Thursday, March 13, 2014

हम लोग किस पार्टी पर यकीन करें ये कोई बता दे ????

झारखण्ड :

NoName
(constituency)
TermParty
1Babulal Marandi
Ramgarh
15 November 2000 – 17 March 2003
(852 days)
Bharatiya Janata Party
2Arjun Munda
Kharsawan
18 March 2003 – 2 March 2005
(715 days)
3Shibu Soren
--
2 March 2005 – 12 March 2005
(10 days)
Jharkhand Mukti Morcha
(2)Arjun Munda
Kharsawan
12 March 2005 – 14 September 2006
(555 days)
Bharatiya Janata Party
4Madhu Koda
Jaganathpur
14 September 2006 – 23 August 2008[2]
(709 days)
Independent
(3)Shibu Soren
--
27 August 2008 – 18 January 2009
(144 days)
Jharkhand Mukti Morcha
Vacant
(President's rule)
19 January 2009 – 29 December 2009
(344 days)
N/A
(3)Shibu Soren
--
30 December 2009 – 31 May 2010
(152 days)
Jharkhand Mukti Morcha
Vacant
(President's rule)
1 June 2010 – 11 September 2010
(102 days)
N/A
(2)Arjun Munda
Kharsawan
11 September 2010 – 18 January 2013
(860 days)
Bharatiya Janata Party
Vacant
(President's rule)
18 January 2013 – 12 July 2013
(175 days)
N/A
5Hemant Soren
Dumka
13 July 2013 – present
(239 days)
Jharkhand Mukti Morcha
छत्तीसगढ़ :

AssemblyDurationWinning Party/CoalitionChief MinisterOpposition leader
1st2000–2003Indian National CongressAjit JogiNand Kumar Sai
2nd2003–2008Bharatiya Janata PartyRaman SinghMahendra Karma
3rd2008–2013Bharatiya Janata PartyRaman SinghRavindra Choubey
4th2013–PresentBharatiya Janata PartyRaman SinghT.S. SINGH DEO


और इन दोनों जगहों में विकास के नाम पर कुछ नहीं है, हर दिन हत्या, लूट, बंद यही मिला है यहाँ की जनता को । इसबार मुझे झारखण्ड आये हुए १३ दिन हुए हैं, जिसमें से ३ दिन बंदी रही है, इस बीच कई हत्याएँ हो चुकी हैं । मेरी ज़मीन छत्तीस गढ़ में है, जिसे देखने तक जाना मुहाल है, इतनी हत्याएँ हो रहीं हैं कि कुछ समझ नहीं आता । इन दोनों जगहों में लोग डरे सहमे हुए हैं, व्यवसाय औंधे मुँह पड़े हुए हैं, अराजकता इस क़दर फैली हुई है कि कुछ कहा नहीं जा सकता। खुशियाँ लोगों के चेहरों से ग़ायब है, हर इंसान परेशान नज़र आता है । 

लोग सोच सकते कि अगर इतनी ही परेशानी है तो मैं यहाँ आती ही क्यों हूँ, पहली और सबसे अहम् बात मैं भारतीय हूँ , झारखण्ड मेरा जन्मस्थान है, दूसरी उतनी ही अहम् बात, मेरी माँ यहाँ अकेली है, मुझे उसकी वजह से ही हर दो-तीन महीने में आना पड़ता है, वो अपना घर-द्वार छोड़ कर कैनेडा जाना ही नहीं चाहती और हम सभी उसकी इच्छा का आदर करते हैं। यहाँ बिजली नहीं, पानी नहीं, सड़कें नहीं, ट्रैफिक ऐसी कि आप घर से बाहर पाँव धरने से पहले दस बार सोचें।  कूड़े का अम्बार लगा हुआ है। 

बेईमानी और धोखाधड़ी हर कदम पर है । आप चाह कर भी किसी पर यकीन नहीं कर सकते।

गुड गवर्नेंस की बात करने वाले ये भी बताएँ कि झारखण्ड को अलग राज्य का दर्ज़ा पाये हुए १३ वर्ष हो चुके और इन १३ वर्षों में से ९.५ वर्ष 'सो कॉल्ड' गुड गवर्नेंस पार्टी का ही राज रहा है, मैं पूछती हूँ क्या साढ़े नौ साल का समय कम था इनके गुड गवर्नेंस के लिए ?????? इन जगहों पर, उनकी गवर्नेंस करने की क्षमता कहाँ घास चरने चली जाती है ????  चमके हुए जूते को चमका-चमका कर कहते फिरना कि देखो जी हमने क्या चमकाया है !!!!। हमसे बेहतर कोई  हो ही नहीं सकता । ये हम झारखण्ड और छत्तीस गढ़ में रहने वालों के लिए विश्वास करने वाली बात अब नहीं रह गयी है, क्योंकि हम लोगों ने फर्स्ट हैण्ड अपनी फ़ज़ीहत इन्हीं के हाथों से झेली है । सालों देख चुके हैं हम इनकी  बेहतरी और इनकी क़ाबिलियत । इनकी गवेर्नेंस ने झारखण्ड की भद्द पीट कर रख दी, छत्तीसगढ़ मटियामेट हुआ जा रहा है । मुझसे कहीं बेहतर दिमागवाले लोग हैं, उनसे इतना ही पूछना है, जब इतने छोटे-छोटे राज्य सम्हालने का शऊर नहीं है इन पार्टियों को तो क्या देश सम्हाल लेंगे ये लोग ????

