अवधेस के द्वारे सकारे गई सुत गोद में भूपति लै निकसे ।
अवलोकि हौं सोच बिमोचन को ठगि-सी रही, जे न ठगे धिक-से ॥
'तुलसी' मन-रंजन रंजित-अंजन नैन सुखंजन जातक-से ।
सजनी ससि में समसील उभै नवनील सरोरुह-से बिकसे ॥
तन की दुति श्याम सरोरुह लोचन कंज की मंजुलताई हरैं ।
अति सुंदर सोहत धूरि भरे छबि भूरि अनंग की दूरि धरैं ॥
दमकैं दँतियाँ दुति दामिनि ज्यों किलकैं कल बाल बिनोद करैं ।
अवधेस के बालक चारि सदा 'तुलसी' मन मंदिर में बिहरैं ॥
वर दन्त की पंगति कुंद कली,अधराधर पल्लव खोलन की ।
चपला चमके घन बीच जगे, ज्यूँ मोतिन माल अमोलन की ॥
घुन्घरारी लटें लटकें मुख ऊपर ,कुंडल लोल कपोलन की ।
न्योछावरी प्राण करें तुलसी, बलि जाऊं लला इन बोलन की ॥
Wonderful!!! Excellent poetry and lovely voice.
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (15-11-2014) को "मासूम किलकारी" {चर्चा - 1798} पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
बालदिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद शास्त्री जी।
Deleteये हुई न बात !!
ReplyDeleteसुन नहीं पाया हूँ, ऑडियो फ़ाईल भेजने का तरद्दुद करेंगी क्या? इसे रिंगटोन बनाना है।
क्या बात
ReplyDeleteye pankti kis kavi ki h
ReplyDeleteतुलसीदास
DeleteAap Ka dhanyvad
ReplyDelete9919321311 ydi ho ske to apna gyan rupi smy de
इसमे को सा रस है
ReplyDeleteवात्सल्य रस
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