सारे ध्रितराष्ट्र अपने घर के, अन्दर में छुप जाते हैं

और संजय उन सबको फिर, युद्ध का हाल दिखाते हैं

इस युग में भी कई बार, युद्ध के बादल छाये हैं

और युद्ध की परिणति पर, कई अशोक पछताए हैं

पर उससे क्या होता है, युद्ध तो अब भी जारी है

जीत चाहे जिसकी भी हो, मानवता सिर्फ हारी है

16 comments:



  1. हार जीत चाहे जिसकी हो, सदैव प्रभु का पलड़ा ही भारी है
    धृतराष्ट्र होने का सुख वह भोग रहा, राज करती गाँधारी है :)

    ReplyDelete
  2. युद्ध धनिक का महज मनोरंजन, निर्धन ही सब खोता है
    अट्टहास करते नेतागण, सिर्फ गरीब ही रोता है
    ====
    अत्यंत प्रभावशाली रचना. समसामयिक व यथार्थपरक

    ReplyDelete
  3. कोइ अशोक नहीं पछताया था ,
    मार सभी सभी भ्राताओं को ,
    उसने पाटलिपुत्र राज्य पाया था,
    सभी पुत्रियों बहनों पुत्रों कोभेज ,
    अन्य देशों में राज निष्कन्ट बनाया था ,
    इतिहास गवाही देता सेना नहीं घटाई थी ,
    अशोक ने देश को जो पीडा-संताप दिया ,
    उसके दिए पलायनवाद का था उपहार,
    राज कोष झेले निट्ठला -चिन्तन बौद्ध विहार ,
    नौजवान पीढी क्यों कार्य करे जो हो मुफ्त आहार
    हजार वर्षों की दासता उसी का परिणाम ,
    हमने नहीं आक्रान्ताओं उसे महान कहा ,
    अहिंसा के प्रचार से विद्रोह का होता भय कम ,
    अन्यायी का मनोबल बढाते हैं,
    न कर उसका का प्रतिकार |

    मुझे यह 'अदा' भायी है ,
    यदि प्रश्नों के 'शैल' खंड नहीं चलाये जायेंगे


    [[बिजली कटौती शेष फिर कभी ]]

    ReplyDelete
  4. पर उससे क्या होता है, युद्ध तो अब भी जारी है।
    जीत चाहे जिसकी भी हो, मानवता सिर्फ हारी है।।

    अदा की रचना का कमाल
    मन को भाया प्रश्नजाल...

    ReplyDelete
  5. मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने! अब तो मैं आपका फोल्लोवर बन गई हूँ इसलिए आती रहूंगी! मेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है!

    ReplyDelete
  6. बहुत सुन्दर रचना है मन को आंदोलित और प्रभावित करती हुई सी

    ReplyDelete
  7. इस युग में भी कई बार, युद्ध के बादल छाये हैं

    और युद्ध की परिणति पर, कई अशोक पछताए हैं

    पर उससे क्या होता है, युद्ध तो अब भी जारी है

    जीत चाहे जिसकी भी हो, मानवता सिर्फ हारी है

    बहुत अच्छी प्रस्तुति. बधाई

    ReplyDelete
  8. sach kaha........yuddh to ab bhi jari hai aur manavta hi hamesha harti hai.

    ReplyDelete
  9. युद्ध धनिक का महज मनोरंजन, निर्धन ही सब खोता है
    अट्टहास करते नेतागण, सिर्फ गरीब ही रोता है

    सच मुच........... युद्ध में बस गरीब ही पिस्ता है, रोता है, मरता है.............. बहूत खूब लिखा है

    ReplyDelete
  10. मानवता सिर्फ़ हारी है ,

    सच कहा !

    ReplyDelete
  11. कोई हारे..कोई जीते...युद्ध कई बार जरूरी हो जाता है///

    कैफी आज़मी की पंक्तियाँ हैं शायद...........

    जंग रहमत है के लानत ये सवाल अब न उठा
    जो सर पे आ पड़ी है जंग तो रहमत होगी....

    गौर से देखना भड़के हुए शोलों का जलाल
    इसी दोजख के किसी कोने में जन्नत होगी...

    ReplyDelete
  12. Vilakshan rachana hai..! Mere pas aksar hee shabd nahee hote..kya kahun?

    http://shamasansmaran.blogspot.com

    http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypth.blogspot.com

    http:shama-baagwaanee.blogspot.com

    http:shama-kahanee.blogspot.com

    http://fiberart-thelightbyalonelypath.blogspot.com

    ReplyDelete
  13. achi socha ujagar ki rachna ke madhaym se

    ReplyDelete
  14. पर उससे क्या होता है, युद्ध तो अब भी जारी है

    जीत चाहे जिसकी भी हो, मानवता सिर्फ हारी है.
    poora saar in do panktiyon ne darsha diya .ati uttam .kishore ji ki baat mujhe bhi jachi .

    ReplyDelete
  15. achhi khoj .yudhh me chahe koi bhi jeete pran to sainiko ko hi gavana hai .

    ReplyDelete