Friday, November 14, 2014

अवधेस के द्वारे सकारे गई सुत गोद में भूपति लै निकसे ....



अवधेस के द्वारे सकारे गई सुत गोद में भूपति लै निकसे ।
अवलोकि हौं सोच बिमोचन को ठगि-सी रही, जे न ठगे धिक-से ॥
'तुलसी' मन-रंजन रंजित-अंजन नैन सुखंजन जातक-से ।
सजनी ससि में समसील उभै नवनील सरोरुह-से बिकसे ॥

 

तन की दुति श्याम सरोरुह लोचन कंज की मंजुलताई हरैं ।
अति सुंदर सोहत धूरि भरे छबि भूरि अनंग की दूरि धरैं ॥
दमकैं दँतियाँ दुति दामिनि ज्यों किलकैं कल बाल बिनोद करैं ।
अवधेस के बालक चारि सदा 'तुलसी' मन मंदिर में बिहरैं ॥


वर दन्त की पंगति  कुंद कली,अधराधर पल्लव खोलन की    
चपला चमके घन बीच  जगे, ज्यूँ मोतिन माल अमोलन की     
घुन्घरारी लटें  लटकें मुख  ऊपर    ,कुंडल लोल कपोलन की
 न्योछावरी प्राण करें तुलसी, बलि जाऊं लला इन बोलन  की

11 comments:

  1. Wonderful!!! Excellent poetry and lovely voice.

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (15-11-2014) को "मासूम किलकारी" {चर्चा - 1798} पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    बालदिवस की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. ये हुई न बात !!

    सुन नहीं पाया हूँ, ऑडियो फ़ाईल भेजने का तरद्दुद करेंगी क्या? इसे रिंगटोन बनाना है।

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  4. Aap Ka dhanyvad
    9919321311 ydi ho ske to apna gyan rupi smy de

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  5. इसमे को सा रस है

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