Monday, July 20, 2009

शूर्पनखा...

शूर्पनखा ! हे सुंदरी तू प्रज्ञं और विद्वान्,
किस दुविधा में गवाँ आई तू अपना मान-सम्मान
स्वर्ण-लंका की लंकेश्वरी, भगिनी बहुत दुराली
युद्ध कला में निपुण, सेनापति, पराक्रमी राजकुमारी
राजनीति में प्रवीण, शासक और अधिकारी
बस प्रेम कला में अनुतीर्ण हो, हार गई बेचारी
इतनी सी बात पर शत्रु बना जहान
शूर्पनखा ! हे सुंदरी तू प्रज्ञं और विद्वान्,

क्या प्रेम निवेदन करने को, सिर्फ मिले तुझे रघुराई ?
भेज दिया लक्ष्मण के पास, देखो उनकी चतुराई !
स्वयं को दुविधा से निकाल, अनुज की जान फँसाई !
कर्त्तव्य अग्रज का रघुवर ने, बड़ी अच्छी तरह निभाई !
लखन राम से कब कम थे, बहुत पौरुष दिखलायी !
तुझ पर अपने शौर्य का, जम कर जोर आजमाई !
एक नारी की नाक काट कर, बने बड़े बलवान !
शूर्पनखा ! हे सुंदरी तू प्रज्ञं और विद्वान्,

ईश्वर थे रघुवर बस करते ईश का काम
एक मुर्ख नारी का गर बचा लेते सम्मान
तुच्छ प्रेम निवेदन पर करते न अपमान
अधम नारी को दे देते थोड़ा सा वो ज्ञान
अपमानित कर, नाक काट कर हो न पाया निदान
युद्ध के बीज ही अंकुरित हुए, यह नहीं विधि का विधान
हे शूर्पनखा ! थी बस नारी तू, खोई नहीं सम्मान
नादानी में करवा गयी कुछ पुरुषों की पहचान

11 comments:

  1. कभी कभी मैं भी सोचता हूँ कि राम जी को उसे लक्ष्मण के पास नहीं भेजना चाहिये था !

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  2. हर समय काल मे नारी को सूर्पणखा घोषित कर उसे अपमानित किया गया है. विद्वत्ता नारी की कब स्वीकृत की गयी.
    बहुत अच्छी रचना

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  3. Am out of station..! Unsable to log in regularly!
    Haan, bahutse sawal manme uthte hain, naree ko leke...naree ko kyon, hamare itihaas ne tatha shastron ne itna avmanit kiya hai,kabhi samajh nahee payee..hamesha useeki pariksha?

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  4. kya bat haiu..apne to suprnkha ko bhi varnit kar diya acha hai kuch naya pada

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  5. शूर्पनखा ! हे सुंदरी तू प्रज्ञं और विद्वान्,
    किस दुविधा में गवाँ तू अपना मान-सम्मान
    स्वर्ण-लंका की लंकेश्वरी, भगिनी बहुत दुराली
    युद्ध कला में निपुण, सेनापति, पराक्रमी राजकुमारी
    राजनीति में प्रवीण, शासक और अधिकारी
    बस प्रेम कला में अनुतीर्ण हो, हार गई बेचारी
    इतनी सी बात पर शत्रु बना जहान
    शूर्पनखा ! हे सुंदरी तू प्रज्ञं और विद्वान्,
    shoorpnakha ke paksh me bolne waali aap shayad pahali mahila hai ,us yug me hoti to wo aapki kadradaan hoti .poori rachana taarife qabil .main bahut aanand li .aap dil ki saral hai ,achchhi hai .tabhi jise har yug me nakara gaya use aapne taarif ke yogya samajha .

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  6. bhut hi achha vishay aur sarthak vivechna .privartan ki byar aise hi chlti hai .
    snyog hai ki maine surpnkha ko apni kavita me likha hai par abhi antim rup nhi de pai hoo.
    par aapki yh kvita bhut kuch kh gai hai .ya to nari ko pujne ki bat krte hai ya use sirf shrir smjhte hai .in dono ke beech shayd hi koi use smjh ske
    achi rchna ke liye badhai

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  7. यह नजरिया भी देखा, आभार!!

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  8. शूर्पनखा के माध्यम से आपने बहुत ज्वलंत सवाल उठाये हैं...आप की रचना अति प्रशंशनीय है.
    नीरज

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