झारखण्ड और छत्तीसगढ़ दोनों ही आज शरीफों के रहने लायक जगह नहीं रह गए हैं, जबकि उनके निर्माण के साथ ही गुड गवर्नेंस पार्टी ने सरकार सम्हाली थी। कभी लोग इन राज्यों की तरफ भी देख लिया करें और तब आकलन करने की कृपा किया करें, ये जो ढोल पीटते फिर रहे हैं अपनी क़ाबिलियत का, क्या सचमुच वो क़ाबिल है ???

और अब लाख टके की बात हम आपसे पूछते हैं, इतना सबकुछ देखने और भुगतने के बाद हम लोग किस पार्टी पर यकीन करें ये कोई बता दे ????  

14 comments:

  1. इन दोनों राज्यों की हालात तुम्हारी आंखन देखी है . किसी एंटी पार्टी वालों के वीडियो या चैनल देखकर धारणा नहीं बनायी . मुश्किल यही है शीर्ष पर सिर्फ चेहरे बदल जा रहे हैं ,सिस्टम नहीं बदल रहा .और आगे भी ऐसा ही लग रहा हैं...बस शक्लें ही बदलेंगी ,कुछ बदलाव नज़र नहीं आएगा . कोई भी पार्टी हो उसके नेता सिर्फ अपना घर भरने ,अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने में लगे हैं. चुनाव प्रचार पर करोड़ों खर्च हो रहे हैं , कोई तो फाइनेंस कर रहा है और बदले में अपने फेवर में बहुत कुछ चाहेगा जिसे जनता का हक़ मारकर पूरा किया जाएगा . यही होता आया है अब तक और हो भी रहा है.

    जिस गुजरात के गुड गवर्नेंस का उदाहरण बार बार दिया जा रहा है...वो सिर्फ हाल के शासनकाल में नहीं हुआ है. 1990 में मैं दिल्ली आयी थी वहां पड़ोस में एक गुजराती लड़की थी . अच्छी दोस्ती हो गयी हमारी और अहमदाबाद में , रात में साढ़े ग्यारह बजे स्टेशन से उसके अकेले घर चले जाने, देर रात जेवर पहन स्त्रियों के घर लौटने की बात मैं आँखें फाड़ फाड़ कर सुनती थी. जिस राज्य में मौक़ा मिला,इस पार्टी ने समर्पित होकर उस राज्य के उत्थान के लिए काम किया होता तब भरोसा जमता.
    वैसे चमके हुए जूते को और चमकाते रहने का उदाहरण बहुत मजेदार रहा :)

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    1. सही कह रही हो सारे के सारे एक ही थैले के चट्टे-बट्टे हैं । वो कहते हैं न आईना वही रहता है चेहरे बदल जाते हैं.। हमने तो गुड गवर्नेंस पार्टी की बैड गवेर्नेंस देख ही ली है इसलिए कोई जितनी मर्ज़ी कुछ भी कहे यक़ीन नहीं आता अब.।

      चुनाव प्रचार में फाईनेंस की भली कही तुमने :)
      ये सारा हम (जनता) फाइनेंस करते हैं, ये जितने बिजिनेस वाले हैं, हमारा पैसा लेकर फाईनांस कर देते हैं, फिर उससे कई गुणा पैसा हमसे ही ले लेते हैं और हमलोग सोचते हैं कि हमारी ज़ेब से कहाँ कुछ जा रहा है :)

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    1. और हम झारखण्डी फ्यूज़ हूँ :)

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  3. इन दोनों प्रदेशों में एक सूत्र उभयनिष्ठ है.. वो है आदिवासी बहुल प्रदेश होना. इसलिये इन प्रदेशों की समस्या पार्टी नहीं व्यक्ति हैं. समस्या का जो कारण मेरे जैसे अ-राजनैतिक व्यक्ति की समझ में आता है वो यहाँ नहीं लिख सकता. यहाँ की समस्या अपनों द्वारा अपनों को नोचकर खाना है. अब इसे गुड गवर्नेंस वाली सरकार की विफलता कहें या स्कैम मण्डित सरकार की उपेक्षा.
    वोट किसी को भी दे लीजिये! अंतर नहीं पड़ने वाला. चमके हुए जूते को चमकाने की बात तो मैंने सुबह ही अपने कमेण्ट में आपकी पिछली पोस्ट पर कही थी. और कमाल की बात है कि पिछले दो वर्षों से गुजरात और झारखण्ड दोनों को बहुत समीप से देख रहा हूँ! न गुजरात मुझसे छिपा है - न झारखण्ड आपसे!!

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    1. गुजरात बहुत पहले से बहुत विकसित प्रदेश रहा है । मुझे याद है गुजरात २० साल पहले भी बहुत विकसित था, शायद वहाँ के लोग ही विकासशील हैं.…वहाँ कोई भी सरकार बने राज्य ठीक ही रहेगा
      झारखण्ड और छत्तीसगढ़ में ही सही मायने में गुड गवर्नेंस की ज़रुरत थी/है और यहीं पार्टी विफल हो रही है ।
      अगर वो इतने ही क़ाबिल हैं तो इन राज्यों को ठीक करके दिखाएँ तो हम मान जाएँ। इतनी बड़ी-बड़ी बातें यहाँ आकर धरी की धरी रह जातीं हैं । त्रासदी यह है कि दोनों राज्य जो राज्य का दर्ज़ा पाने से पहले थे वहाँ से वो सैकड़ों साल पीछे चले गए हैं ।

      आपका ये कहना सही है कि दोनों आदिवासी बहुल राज्य हैं, लेकिन ये पहले भी थे तब इतनी बुराईयां नहीं थी, अलग राज्य बन जाने से विकास होना ही चाहिए था, झारखण्ड खनिज सम्पदा से भरा हुआ राज्य है/था लेकिन अब लगता है कुछ भी बाकी नहीं रहा

      जहाँ का नोंच खाने का सवाल है तो शायद ही कोई राज्य हो जो इससे अछूता हो और गुड गवर्नेंस में तो इसे भी मैनेज करना आता ही है जो सरकार में होते हुए भी गुड गवर्नेंस पार्टी नहीं कर पायी

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  4. राज्यों को बदलने में समय लगता है, प्रशासन की सामर्थ्य नेतृत्व की क्षमता पर निर्भर करता है। कोई तो मानक होंगे जिससे हम तुलना कर सकें।

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    1. प्रश्न यह है कितना समय लगता है ? यहाँ तो लगभग १० साल दिए गए हैं.।
      और क्या उतने समय तक नीरीह जनता भुगतती रहे ?
      नेतृत्व का चयन पार्टी करती है । सिर्फ नेता को मुहैय्या कर देने भर से पार्टी की जिम्मेदारी ख़त्म नहीं होनी चाहिए, नेतृत्व का नेतृत्व करना, नेता के सामर्थ्य को आँकना, सही परामर्श देना भी पार्टी का कर्तव्य होना चाहिए । जहाँ तक मानक का प्रश्न है, नए राज्य का भार सम्हालने से पहले ही पार्टी के अपने मानक निर्धारित होने चाहिए।

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  5. विचारणीय पोस्ट.....आप को होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं...
    नयी पोस्ट@हास्यकविता/जोरू का गुलाम

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  6. ज़ीरो टॉलरेंस करप्शन वाले प्रदेश की एक झलक - कांकेर रोडवेज़ की बस से आज सुबह जगदलपुर से कांकेर आया । किराया है 112 रुपये । कंडकटर ने लिए 170 रुपये । इस बात पर कई बार झगड़ा होने और अपमानित होने के बाद अब चुपचाप निकाल कर दे देता हूँ । शिकायत की कहीं कोई सुनवाई नहीं होती । यहाँ राज्य परिवहन नहीं है ...प्रायवेट परिवहन हैं ....जो पूर्ण स्वच्छन्द हैं । अख़बारों में बस ऑपरेटर्स के बारे में अक्सर छपता रहता है किंतु आज तक तो कोई फ़र्क पड़ा नहीं । आगे पड़ेगा ..इसकी भी कोई उम्मीद नहीं ।

    कोई पार्टी विचार देती है, जिसका पालन उसके अनुयायिओं को करना होता है । अनुयायी ही यदि वञ्चक हो तो किसी पार्टी का क्या दोष ? यह हमारे समाज का नैतिक पतन है .....और शायद इसे जनता जनार्दन ने भी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष स्वीकार कर लिया है।

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  7. बधाई हो! लोगों ने तो अपना निर्णय सुना दिया है और संसार के सबसे बड़े लोगतंत्र ने ऐतिहासिक करवट ली है। लगता है अच्छे दिन आ गए हैं। देश को मेरे और आपके सहयोग की आज भी उतनी ही आवश्यकता है जितनी पहले थी।

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  8. ये तो होना ही था।
    खैर अगर लूटने ही देना है तो सबको बारी बारी से ही मौका देना चाहिए। विकासशील और मेहनती आदि आदि तो बिहार के भी लोग खूब थे और हैं भी। तो वहां राजनैतिक जमातों ने उनके साथ क्या किया है बताने की जरूरत नहीं।
    चमके जूते वाले उदाहरण में दम नहीं। आप दो दिन न चमकाएँ अपने चमके हुए जूते को ही। फिर देखिए उसका हाल।

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